” अर्थशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार मांग व पूर्ति में सीधा संबंध होता हैं, और वस्तु की कीमतों का घटना व बढ़ना इन दोनों तथ्यों पर आधारित हैं” निशा अपने ही कमरे से आती हुई आवाज को सुनकर उसके पीछे-पीछे गयी।
” बबलू!!तुम यहाँ पर क्या कर रहें हो ? “निशा चौंक कर बोली।
” वो…..दीदी जी!! बबलू घबरा गया था।
” अरे बबलू!! तुम्हें कितनी बार समझाया की किताबों को हाथ मत लगाओ पर तुम मानते क्यों नहीं हो?”बबलू की माँ कान्ति बहन गुस्से से बोली।
” कान्ति बहन!! आप बबलू को नहीं डाटें मैं स्वयं उससे बात करती हूँ” निशा बोली।
निशा एक तीस वर्षीय महिला हैं वह अर्थशास्त्र की प्रवक्ता हैं और उसके पति परेश गणित के प्रवक्ता हैं।
कान्ति बहन निशा के घर काम करती हैं और बबलू उनका इकलौता बेटा हैं, कान्ति बहन के साथ वो भी घर के छोटे-मोटे काम करता हैं पर पहले कभी निशा ने उसके इस पढ़ाकू रूप को नहीं देखा था।
आज बारह वर्षीय बबलू बी.काॅम के पाठ्यक्रम वाली अर्थशास्त्र की पुस्तक पढ़ रहा था।
” बबलू तुम्हें इस पुस्तक से क्या समझ में आया?”
” दीदी जी!! ज्यादा कुछ तो नहीं समझ पाया पर ये पंक्तिया बाजार में मिलने वाली रोजमर्रा की चीजों व उनके दाम के बारे में बताती हैं ” बबलू घबराते हुए बोला।
निशा आश्चर्यचकित थी एक बारह वर्षीय बच्चे ने कितना सहज विश्लेषण किया है यह बच्चा बहुत मेधावी हैं।
” बबलू तुम कौनसी कक्षा में पढ़ते हो? ” निशा ने सवाल किया।
” दीदी जी मैं छठी कक्षा में पढ़ता था पर कोरोना काल में माँ ने मेरी पढ़ाई बन्द करवा दी हैं ” बबलू उदास लगा।
” कन्ति बहन!! आपने बबलू की पढाई क्यों छुडवाई?” निशा ने सवाल किया।
” क्या बताऊँ मैडमजी आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं रही इसके पिता की नौकरी भी चली गयी हैं मजबूर होकर यह कदम उठाया है” कान्ति बहन की आंखो में आंसू आ गए।
निशा ने एक निश्चय कर लिया था।
” बबलू अगर तुम पढ़ना चाहो तो मैं तुम्हारी पढाई का खर्च उठाने के लिए तैयार हूँ और पाठयक्रम समझने में तुम्हारी सहायता भी करूंगी।”
तभी परेश वहां आ गये सारी बात जानकर उन्होंने भी निशा का समर्थन किया।
” कान्ति बहन!! आपके बेटे में असाधारण प्रतिभा छुपी हैं, इसकी शिक्षा की जिम्मेदारी अब हमारी हैं” परेश बोले।
और इस तरह बबलू की शिक्षा सुचारु रूप से चलने लगी थी वह सच में ‘ गुदड़ी का लाल’ निकला उसकी ज्ञानपिपासा व लगन देखकर निशा व परेश अभिभूत थे।
जैसे-जैसे बबलू आगे बढ़ता जा रहा था निशा व परेश को आत्मसंतुष्टि मिल रही थी।
आज रक्षाबंधन का पावन पर्व था निशा बड़ी उत्साहित थी।
उसका छोटा भाई व भाभी उसी शहर में रहते थे और भाई के विवाहोपरान्त यह पहली राखी थी ,निशा ने बहुत सुन्दर राखियों के साथ-साथ भाई, भाभी के लिए उपहार भी खरीदे।
राखी के दिन रविवार था अतः निशा अपने भाई-भाभी के साथ पूरा दिन बिताने के लिए उत्सुक थी।
” आलोक,शशि!! कहाँ हो तुम लोग…!! मैं तुम्हारे राखी बांधने आयी हूँ ” निशा खुश होकर बोली।
” अरे दीदी!! हम आपका ही इंतजार कर रहें थे जल्दी से राखी बंधवा लेते हैं” शशि बोली।
शशि जो निशा की एकमात्र भाभी थी उसके चेहरे पर तल्खी आ गयी थी।
” जल्दी क्या हैं शशि? आज तो रविवार हैं हम सब पूरा दिन साथ बिताएंगे।”
” दीदी!! आपने हमें पहले आने की सूचना तो नहीं दी थी, इसलिए हम दोनों हमारे मित्रों के साथ पिकनिक मनाने जा रहें हैं पर राखी बंधवाकर मैं जाना चाहता हूँ ” आलोक ने बोला।
क्या राखी पर एक बहन को पूर्व सूचना देकर आना चाहिए?
निशा को अपने भीतर कुछ चटकता हुआ महसूस हुआ, उसके भाई-भाभी को राखी का कोई उत्साह नहीं था वह सिर्फ खानापूर्ति करना चाहते थे।
निशा ने बड़े बेमन से राखी बांधी, भाई-भाभी को उपहार दिये जिसे उन दोनों ने बिना देखे एक तरफ रख दिया।
मेज पर तरह-तरह के व्यंजन सजे हुए थे निशा को उन्होंने बड़ी औपचारिकता से नाश्ते के लिए बोला,निशा बहुत कुछ नहीं खा सकी थी वह मन ही मन दुखी थी।
” अच्छा आलोक व शशि!! मैं अब चलती हूँ ” निशा का वहां दम सा घुटने लगा था।
“दीदी !! यह आपका राखी वाला नेग हैं ” आलोक ने ग्यारह हजार रूपये का लिफाफा निशा को दे दिया।
” नहीं आलोक!! मैं इतना नेग नहीं लूंगी, तुम मुझे सिर्फ हजार रूपये दे दो”निशा ने हजार रूपये रखकर बाकी आलोक को लौटा दिए।
” हजार रूपये!! दीदी आलोक का पैकेज लाखों मैं हैं अगर हम हमारी बहन को इतना कम नेग देंगे तो हमारा उपहास होगा” शशि के चेहरे पर अभिमान था।
” बहनें सिर्फ नेग लेने नहीं आती हैं, वह भाई-भाभी से निश्चल प्रेम और अपनापन चाहती हैं, मैं स्वयं आर्थिक रूप से संबल हूँ मुझे इतने नेग की आवश्यकता नहीं हैं”निशा तटस्थ भाव से बोली।
और निशा वहां से चली आयी ।
जीवन अर्थशास्त्र नहीं होता हैं जहाँ रिश्तों में प्यार की मांग करने पर उसकी पूर्ति बढ़ती जाती हैं,पर रिश्तों की कीमत अवश्य बाजार तय करता हैं,निशा के मन में विचार चल रहे थे।
घर आकर निशा अपने कमरे में अनमनी होकर बैठी थी।
” दीदी जी!! क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ? बबलू दरवाजे पर खड़ा था साथ में कान्ति बहन भी थी।
” बबलू अभी मेरा तुम्हें पढ़ाने का मन नहीं हैं ” निशा अनमनी सी बोली।
” आज बबलू आपसे पढ़ने नहीं आया हैं वह आपसे राखी बंधवाना चाहता हैं मैडमजी, कृपया बच्चे की इच्छा का सम्मान करें” कान्ति बहन हाथ जोड़कर बोली।
” आ जाओ बबलू!! ” निशा मुस्कुराती हुई बोली।
निशा ने बबलू के हाथों में राखी बांधी व उसका मुँह मीठा करवाया बबलू ने निशा के चरण स्पर्श करते हुए एक छोटा पैकेट उसके हाथ में रख दिया, पैकेट में बहुत सुन्दर चूड़ियों का सेट था।
” अरे वाह बबलू!! तुम तो बड़ा प्यारा तोहफा लेकर आए हो पर इतने रूपये कहाँ से आये?” निशा शंकित नजर आयी।
” दीदी जी!! मैंने मुझसे छोटी कक्षा के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया हैं, और उनके माता-पिता मुझे बदले में कुछ रूपये देते हैं इससे मेरी आमदनी हो जाती हैं आज मेरी पहली कमाई से मैं आपके लिए तोहफा लाया हूँ ” बबलू उत्साहित था।
निशा आश्चर्यचकित व भाव विभोर हो गयी आज इन साधारण चूडियों के सामने आलोक का लाखों रूपये वाला पैकेज छोटा लग रहा था, आज नन्हें से बबलू ने उसे प्यार व अपनेपन का प्रतिदान लौटा दिया था।
” बबलू तुम जीवन में बहुत प्रगति करों ” निशा के हाथ आशीर्वाद में उठ गये थे।
जीवन में प्यार की मांग व पूर्ति कीमतों पर आधारित नहीं हैं, राखी का रिश्ता सिर्फ नेग-उपहार व आडम्बर तक सीमित नहीं है, उपहार की कीमत नहीं देने वाले की भावना ज्यादा मायने रखती हैं, निशा ने फिर से विचार किया।
निशा एक मनचाही मांग की असाधारण पूर्ति से बहुत खुश हो गयी थी,बबलू ने उसे स्नेह व आदर की अनमोल कीमत देकर खरीद लिया था।
#रक्षा
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पायल माहेश्वरी
यह रचना स्वरचित और मौलिक हैं
धन्यवाद ।