मैंने अपनी बेटी ब्याही है, बेची नहीं है! – मनीषा भरतीया

नैना एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती थी|घर में माता-पिता चार बहनें और एक भाई-भाभी थे। दो बहनों की शादी हो चुकी थी और दो नैना और उसकी छोटी बहन कुंवारी थीं। अब रिश्ते में बंधने की बारी नैना की थी। नैना के लिए कई रिश्ते देखे गए, लेकिन कुछ नैना को तो कुछ नैना के परिवार वालों को पसंद नहीं आये।

क्योंकि नैना में सिर्फ एक ही खराबी थी कि वह शरीर से थोड़ी भारी थी। बाकी नैन-नक्ष और कटिंग तो उसकी लाखों में एक थी। देखते देखते एक रिश्ता पसंद आया। लड़का मध्यमवर्गीय परिवार से था। आर्थिक स्थिति की दृष्टि से तो खानदान नैना के परिवार से भी कम था।

लेकिन बात विचार से खानदान (नैना के पिता) श्याम लाल जी को उत्तम लगा। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि लड़का श्याम लाल जी को पहली नजर में ही भा गया। लड़के का रंग-रूप, दक्षता और सबसे ज्यादा उसका हुनर|

यह सब देखकर उनकी तो जैसे नजर ही नहीं हटी। उनके बेटे को भी लड़का पहली नजर में हीं जंच गया। लड़के के परिवार में उसके पिताजी दो बहनें और एक भाई थे। जिसमें से एक बहन की शादी हो चुकी थी। मिलाजुला कर दोनों 20-25000 ले आते थे। तो घर का खर्चा चलने में कोई परेशानी नहीं होने वाली थी।

श्याम लाल जी ने सोचा! श्याम लाल जी को लड़के के पिता की एक बात मन ही मन बहुत खटक रही थी। वो यह कि वह अपनी लड़की की शादी के पहले सूरज की शादी क्यों कर रहे थे। क्योंकि लड़की सूरज से बड़ी थी, तो उन्होंने बात-बात में पटवारी जी से पूछ ही डाला। “एक बात पूछूं अगर आप बुरा नहीं मानें तो?”

“नहीं आप बोलिए?” सामने से पटवारी जी ने कहा।

“आप पहले अपनी बेटी की शादी क्यों नहीं कर रहे हैं? जबकि वह तो सूरज से बड़ी है।”

तो पटवारी जी ने बड़ी विनम्रता से कहा! “इन बच्चों की मां नहीं है, अगर बहू लाने से पहले बेटी को विदा कर देंगे तो हमें खाने की भी मुश्किल हो जाएगी और दूसरी बात यह भी है कि एक बेटी आएगी और दूसरी बेटी जाएगी तो घर आंगन भी हरा भरा रहेगा।”

लड़के के पिता की बात ठीक लगी।



दोनों तरफ से सब ने अच्छा मुहूर्त देख तक कर सगाई पक्की कर दी। नैना और उसकी मां भी रिश्ते से बहुत खुश थे। यह सोच कर कि लड़का भी बहुत अच्छा है और परिवार भी छोटा है। पैसों का क्या है वह तो आज नहीं तो कल हो जाएंगे। यह तो लड़की का अपना भाग्य है। नैना की मां और उसके पिताजी ने सोचा।

सगाई और शादी के बीच सिर्फ 1 महीने का वक्त था। देखते-देखते एक महीना कैसे निकल गया पता ही नहीं चला। और वह शुभ घड़ी आ गई जब नैना को अपने मायके को छोड़ ससुराल में बसेरा करना था। लेकिन शादी वाले दिन एक मुश्किल आन पड़ी थी। श्याम लाल जी के दूर के रिश्तेदार से यह खबर मिली कि आपने नैना बेटी का रिश्ता कहां कर दिया है, यह लोग एकदम अच्छे नहीं हैं। मेरी बेटी का घर इनके घर के ठीक बगल में है। पटवारी जी का अपनी पत्नी के साथ भी व्यवहार कभी भी अच्छा नहीं था। बीमारी की अवस्था में भी

वे अपनी पत्नी से काम करवाते थे। यहां तक कि उनकी पत्नी इलाज के अभाव में ही चल बसी। उनकी पत्नी को दिल की बीमारी हो गयी थी, जिस के इलाज के लिए ₹200000 लगने थे। लेकिन उन्होंने रुपयों को ज्यादा महत्व दिया। दोनों बेटियों का भी अपनी मां के प्रति व्यवहार अच्छा नहीं था। किसी भी काम में मदद नहीं करना और मुंह पर जवाब देना इन दोनों के स्वभाव में है। हां एक बात है जो अच्छी है वो ये कि नैना बेटी की शादी जिस लड़के से हो रही है, वो लड़का (सूरज) बहुत ही भला और नेक है।

यह सब सुनकर श्यामलाल जी एक बार तो गहरी सोच में पड़ गए कि अब करें तो क्या करें? सारे कार्ड बंट गए। बारात आंगन में आने वाली है, अगर अब रिश्ता तोड़ते हैं तो पूरी बिरादरी में हमारी नाक कट जाएगी। हम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे| और तो और इन सब का मेरी दूसरी बेटी पर भी असर पड़ेगा। फिर उसकी शादी में भी अड़चनें आएंगी।

इसी सब उधेड़बुन में श्याम लाल जी चक्कर काट रहे थे। तभी नैना की मां वहां आ गई और कहने लगी “शादी का घर है और आप कोई काम करने के बजाय यूं चक्कर क्युं काट रहे हैं?”

उन्होंने सारी बात अपनी धर्मपत्नी को बताइ। एक बार तो नैना की मां भी परेशान हो गई कि क्या करें? लेकिन फिर दोनों ने मिलकर यह तय किया कि जिससे शादी हो रही है वो लड़का ठीक है, तो वह अपनी पत्नी के साथ कुछ भी अनैतिक नहीं होने देगा। यह सब सोचकर वे खुशी-खुशी बारात की स्वागत के तैयारियों में लग गए। सजावट ठीक से हुई है या नहीं कैटरिंग वाले अपना काम ठीक से कर रहे हैं या नहीं वगैरह-वगैरह!

देखते-देखते शाम हो गई और बारात दरवाजे पर आ गई और सब बरात के स्वागत में लग गये। विवाह अच्छे से संपन्न हो गया, अब विदाई होनी थी। नैना की मां, बहनें और नैना का रो-रोकर बुरा हाल था। लेकिन बेटी को विदा तो करना ही था और समाज की रीत को निभाना ही था।

अगले दिन पग फेरे की रस्म थी तो नैना का भाई पहुंच गया अपनी बहन को लाने के लिए। नैना की तो खुशी का ठिकाना ही नहीं था, अपने भैया को देखकर| जल्दी-जल्दी चप्पल पहनी और आ गयी मायके! क्योंकि वो तो सुबह से ही चहक रही थी कि कब भैया आयें और उसे लेकर जाएं।



घर पहुंची नहीं कि मां के सवालों की बौछार शुरू हो गई। ससुराल में सब कैसे हैं बेटा? सब ठीक तो है, तेरा ख्याल तो रखते हैं? तू खुश तो है ना? तुझे किसी चीज की तकलीफ तो नहीं वगैरह-वगैरह।”

“अरे मां कल रात ही तो गुजारी है मैंने वहां, आज सुबह तो तुम्हारे पास आ ही गई। अच्छा या बुरा समझने के लिए भी तो वक्त लगता है।”

तो मां ने अपने भोलेपन में कहा “ठीक कहा बेटी, मां हूं ना तो बच्चे की एक पल की दूरी भी बेचैन कर देती है।”

“अच्छा मां अब ज्यादा भावुक मत हो और न मुझे करो। फटाफट से ये बताओ कि खाने में क्या बनाया है, क्योंकि आपको तो पता है कि मैं जितना भी टेस्टी खाना खा लूं, लेकिन आपके हाथों के बने खाने में जो बात है वह किसी में नहीं।”

मैंने तेरे पसंद का पकौड़ी का रायता, मूली की सब्जी, आलू की सब्जी और मिसी रोटी बनाई है।”

“वाह! मां जल्दी से दे दो बहुत भूख लगी है।”

फिर नैना ने खाना खाया, सबसे जी भर के बातें की इतने में सुबह से शाम हो गई। फिर सूरज अपने भाई और दोस्तों के साथ नैना को लेने आ गये। नैना की मां और नैना तो इस तरह रोए जा रही थी, जैसे फिर से विदाई हो रही हो।

बस अब शुरू होने वाली थी, नैना के दुखों की घड़ी। सुबह-सुबह नैना उठी और ससुराल में पहली रसोई बनाई। लेकिन ये क्या सुबह से 9 बज गये, 10 बज गये और फिर 11 बज गये| अब तो इंतजार की इंतेहा हो गई, तब नैना ने अपनी ननद से पूछा कि आज मासी नहीं आयेगी क्या?

 

तब भी उसकी ननद ने ये नहीं बताया कि हमनें मासी को छोड़ दिया है। बोली! “पता नहीं बीमार पड़ गयी होगी।”

नैना के हाथों की मेंहदी भी नहीं उतरी थी और उसे काम में लगा दिया गया। उसने सारे बर्तन साफ किए, कपड़े धोए, झाड़ू किया, उसने सोचा भी कि शायद दीदी आएगी और कहेगी कि भाभी आप रहने दो मैं कर लूंगी। अभी तो आपकी मेहंदी का भी रंग नहीं छूटा है| लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, वो टस से मस नहीं हुई, चुपचाप बैठी बैठी देखती रही।

ससुरजी भी चुपचाप वैठ कर देख रहे थे| ये नहीं कि अपनी बेटी को समझाये कि जाकर अपनी भाभी का काम में हाथ बटांओ। नैना रोती जा रही थी और काम करती जा रही थी| साथ ही साथ मन ही मन ये भी सोच रही थी कि एक ही आदमी के दो चेहरे हो सकते हैं| शादी से पहले तो पापाजी बेटी-बेटी करते नहीं थकते थे और आज पहले दिन से ही उन्होंनें अत्याचार करने शुरू कर दिये| ननद ज्यादातर बदमाश होती हैं ये तो सुना था, पर ससुर ऐसा कम होता था।



और रही बात सूरज की तो वो इन सब से अनभिज्ञ थे क्योंकि उन्होंनें शादी के लिये जो एक सप्ताह की छुट्टी ली वो खत्म हो गयी थी। इसलिये वो तो सुबह नौ बजे ही आंफिस के लिये निकल गये थे। अब ये अत्याचार तो रोज का ही था। रोज वो इसी तरह काम करती रहती और दोंनों बाप बेटी चुपचाप देखते रहते|

इतना ही नहीं उसे अपने मायके में फोन भी नहीं करने देते जब भी वो फोन करने बोलती तो कहते की तुम मिस कॉल दो फोन में वैलेसं नहीं है, लेकिन नैना बहुत स्वाभिमानी थी, उसे मिस काल देना अच्छा नहीं लगता था| और जब फोन आता तब भी उसे खुलकर बात करने की इजाजत नहीं थी, क्योंकी ननद जहां भी जाओ जासूस बन कर खड़ी रहती! इसलिये चाहते हुए भी वह अपनी वय्था किसी से कह नहीं पाती।

 

जब भी मां पूछती बेटा तू ठीक तो है ना, तब बह ऊपरी मन से कह देती| हां मां मैं बिल्कुल ठीक हूं| आप ठीक हो ना? घर में सब ठीक हैं? यह कहकर वो फोन रख देती। लेकिन मां का दिल ये मानने को तैयार नहीं था… कि सब ठीक है, क्योंकि एक मां अपने बच्चे से कितनी ही दूर क्यों न हो लेकिन उसकी सिसकियों की आहट पहचान लेती है और फिर लड़के के पिता के स्वभाव से भी वाकिफ थी। इसलिये उसका दिल बहुत घबरा रहा था।

तो उसने नैना के बाबूजी से कहा! “जी मेरा जी बहुत घबरा रहा है, आप नैना को ले आइये| मुझे लग रहा है कि वो बहुत तकलीफ में है”|

तो नैना के बाबूजी ने कहा! “मुझे भी ऐसा ही लग रहा है| आज तो बहुत रात हो गयी है, मैं कल सुबह ही जाकर उसे ले आऊंगा|”

दुसरे दिन संजोग से रविवार था, तो नैना के पिताजी ने सोचा कि फोन बिना किये जाते हैं, ताकी अचानक जायेंगे तो असलियत का पता चल जायेगा और आज दामाद जी भी मिलेंगे तो सारी बात क्लियर हो जायेगी| मन ही मन यही सब सोचते हुए वे अपने बेटे के साथ नैना के ससुराल जा पहुंचे।

सबसे पहले नैना की हालत देखकर उसके पिताजी और भाई गुस्से से आग बबुला हो गए! नैना के बिखरे हुए बाल, चेहरे पर पसीना और घबराहट और हाथ में पोछा देख कर जैसे ही नैना के पिताजी ने चिल्लाकर आवाज दी और कहा “ये क्या हाल बना दिया आपने मेरी बेटी का? मेरी फूल जैसी बच्ची दो महीने में मुरझा गयी है| आप लोग इससे नौकरों की तरह काम ले रहे हैं| इसलिये आप इसे जब भी भेजने को कहो, कोई न कोई बहाना करके मना कर देते हैं। वो आप ही थे| ना जिन्होंने ये कहा था| , की एक बेटी जायेगी और दूसरी बेटी आयेगी| हमारे घर तो कुछ काम ही नहीं है, सिर्फ खाना बनाने का काम है, बाकी सब काम के लिये मासी है, हम तो इसे अपनी बेटी बना कर रखेंगें| क्या हुआ आपके खोखले आश्वाशन का!”

 

इतना सब होने के बाद भी पटवारी जी अपनी निर्लजता से बाज नहीं आए और कहा कि मासी है, वो तो वो 4-5 दिन से बीमार है, इसलिये नहीं आई!” यह सब सुनते ही नैना के सब्र का बांध टूट गया और वो एक छोटे बच्चे की तरह रोते बिलखते हुए अपने पिता और भाई के गले लगते हुए बोली!



“मैंनै चुपचाप मुंह पर ठप्पी लगाकर आज तक आपका और दीदी का अत्याचार सहा है, लेकिन कुछ नहीं कहा! मैं जिस दिन से ब्याहकर आयी हूं, उस दिन से कोल्हु के बैल की तरह सुबह से लेकर रात तक अकेले सारा काम किया है, जब फोन में बात करने भी बोलती तो आप लोग बात नहीं करने देते| जब कभी मेरे मायके से भी फोन आता तो दीदी हर वक्त सर के ऊपर खड़ी रहती| मैं तो अपनी वय्था किसी को भी नहीं बता पाई, क्योंकि मैं  अगर सूरज जी को भी बताती तो उन्हें यही लगता की मैं उन्हें उनके परिवार के खिलाफ भड़का रही हूं| इसलिए अंदर ही अंदर घुट्ती रही| यहां तक कि जब भी मायके जाने की बात बोलती तो यह जवाब मिलता की क्या कोई फंक्शन है तुम्हारे पीहर में? रोज-रोज बेटियों का काम  ही क्या है पीहर में। भगवान से डरिए पापा जी|”

बेटी की दर्दे व्यथा सुनकर नैना के पिता ने कहा बेटी अब एक पल भी तुम्हें यहां नहीं रहना है। पटवारी जी एक बात कान खोल कर सुन लीजिए।

 

मैंने अपनी बेटी ब्याही है, बेची नहीं है।

 

उसके बाद नैना के पिताजी ने नैना से पुछा की दामाद जी कहां है? एक वार उनकी भी राय जान लेना जरूरी है की वो क्या चाहते है, क्योंकि इन लालची और छोटी सोच वाले लोंगों के बीच मरने के लिये अपनी फुल ज़ैसी वच्ची को नहीं छोड़ सकता, तब नैना ने कहा

की पापा वो कम्पनी के  काम से दो दिन के लिये बाहर गये है, आज बापसी है बस आधे घण्टे में पहुंच जायेंगे| ठीक है बेटा चल हम बाहर ही इतंजार कर लेते है, हमें तो इन लोंगों से घिन्न आती है।करीब एक घण्टे इतंजार करने के बाद सूरज आया| आते ही सूरज ने अपने ससुर जी और साले साहब के पैर छुये और पुछा! आप लोग बहार क्युं खड़े है, प्लीज अन्दर चलिये। तब नैना के बाबूजी ने कहा ये तो आप अपने पिताजी से ही पुछिये| तब

 

सूरज ने अपने पिता से पुछा! “क्या किया है आपने आखिर? आप बताए चुप क्युं खड़े है? बोलिये।ये क्या बोलेंगे बेटा मैं बताता हूं इनका मुंह ही है नहीं बोलने का, जब से नैना शादी करके आई है उस दिन से आपके पिताजी और बहन दोनों मिलकर नैना को प्रताड़ना दे रहे हैं। नैना के आते ही इन्होंने काम वाली मांसी को हटा दिया।  और जब नैंना ने पूछा कि मांसी  क्यों नहीं आ रही है तो कहने लगे मांसी को हटा दिए क्योंकि एक आदमी का खर्च भी तो बढ़ गया है| सारा दिन जानवरों की तरह उससे काम करवाया| इतना ही नहीं कभी फोन पर बात भी नहीं करने दी, और जब कभी भी हम भी फोन करते तो उस समय भी कान लगाकर सारी बातें सुनते रहते। यह बिचारी सारी व्यथा अकेले ही सहती रही ना इसने आपको कुछ बताया और ना हमें बता पाई।

आपको कुछ इसलिए नहीं मालूम क्योंकि आप सुबह 9:00 बजे निकल जाते हो रात को 11:00 बजे घुसते हो, और रविवार को भी अपनी बहन के लिए लड़के देखने निकल जाते हो| हमें भी यह सब मालूम नहीं चलता लेकिन जब भी हम नैना को भेजने की बात करते तो आपके पिताजी बोलते की आज उसकी ननद आई है आज उसकी ननद की तबीयत खराब है, बगैरह -बगैरह| यह सब सुनकर सूरज को बहुत खराब लगा और उसने नैना से कहा! कम से कम तुम मुझे तो बता सकती थी, मुझे बहुत वार शक तो हुआ तुम्हारा मुरझाया हुआ चेहरा देखकर लेकिन जब भी पूछता तो तुम कहती नहीं सब ठीक है| बस बहुत हो चुका नैना अब तुम्हें सहने की जरूरत नहीं है| पापा मैंने कभी सोचा भी नहीं था| की आप लालची होने के साथ-साथ इतनी छोटी सोच वाले भी है| आपने पैसों की लालच में आकर मां को भी खो दिया।




मां इलाज के अभाव में चल बसी| बीमारी की हालत में भी उनसे काम करवाया वह कहती रही मुझे चक्कर आ रहे हैं| लेकिन आप ने उनकी एक न सुनी| उस समय तो मैं बहुत छोटा था, और कुछ कर नहीं सकता था| ” लेकिन अब ऐसा नहीं होगा| मैंने अपनी मां को तो खो दिया है, लेकिन अपनी पत्नी को आप के हांथों बली नहीं चढ़ने दूंगा। मुझे तो शर्म आती है आपको अपना पिताजी कहते हुए ! आपने मेरी पत्नी का खर्चा जोड़ा|   जबकि पूरा घर खर्च मेरी कमाई से चलता है, और हां जाते-जाते एक बात दीदी आपसे भी कहता हूं| कम से कम एक औरत होने के नाते आपको तो अपनी भाभी की मदद करनी चाहिए थी| भगवान ना करे के  जो नैना के साथ आपने  किया है कल आपके साथ भी ऐसा ही हो।

 

नैना चलो अपना सामान पैक करो, हमें यहां नहीं रहना| फिर एक बार तो सूरज नैना को लेकर अपनी ससुराल चला गया| बाद में सूरज ने रेंट पर घर ले लिया। आज दोनों खुश हैं अपनी गृहस्थी में अपने बेटे के साथ। 

यह कहानी आज से लगभग 20 साल पुरानी है, तब लैंडलाइन बहुत कम घरों में होती थी और मोबाइल फोन में भी कॉल चार्ज बहुत महंगा था| इसलिए ज्यादातर बाहर जाने वाले आदमी के पास  ही फोन होता था और घर में एक फोन होता था| जिसको सभी यूज करते थे|

दोस्तों, यह कहानी नहीं हकीकत है। दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें पैसों के अलावा कुछ नहीं सुझता। उनके नजर में पैसों के आगे बीवी और बहू किसी की कोई अहमियत नहीं। उनके लिए पैसा ही भगवान है। आपको क्या लगता है सूरज ने अपनी पत्नी का साथ देकर क्या गलत किया? कृपया कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताएं। मुझे तो लगता है कि सूरज ने ठीक किया| क्योंकि अगर माता-पिता भी गलत हो तो ना चाहते हुए भी बच्चे को कड़ा कदम उठाना ही पड़ता है।और हां आपको मेरा ब्लॉग कैसा लगा, अगर अच्छा लगे तो प्लीज लाइक कमेंट और शेयर जरूर कीजिए।

 

धन्यवाद मेरा ब्लॉग पढ़ने के लिए|

 

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मनीषा भरतीया

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