दोस्तों आप सबको बहुत बहुत प्यार और अभिवादन। आज मैं आप सबके समक्ष एक नई कहानी लेकर आई हूॅ। आशा है कि आप सबका प्यार, आशीर्वाद और सहयोग मेरी इस कहानी को भी मिलेगा। साथ ही आप सबकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रियायों की प्रतीक्षा रहेगी ताकि मैं उत्साह पूर्वक आगे बढ़ सकूॅ। साथ ही आप सबको इस कहानी में कोई कमी या त्रुटि दिखाई दे तो मुझे अवश्य अवगत करायें।
आज वीथिका और कदम्ब अपनी बेटी वैदेही को अस्पताल से घर लेकर वापस लौटे तो दरवाजे पर ही रेशमा एक पूजा की थाली लिये बैठी मिली। कदम्ब और वीथिका जैसे ही आटो से उतरे, रेशमा ने उनकी आरती उतारी फिर नन्ही वैदेही को जब गोद में ले लिया तब वीथिका ने आगे बढ़कर घर का ताला खोला।
रेशमा ने गोद में सोई हुई वैदेही को बिस्तर पर लिटा दिया और जाने के लिये उठ खड़ी हुई – ” जाना नहीं मौसी, खाना खाकर चाय पीकर जाना।”
” लेकिन अभी तो तुम लोग अस्पताल से आये हो। आराम करो। लकी का ख्याल रखना, मैं फिर आ जाऊंगी।”
” नहीं मौसी, खाना खाये बिना तो मैं आपको जाने ही नहीं दूॅगी।” वीथिका ने आगे बढ़कर रेशमा को कन्धे से पकड़कर बैठा लिया।
” आप चिन्ता न करें मौसी, मैं रास्ते से लकी की दवाइयां, दूध, फल, दलिया के साथ अपने तीनों के लिये खाना भी ले आया हूॅ।” कदम्ब बोल पड़ा और हाथ के पैकेट लेकर रसोई में चला गया।
इस आग्रह की रेशमा अवहेलना न कर पाई और वहीं वैदेही के पास बैठकर उसके सिर को सहलाने लगी।
वैदेही के पास रेशमा को बैठा हुआ वीथिका उठकर रसोई में कदम्ब के पास अन्दर चली गई। कुछ देर बाद ही वीथिका ने आकर जमीन पर चटाई बिछाई और कदम्ब के साथ मिलकर खाना लाकर रखने लगी। ,
तीन थालियों में जब खाना लग गया तब रेशमा की दृष्टि सोती हुई वैदेही की ओर उठ गई –
” अस्पताल से चलते समय इसे दूध, ब्रेड और बिस्कुट खिला दिया था। जब सोकर उठेगी तब दलिया खिलाऊंगी। देखिये, मैं इसके लिये दलिया बनाकर ले आई हूॅ जिससे अचानक जागने पर तुरन्त दे सकूॅ।” वीथिका ने एक छोटा सा टिफिन बॉक्स खोलकर रेशमा को दिखा दिया
खाना खाकर जब रेशमा चलने लगी तो कदम्ब और वीथिका आकर उसके पैरों के पास जमीन पर बैठ गये और दोनों ने उसका एक एक हाथ अपने हाथों में ले लिया। रेशमा कुछ समझ नहीं पा रही थी कि आखिर आज इन दोनों को हुआ क्या है?
” क्या बात है? आज तुम लोग यह कैसा व्यवहार कर रहे हो? “
कदम्ब और वीथिका ने एक दूसरे को ऑखों से कुछ इशारा किया और वीथिका ने रेशमा के घुटनों पर अपना सिर रख दिया – ” मौसी, आज आपकी नातिन अस्पताल से घर आई है। इस खुशी के अवसर पर आज हम दोनों आपसे कुछ मॉगना चाहते हैं।”
” मेरे पास है ही क्या बच्चों? मैं तुम दोनों को क्या दे सकती हूॅ ? मैं तो खुद अभिशप्त हूॅ।” रेशमा की ऑखों में ऑसू आ गये।
” आप जो दे सकती हैं, हम आपसे वही मांगेंगे। आप वादा करिये कि आप मना नहीं करेंगी।”
” मेरा वादा है कि अगर मेरे पास होगा तो मैं जरूर दे दूंगी।”
कदम्ब और वीथिका ने एक बार फिर एक दूसरे की ओर देखा फिर वीथिका ने रेशमा के गले में बाहें डाल दी –
” आज के बाद आप हम तीनों को छोड़कर कहीं नहीं जाओगी। अब आप हमारे परिवार की सदस्य की तरह हमारे साथ रहेंगी। अब आप उस किन्नर समाज के साथ गली गली नाचने गाने का काम नहीं करेंगी।”
” ऐसा कैसे हो सकता है ? मेरा स्थान तो उसी समाज में है, उससे अलग होना असंभव है। हमें तो तथाकथित सभ्य समाज में रहने का अधिकार ही नहीं है। जन्म लेते ही या तो हमें मार दिया जाता है या त्याग दिया जाता है। लोग क्या कहेंगे ? मेरे कारण तुम्हें भी अपमान और बेइज्जती सहनी पड़ेगी। मुझे जाने दो बेटा, मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम सबके साथ रहेगा।”
” जब हमारी बिटिया जीवन और मृत्यु से संघर्ष कर रही थी, उस समय समाज की बात तो भूल जाइये हम दोनों के परिवारों ने भी हमारा साथ नहीं दिया था। हमारी विपत्ति जानकर सारे रिश्तेदारों ने हमारे यहॉ आना और अपने यहॉ बुलाना छोड़ दिया है। अब आप ही हमारी एकमात्र रिश्तेदार हैं।” कदम्ब का दुखी स्वर।
” मौसी, अगर आज आप हमें छोड़कर गईं तो हम यही समझेंगे कि आप मुझे अपनी बेटी नहीं मानतीं। हम गरीब अवश्य हैं, हमारे पास कुछ नहीं है लेकिन हमारे पास प्यार भरा दिल है। आपको प्यार और सम्मान देने में हम लोगों की ओर से कोई कमी नहीं होगी। हमारी लकी की आप ही दादी – नानी हैं। उसे अपनी प्यार और ममता से वंचित मत करिये।” वीथिका ने सिसकते हुये रेशमा को अपने आलिंगन में जकड़ लिया।
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मंगला मुखी (भाग-2) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर