मन की खुशी – पुष्पा जोशी : Moral Stories in Hindi

 ‘माँ !वह राधा इतनी खुश कैसे रह सकती है? दिन भर खेतों में मजदूरी करती है। सुबह विद्यालय में पढ़ने जाती है, वहाँ भी हमेशा प्रसन्नचित्त, उत्साह से भरी दिखती है। उसके चेहरे पर उदासी का लेशमात्र भी दिखाई देता है। विद्यालय में सब उससे बहुत खुश रहते हैं।

जिसे देखो उसकी तारीफ ही करता है। उसके पास न ढंग के कपड़े हैं पहनने के, न वह कभी विद्यालय में कुछ खाती है। न कभी एक कप चाय ही पीती है, फिर भी हर समय ताजगी से भरी दिखती है। मुझे समझ में नहीं आता कि वह ऐसा कैसे कर सकती है।

मैं तो नाश्ता भी करती हूँ, थकान लगने पर चाय पी लेती हूँ। घर आकर फिर भोजन कर लेती हूँ, आराम से सो जाती हूँ। वह आने के बाद खेत पर जाती है, काम करती है। फिर भी कक्षा में अव्वल आती है।’ प्राची ने अपनी माँ से कहा।

       सुशीला जी ने कहा -‘बेटा! वह मेहनती है,संतोषी है और उसमें आगे बढ़ने की ललक है। इसके विपरीत तुम हमेशा काम करने से कतराती हो। अपनी किस्मत को कौसती रहती हो कि मेरे पास  यह नहीं है, वह नहीं है। उसके पास इतने अच्छे कपड़े है।

उसके पापा उसे रोज घुमाने ले जाते हैं। मैं हर बार तुम्हें समझाती हूँ बेटा सबकी परिस्थिति एक जैसी नहीं रहती। हम भी अपनी हैसियत के हिसाब से तुम्हारी परवरिश करते है। तुम्हारे पापा दिन भर मेहनत करके कमाते हैं ताकि तुम्हारी जरूरतों की पूर्ति कर सके।

मैं भी कोशिश करती हूँ कि तुम्हें पढ़ाई के लिए समुचित समय मिले ,मगर तुम आराम से सुबह आठ बजे उठती ह, फिर हर बड़ी में आधा होमवर्क होता है ,आधा छूट जाता है। बेटा !अगर हमेशा दूसरों के सुख सुविधा को देखकर मन ही मन दु:खी रहोगी

तो उस सुख का अनुभव कैसे करोगी जो तुम्हें मिल रहा है।अभी तुमने ही राधा की बात की ना? तो उससे कुछ सीखो। मैं भी राधा को देखती हूँ, तो सोचती हूँ कि यह लड़की कितनी हंसमुख और मेहनती है। पता है बेटा! वह देर रात तक सड़क के लैंप पोस्ट की रोशनी में पढ़ाई करती है।

मेरा कई बार मन होता है कि मैं उससे बातें करूँ, उसकी कुछ मदद करूँ।आज तुम्हारी बातें सुनकर तो उससे मिलने की इच्छा और बड़ गई है।’ प्राची चिकना घड़ा थी उस पर माँ की बातों का कोई कसर नहीं हो रहा था, उल्टे राधा की तारीफ सुनकर वह जल-भुन गई।

गुस्से में पैर पटकती, बड़बड़ाती हुई अपने कमरे में चली गई, लो अब माँ भी उसी की तारीफ कर रही है….जैसे वह राधा ही सर्वगुणसम्पन्न है। मैं तो कुछ भी नहीं हूँ ….मेरी तो किस्मत ही ऐसी है, मेरी माँ भी…..।’ सुशीला जी के मन में राधा से बातें करने की इच्छा प्रबल हो गई थी।

रात को जब प्राची सो गई। तब वह राधा से मिलने के लिए गई,जो उनके घर के निकट ही लैंप पोस्ट की रोशनी में पढा़ई कर रही थी। सुशीला जी को निकट आया देखकर वह उठकर खड़ी हो गई उन्हें प्रणाम किया तो सुशीला  जी ने उसे आशीर्वाद दिया।सुशीला जी सोच रही थी

कि यह कितनी संस्कारी लड़की है। एक प्राची है जो कहने पर भी किसी के पैर नहीं छूती है। सुशीला जी ने कहा बेटा -‘अगर किसी चीज की जरूरत हो तो मुझसे कहना तुम मेरी प्राची की तरह हो।’ ‘आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आण्टी अगर जरूरत होगी तो जरूर बताऊँगी।

‘ सुशीला जी के कान में प्राची की बात गूंज रही थी कि -“मेरी तो किस्मत ही ऐसी है। ” उन्होंने राधा से कहा बेटा तुम पढ़ाई करो।बस एक बात बताओ ‘क्या तुम्हें अपनी किस्मत से कोई शिकायत नहीं होती? ‘ ‘कैसी बात करती हैंआण्टी आप?

मुझे अपनी किस्मत से कोई शिकायत नहीं है बल्कि नाज है अपनी किस्मत पर। क्यूँ न करूँ मैं अपनी किस्मत पर नाज। ईश्वर ने मुझे मनुष्य का जीवन दिया। दो ऑंख, दो कान, एक नाक, मुंह, हाथ, पैर सब सलामत दिए। माता पिता की छत्र छाया है।

दो भाई बहिन हैं हम सब प्यार से रहते हैं। वे मुझे पढ़ा रहे हैं,मैं मन लगाकर पढ़ाई करती हूँ। सोचती हूँ कहीं नौकरी लग जाएगी तो अर्थिक स्थिति भी ठीक हो जाएगी। मैं हमेशा मन से खुश रहती हूँ आण्टी ! आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा।’

सुशीला जी ने उसके सिर पर हाथ रखा और दिल से उसे आशीर्वाद देते हुए घर आ गई। वे सोच रही थी कि मनुष्य थोड़े से अभाव में अपनी किस्मत को क्यों कौसने लगते हैं ? ईश्वर ने कितना कुछ दिया है हमें उनके कानों में राधा के शब्द गूंज रहै थे “क्यूँ न करूँ मैं अपनी किस्मत पर नाज”।घर आकर उन्होंने अपने बच्चों के सिर पर हाथ फैरा ईश्वर के आगे हाथ जोड़े और फिर शांति से सो  गई।

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

#क्यूँ ना करूँ मैं अपनी किस्मत पर नाज

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