मानवता जिंदा है-नेकराम Moral stories in hindi

साड़ी वाला,,,  साड़ी ले लो रंग ,,, रंग बिरंगी सुंदर सुंदर साड़ी ले लो,,,आ गया हूं आपके मोहल्ले में आप की गली में लेकर चलती फिरती साड़ियों की दुकान –

विमला रसोई घर में खाना पका रही थी रंग बिरंगी साड़ी का नाम जब कानों में गूंज  ,,तो ,, रहा नहीं गया मन करने लगा देखूं तो सही बालकनी से झांक कर आखिर कौन साड़ियां बेच रहा है और गली में कौन-कौन पड़ोसने खरीद रही है साड़ियां

विमला ने गैस चूल्हे पर पक रहे चावल को देखा जो अभी बहुत कच्चे थे गैस की आंच धीमी करके विमला बालकनी पर आकर खड़ी हो गई

पड़ोस में रह रही रीटा अग्रवाल गली में आने वाले सभी फेरी वालों से कुछ ना कुछ सामान अवश्य खरीद लेती थी

रीटा अग्रवाल ने 4 साड़ियां फेरीवाले से पसंद करके खरीद ली बाकी पड़ोसनो ने एक-एक साड़ियां खरीदी रीटा अग्रवाल की नजर छत के ऊपर बालकनी से झांक रही विमला पर पड़ी

रीटा अग्रवाल ने आवाज लगाते हुए कहा विमला बहन तुम भी नीचे आ जाओ एक साड़ी तो खरीद ही लो ,,,,,

करवा चौथ भी आने वाला है अभी साड़ी खरीदने पर बाद में खरीदनी नहीं पड़ेगी त्योहारों में अक्सर दुकानदार साड़ियां महंगी करके बेचते हैं

अगर हम सब पड़ोसन मिलकर इस गरीब साड़ी वाले भैया से साड़ियां खरीदेंगी तो हमें बहुत कम कीमत में सुंदर और पसंद की साड़ी मिल जाएगी और इस फेरीवाले भैया की भी दुकानदारी हो जाएगी

रीटा अग्रवाल ने साड़ी वाले भैया के पुराने धूल से सने कपड़ों को देखकर कहा

इस कहानी को भी पढ़ें:

“स्वाभिमानी” – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

आजकल पटरी व फेरीवालों से कोई महिला साड़ियां नहीं खरीदती है सभी लोग शोरूम में साड़ियां खरीदने जाती हैं और स्वयं को लूटा हुआ महसूस करती हैं

अपने पतियों की कमाई पानी की तरह बहा देती है शोरुम वाले 300 रुपये की साड़ी 900 रुपये की बताते हैं अब हमें भी त्यौहार मनाना होता है इसलिए हमें महंगी साड़ियां खरीदनी पड़ती है

पास खड़ी पड़ोसनो ने भी रीटा अग्रवाल का समर्थन दिया

विमला ने बालकनी से झांकते हुए रीटा अग्रवाल को बताया गैस पर मेरे चावल पक रहे हैं मैं फिर किसी दिन साड़ी खरीद लूंगी

रीटा अग्रवाल ने नीचे खड़ी पड़ोसनो और उस साड़ी वाले भैया से कहा जरा मैं विमला को नीचे गली में घसीट कर लाती हूं

रीटा अग्रवाल तुरंत विमला के पहले माले पर पहुंची दरवाजे की बेल बजा दी विमला ने दरवाजा खोलकर रीटा अग्रवाल को अपने फ्लैट के अंदर आने को कहा

विमला ने अपनी पड़ोसन रीटा को सोफे पर बिठाते हुए कहा दीदी आप तो जानती हो मेरे पति एक सिक्योरिटी गार्ड है

10 हजार रुपए महीने की सैलरी मिलती है

जिसमें बिजली पानी का बिल 3 बच्चों की पढ़ाई लिखाई का खर्चा

आप तो जानती हो दीदी यह फ्लैट भी किराए पर लिया हुआ है इस छोटे से कमरे के 3 हजार अलग से देने होते हैं

मेरे पति विश्वास गोयल महीनों महीनों घर नहीं आते सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी में किसी भी त्योहारों को छुट्टी नहीं मिलती

रात दिन बिल्डिंग की रखवाली करनी होती है और कुछ ऊंच-नीच हो जाए तो सभी लोग सिक्योरिटी गार्ड के ऊपर उंगली उठाते हैं

लगातार काम करने की वजह से मेरे पति बीमार पड़ गए अस्पताल में भर्ती है कंपनी से कई बार फोन आ चुका है अगर विश्वास गोयल ड्यूटी पर न पहुंचे तो हम दूसरा सिक्योरिटी गार्ड रख लेंगे

इस कहानी को भी पढ़ें:

बहू सो रही हो क्या??? – सविता गोयल 

कुछ दिनों के बाद ऐसा ही हुआ मेरे पति अस्पताल में एडमिट थे और कंपनी वालों ने दूसरा सिक्योरिटी गार्ड रख लिया जब मेरे पति स्वस्थ होकर ड्यूटी पहुंचे तो कंपनी वालों ने कहा अभी जगह खाली नहीं है सिक्योरिटी गार्ड के लिए जब जगह खाली होगी तो बुला लेंगे

मेरे पति पिछले एक महीने से घर में खाली बैठे हैं

कमरे का किराया सर पर आ चुका है घर का राशन सब खत्म हो चुका है

ऐसी हालत में जब घर में कोई फूटी कौड़ी न हो मैं भला साड़ी कैसे खरीदूं

रीटा ने अपने पर्स  से दो हजार रुपया का नोट निकालकर विमला की तरफ बढ़ाते हुए कहा जब तुम मुझे दीदी कह रही हो तो इन पैसों को रख लो

मैंने तुम्हें 2 हजार रुपए दिए हैं इस बात का जिक्र गली में किसी पड़ोसन से मत करना जब तुम्हारे पति की नौकरी लग जाएगी तो मेरे इन रुपयो को वापस लौटा देना विमला ने अपनी आंखों से आंसू पोछते हुए रीटा के साथ गली में आ पहुंची

सभी पड़ोसन रीटा की प्रतीक्षा कर रही थी एक पड़ोसन बोली आखिर तुमने विमला को मना ही लिया साड़ी खरीदने के लिए

विमला ने एक 300 रुपये की साड़ी खरीदी

साड़ी वाले ने रीटा अग्रवाल को धन्यवाद देते हुए कहा बहन जी आपकी वजह से मेरी बहुत सी साड़ियां बिक चुकी है

सुबह से इस भारी साड़ी के गट्ठर को कंधे पर लादे गली गली घूम रहा था

सितंबर का महीना है किंतु सूरज अभी भी आग उगल रहा है किंतु पापी पेट के लिए कुछ ना कुछ तो काम धंधा करना ही होता .

इस कहानी को भी पढ़ें:

स्वाभिमान अपना अपना – सुभद्रा प्रसाद

पढ़े लिखे नहीं हैं इसीलिए अपने परिवार का पेट भरने के लिए यह साड़ी बेचने का काम चुना है

3 दिन से एक भी साड़ी नहीं बिकी थी अगर आप जैसी बहने हम जैसे गरीब साड़ी बेचने वाले फेरी वालों से सामान खरीदेंगी तो शायद कोई गरीब भूखा नहीं सोएगा

इतना कहकर साड़ी वाला अपनी बची कुची साड़ियों समेटकर गली से बाहर चल दिया

पड़ोसने भी खरीदी हुई साड़ियां लेकर खुशी-खुशी अपने अपने घर की ओर चल दी

रीटा अग्रवाल ने अपनी खरीदी हुई 4 साड़ियां हाथों में ली और विमला को बाय करती हुई अपने फ्लैट की तरफ चल पड़ी

विमला अपनी खरीदी हुई एक साड़ी लिए सोच रही थी आज भी रीटा अग्रवाल जैसी महिलाएं देश में मौजूद हैं जिनमें मानवता जिंदा है

नेकराम

स्वरचित रचना दिल्ली से

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!