मंगला मुखी (भाग-10) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

मीटिंग में डॉक्टर सौरभ कुलकर्णी ने सबके समक्ष अपनी बात रखी और साथ ही यह भी बताया कि इस बच्चे के इलाज में उसके पापा की विशेष रुचि है। सौरभ कुलकर्णी जानते थे कि उसके सभी मित्र डॉक्टर इसके पापा का बहुत सम्मान और आदर करते हैं। उपस्थित सभी डॉक्टरों ने अपनी ओर से पूर्ण सहायता का आश्वासन दिया साथ ही यह भी कहा कि जब भी उनकी आवश्यकता पड़ेगी, उन्हें बुला लिया जाये और उन्हें कोई फीस नहीं चाहिये होगी।

कुछ डॉक्टरों ने यह भी सुझाव दिया कि कदम्ब से  प्रार्थना पत्र लेकर उसको कुछ पैसा मुख्यमंत्री फण्ड और मेडिकल एसोसिएशन से भी दिला दिया जाये जिससे आपरेशन के बाद भी बच्चे की अच्छी तरह देखरेख हो सके।

आपरेशन के एक हफ्ते पहले लकी को  अस्पताल में भर्ती होने को कह दिया गया ताकि उसके कमजोर शरीर को दवाइयों से आपरेशन योग्य बनाया जा सके। आपरेशन के पहले बहुत तरह की जॉचें भी की जानी आवश्यक थीं। अस्पताल जाने के एक दिन पहले जब रेशमा लकी से मिलने आई तो कदम्ब और वीथिका के पास कुछ कहने के लिये शब्द नहीं थे। रेशमा ने लकी को बहुत प्यार किया – ” अब मैं इससे मिलने तभी आऊंगी जब तुम लोग इसे लेकर घर आ जाओगे।”

” क्यों मौसी, ऐसा क्यों कह रही हैं ? आपरेशन के समय तो आपको रहना ही पड़ेगा। उस समय अगर आप हमारे साथ रहेंगी तो हमें भी हिम्मत मिलेगी। आपसे अधिक हमारा शुभचिंतक कौन है?”

रेशमा ने वीथिका के सिर पर हाथ रख दिया – ” मैं तुम दोनों के हृदय की भावनाओं को समझती हूॅ परन्तु यह समाज है। किसी का मुॅह नहीं पकड़ा जा सकता। मुझे देखकर लोग तरह तरह की बातें बनायेंगे। मेरे अस्पताल आने से बेतुकी और अनर्गल बातें होने लगेंगी। अभी हमें बेकार की बातों में अपने आप को उलझाने की आवश्यकता नहीं है। अपनी लकी को स्वस्थ करना‌ सबसे जरूरी है। डॉक्टर साहब इतना कर रहे हैं तो हम भी जरा सी बात के लिये उन्हें कुछ भी कहने का मौका क्यों दें?”

वीथिका और कदम्ब के चेहरों पर उदासी तैर गई तो रेशमा ने उन्हें समझाते हुये कहा – ” परेशान मत हो, मुझे रोज फोन करके लकी के बारे में बता दिया करना।”

” लेकिन मौसी, यह तो गलत है। आपरेशन के पहले लकी को आपका आशीर्वाद तो मिलना ही चाहिये।”

” मेरा आशिर्वाद हमेशा उसके साथ है। मैं उसकी नानी हूॅ। उसके लिये मुझसे जो बन पड़ेगा करूंगी। तुम लोग इन बातों की चिन्ता छोड़कर केवल हमारी लकी की ओर ध्यान दो और आपरेशन के बाद खुशी खुशी इसे लेकर घर आओ।”

यह कहकर रेशमा ने पचास हजार रुपये अपने पर्स से निकाल कर वीथिका के हाथ में रख दिया – ” यह क्या है मौसी। आपने पहले ही इतना किया है।”

” तुम चुप रहो।” रेशमा ने साधिकार वीथिका को डॉटा –

” मैं तुम्हें नहीं दे रही, अपनी नातिन के इलाज के लिये दे रही हूॅ। नानी हूॅ इतना तो हक है ही मेरा।”

कदम्ब भी कुछ कहना चाहता था लेकिन उसके बोलने के पहले ही रेशमा ने उदास स्वर में कहा – ” तुम लोगों ने मुझे प्यार और सम्मान के साथ एक परिवार दिया है, इस बात से मैं बहुत खुश हूॅ लेकिन यदि तुम लोग एक किन्नर को अपना मानकर थोड़ी सी भी खुशी नहीं देना चाहते हो तो यह पैसे मत लो। मैं दुबारा कभी तुम लोगों के पास नहीं आऊंगी।” कदम्ब और वीथिका निरुत्तर रह गये।

जब कदम्ब और वीथिका वैदेही को लेकर डॉक्टर सौरभ के नर्सिंग होम में पहुॅचे तो उनकी ऑखें फटी की फटी रह गई। इस नर्सिंग होम में तो पैर रखने की भी उनकी हैसियत नहीं थी और इस नर्सिंग होम में उनकी बेटी का आपरेशन होगा? सचमुच रेशमा वरदान बनकर उनके जीवन में आई है।

वैदेही की तरह तरह की जॉचें शुरू हो गईं। उसे दूध, जूस या जो भी मुंह से खाने के लिये दिया जाता, अस्पताल से ही दिया जाता था लेकिन साथ ही कदम्ब और वीथिका के खाने पीने की सारी व्यवस्था भी अस्पताल की कैन्टीन में कर दी गई। एक हफ्ते के अन्दर ही लकी का शरीर आपरेशन योग्य हो गया।

यद्यपि आपरेशन डॉक्टर नयन बंसल को करना था लेकिन उस समय डॉ नयन के साथ आपरेशन थियेटर में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ सौरभ कुलकर्णी के अतिरिक्त हृदय रोग विशेषज्ञ, न्यूरो सर्जन, एनेस्थीसिया के डॉक्टर भी उपस्थित थे। डॉक्टर नयन बंसल की सहायता करने के लिये तीन जूनियर डॉक्टरों की टीम थी।

दस घंटे चले आपरेशन के बाद डॉक्टर नयन और डॉक्टर सौरभ एक साथ अपनी टीम के साथ बाहर आये। 

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बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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