मैनेजर – भगवती सक्सेना गौड़ #लघुकथा

मैनेजर नाम का मजदूर दीवाली की सफाई बड़े मन से कर रहा था। रश्मि अकेली घर पर थी, दोनो बेटे दिल्ली में कार्यरत थे, दीवाली में सबके आने का कार्यक्रम था। थोड़ी थोड़ी देर में आकर काम का मुआयना कर लेती थी, अचानक उसकी नजर गयी,  मैनेजर बड़े ध्यान से टेबल पर रखी अश्विन संघी की इंग्लिश नावेल का पहला पेज खोल कर पढ़ रहा है। चकित हो रश्मि ने पूछा, “काम छोड़ कर किताब हाथ मे क्यो ली है, तुम्हे कुछ समझ नही आएगा , रख दो ।”

अब मैनेजर को बात चुभ गयीं,  उसने चार लाइन बड़ी सफाई से पढ़ कर सुनाई और अब रश्मि के चौकने की बारी थी ।

“लगता है पढ़े लिखे हो, फिर कोई नौकरी क्यों नही की ?” “अरे मैम क्या बताऊँ बड़ी लंबी कहानी है। मैं मम्मी, पापा का इकलौता बेटा था, पापा की किताबो की ही दुकान थी,  अचानक उन्हें तेज़ बुखार आया, दूसरे दिन गले मे जानलेवा दर्द महसूस हुआ, दिमाग मे शक तो था ही, टेस्ट कराया, कोरोना पॉजिटिव आया। साईरन बजाती एम्बुलेंस आयी, अधिकारी ने पहले ही दस हज़ार रुपये की फरमाइश की और पापा को ले गए। लॉक डाउन में दुकान तो बंद ही थी, पैसे पैसे को मोहताज हो गए,मैं, माँ और छोटी बहन घर मे थे। अस्पताल से सिर्फ फ़ोन से ही संबंध था और वो मैं रिचार्ज नही करा पाया।

एक हफ्ते बाद माँ परेशान हो गयी,”जाओ, पापा की हालत देखकर आओ।”

और मैनेजर चल पड़ा बहुत हिल हुज्जत करने से वहां एक अधिकारी ने रजिस्टर खोला,” और बोला,कई बार आपका नंबर मिलाया आपने उठाया नही, आपका पेशेंट चार दिन पहले ही खत्म हो गया, दूसरे दिन अस्पताल ने क्रियाकर्म भी कर दिए।

अब छोटे से शहर झाड़ग्राम में नौकरी भी नही मिली जबकि मैंने इंग्लिश में पोस्टग्रेजुएट की परीक्षा उत्तीर्ण की, कई प्रतियोगी परीक्षाएं दी, पर जनरल केटेगरी होने के कारण कही भी चांस नही मिला । अब घर मे एक बहन और मम्मी हैं, बहुत ढूंढने पर नौकरी मिली भी तो दस हज़ार से ज्यादा सैलरी नही मिली । मेरा माथा ठनका और मैं आपके शहर कोलकाता आ गया। दिनभर और ओवरटाइम ये काम करके रोज हज़ार कमाता हूँ, और तीस हजार महीने मेरी सैलरी है, पैसे घर भेजता हूँ और सब जानते हैं मैं एक कंपनी में मैनेजर हूँ,.अब आप बताइए, क्या मैं कुछ गलत कर रहा हूँ ?

रश्मि सुनकर अचंभित रह गयी, क्या ऐसा भी होता है?

“सुनो, मेरी पहचान है, मैं एक दो जगह बात करूँगी, तुम अगले हफ्ते आ जाना।”

और मैनेजर को महसूस हुआ, तेज बारिश में रश्मि जी छाता लेकर आ गयी।

स्वरचित

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