आज सुबह सुबह ही खबर लगी कि पुष्पा भाभी जी नहीं रहीं । नाश्ता बनाने जा रही थी तो सबकुछ छोड़कर बैठ गई । आंखें भर आईं बहुत पुराना रिश्ता था उनसे । नहीं नहीं खून का नहीं,अपनों का नहीं , रिश्तेदारी का नहीं ,मन से मन का रिश्ता ।और शायद इससे बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता । कितना भी कोई अपना हो , कितना ही बड़ा रिश्ता हो लेकिन जो मन से मन का रिश्ता जुडता है न उससे बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता।
पुष्पा भाभी हमारे मकान की मकान मालकिन थी ।उन्हीं के घर में हम दो कमरे के किराए के मकान में रहते थे। ब्याह कर जब आई थी ससुराल में पहला कदम मैंने उनके ही घर में रखा था।घर में मेरे पति और बूढ़ी सासू मां थी बस ।जेठ जेठानी थे लेकिन वो अलग अलग रहते थे।
जब मैं विदा होकर आई तो मुझे एक कमरे में बिठा दिया गया और सब अपने अपने काम में लग गए। मुझे बड़ी ज़ोर से प्यास लग रही थी और भूख भी क्यों कि रातभर शादी के कार्यक्रम चलते रहे और सुबह सुबह विदाई हो गई ।आठ घंटे का टे्न का सफर तय करके मैं ससुराल आ पाई ।
पूरे रास्ते मुझसे किसी ने खाने पीने को नहीं पूछा मुझे बड़ा अजीब लगा ,,,,,,,। फिर थोड़ी देर में हमारी मकान मालकिन (पुष्पा भाभी) एक कप चाय और कुछ नमक पारे लेकर मेरे पास आई और बोली बहू मुझे पता है तुम्हें भूख लगी होगी और थकान भी हो रही होगी,लो चाय पिलो और कुछ खा लो और थोड़ा लेट जाओ ,मैं आश्चर्य से उन्हें देख रही थी ,तो बोली घबराओ नहीं मुझे अपनी मां की तरह समझो,और कोई कुछ नहीं कहेगा मैं दरवाजा बाहर से बंद कर देती हूं तुम थोड़ा आराम कर लो ।
पुष्पा भाभी के दो बेटियां और दो बेटे थे । बड़ी बेटी रागिनी की शादी भी अभी एक महीने पहले ही हुई है ।और उनकी छोटी बेटी गुड़िया जो करीब अट्ठारह साल की होगी वो हर वक्त मेरे साथ साथ रहती भाभी भाभी कहती । धीरे धीरे सास से ज्यादा मैं इन लोगों के करीब होती जा रही थी।मेरी सास जया बहुत तेज तर्रार और खडूस टाइप की औरत थी ।और इसके उल्ट मुझे पुष्पा भाभी से बहुत स्नेह और ममता मिलती थी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
शादी के दो महीने बाद मेरे भाई मुझे लेने आए तो पति और सास ने मुझे मायके नहीं जान दिया । फिर तो मैं बहुत रोई थी खाना भी नहीं खाया अपने कमरे से निकल कर नीचे भी नहीं आई । मेरा कमरा ऊपर था।जब पुष्पा भाभी को पता चला कि मैंने खाना नहीं खाया है तो अपने घर से मेरे लिए खाना लेकर दूसरे रास्ते से ऊपर मेरे पास आई और मेरे सिर पर बड़े प्यार से हाथ फेरा और खाना खिलाया
,और कहने लगी अभी तुम्हारी नई नई शादी हुई है और मायका भी दूर है अभी इतनी जल्दी चली जाओगी तो हमारे बेटे को कैसा लगेगा । कुछ दिन और रहो फिर चली जाना मैं मां जी को समझाऊंगी भेज देंगी । नीचे आने पर पुष्पा भाभी से सासूमां बोली देखो तो मायके नहीं जाने दिया तो महारानी मुंह फुलाकर कमरे में बैठी है नीचे नहीं आईं न खाना बनाया नहीं खाया ।अभी छोटी उम्र है मांजी आप गुस्सा न हो समझ जाएगी धीरे धीरे।
उनका प्यार भरा स्पर्श पाकर मैं रोना भूल गई और सामान्य हो गई।मैं एक बड़े परिवार से आई थी । पांच बहनें और दो भाई भाभी भतीजे भतीजियों से भरा पूरा घर था।और यहां पर कोई नहीं था । लेकिन मकान मालकिन के बेटी बेटा मुझे भाभी भाभी कहकर खूब हंसी मज़ाक करते रहते थे कभी लगता ही नहीं कि ये पराए लोग हैं। पुष्पा भाभी बहुत समझदार और सरल हृदय थी।वो मेरी सास को भी समझाया करती थी।
एक दिन मुझे सुबह उठने में देर हो गई तो सास ने नीचे खूब हंगामा मचाया कि महारानी नौ बजे तक सोती रहती है । फिर तो मेरी हिम्मत ही नहीं हो रही थी नीचे आने की । पुष्पा भाभी ने मुझे इशारे से नीचे बुलाया और मांजी सै बोली अभी कम उम्र की लड़की है हो जाता है कभी कभी नींद लग गई होगी आगे से ध्यान रखेगी । ऐसे ही मुश्किल वक्त में गाहे बगाहे मेरी मदद करती रहती थी।और मेरे मन में अपने लिए जगह भी बनाती जा रही थी।
सालभर बाद मैं प्रेग्नेंट हो गई साथ साथ पुष्पा भाभी की बेटी भी जिसकी शादी मेरी शादी से महीने भर पहले ही हुई थी वो भी प्रेगनेंट थी ।वो जब भी आती मेरी सास उससे बड़े प्यार से बात करती और हिदायत देती कि ज्यादा नीचे बैठ कर काम न किया करों सारे दिन काम में न लगी रहा करो आराम भी किया करों ।
हम दोनों की डिलीवरी भी आसपास के तारीख में थी ।एक दिन मैं नीचे बैठकर कपड़े धो रही थी तो पुष्पा भाभी आई और मुझे उठा दिया कि आठवां महीना चल रहा है इस तरह नीचे बैठकर काम नहीं करो लेकिन मेरी सास कुछ नहीं बोलती कि तुम ये काम मत करो ,उस समय ऐसा कोई साधन नहीं था सब काम हाथ से ही होते थे।
मैं आज से चालीस साल पहले की बात कर रही हूं । फिर पुष्पा भाभी मां जी से बोली मांजी आप हमारी बेटी को तो समझा रही है कि ज्यादा नीचे बैठ कर काम न करो और आपकी बहू भी तो नीचे बैठकर काम कर रही है क्यों बहू बेटी में फर्क कर रही है ।आज से धोबी को दो कपड़े धुलने के लिए ।
पच्चीस दिन के अंतर पर मेरे बेटी हुई और रागिनी को बेटा हुआ। मायके में ही रागिनी ।हम दोनों का पुष्पा भाभी बहुत ख्याल रखती थी जैसे उनकी बहूं की ही डिलीवरी हुई हो । मुझसे तो संभलती न थी बेटी वहीं संभालती थी और खाने पीने कि जो सामान ऐसे वक्त में दिया जाता है
इस कहानी को भी पढ़ें:
वो सब मेरे पति से मंगवा कर अपने पास ही रख लिया था और बना बना कर मुझे देती रहती थी।मैं तो उनमें अपने मां की छवि देखने लगी थी।। इतना प्यार और लगाव उनको मुझसे और मुझे उनसे होता जा रहा था,एक दूसरे से मन से मन जुड़ते जा रहे थे जब कभी मैं उनके पैर छूती तो गले से लगा लेती मुझे ।मैं असीम सुख का अनुभव करती ।
दस साल रहे हैं हम उनके घर पर फिर हमने अपना मकान बनवा लिया था तो उनका घर छोड़कर मुझे अपने घर आना पड़ गया।सच मानिए मेरा खुद के मकान में मन नहीं लगता था।मैं भाग भागकर उनसे मिलने जाती । बच्चे भी उनसे बहुत हिले हुए थे।हर मौके बेमौके हमलोग मिलते रहे।मैं भी उनको बड़े होने का भरपूर मान लेती थी और वो मुझे भरपूर प्यार देती थी
आज करीब 84 साल की उम्र में उनका देहान्त हो गया । आंखों के सामने पिछले चालीस साल चलचित्र की भांति सब घूम गया । क्यों किसी से कोई रिश्ता न होने के बाद भी एक अनोखा रिश्ता जुड़ जाता है वो है मन से मन का रिश्ता ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
6 दिसंबर