तोरई की सब्जी में पानी कौन डालता है… ऐसे ही तुमने तीन-चार दिन पहले भिंडी में पानी डाला था, अरे यार.. कभी तो ढंग का खाना बना लिया करो, मानस के इतना कहते ही रूचि बोली.. क्यों चार-पांच दिन पहले तुम नहीं कह रहे थे
कि कितना तेल मसाले की सब्जी बनाती हो, थोड़ा कम किया करो, स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा करो, जब कम तेल मसाले डालती हूं तो कहते हो मरीज वाला खाना दे दिया और अच्छा सा मसाला डालती हूं तो कहते हो.. पता है
कितना नुकसान करता है तेल मसाले… अब तुम बताओ मैं क्या करूं? आए दिन मानस और रुचि मे खाने और बहुत सारी चीजों को लेकर मतभेद होता रहता था! मानस और रुचि दोनों ही कंपनी में जॉब करते थे, जब भी रुचि तैयार होती मानस बोल पड़ता..
तुम्हें कपड़े पहनने का बिल्कुल भी सलीका नहीं है, कोई सी भी साड़ी कोई सा ब्लाउज, कोई सा भी सूट पहनकर ऑफिस चली जाती हो, आजकल की लड़कियों को देखो कितना टिप टॉप बनकर ऑफिस में आती है कि लोगों की नजरे ही नहीं हटती उन पर से!
अच्छा और तुम जो पहनते हो नीले पेंट पर काली शर्ट, और किसी भी प्रकार के शूज कैसे भी कपड़ों पर पहन लेते हो और न जाने कौन-कौन से कलर के कपड़े पहनते हो पूरे जोकर लगते हो, मैं तो कुछ नहीं कहती, ऑफिस में तुम केवल लड़कियां ही देखने जाते हो क्या ?
शादी के पहले तो मेरे हाथ का जला हुआ सैंडविच भी बड़े शौक से खाते थे और कहते थे मेरे ऊपर सभी तरह की ड्रेस बहुत सुंदर लगती है और तुम्हारे हाथ के खाने में तो जादू है, अब क्या हो गया? तभी मानस बोला… अच्छा तो शादी से पहले तो मैं भी तुम्हें कैसे भी कपड़े पहन कर आता
तुम्हें एकदम हीरो लगता था, तो अब क्या हो गया? अब क्या मैं विलन हो गया ? प्यार के चक्कर में मैं अंधा था किंतु अब आंखें खुल चुकी है, इसी प्रकार के छोटे-छोटे मतभेद ने आखिरकार एक दिन बड़ा रूप ले ही लिया, उस दिन रुचि और मानस जैसे ही ऑफिस से घर आए दोनों में ऑफिस की किसी बात को लेकर कहा सुनी हो गई,
दोनों अपने आप को यह साबित करने लगे कि वह एक दूसरे से ज्यादा काम करते हैं इसलिए ज्यादा थकते हैं, और दोनों को एक दूसरे की कोई परवाह नहीं है अतः रोज-रोज की किचकिच से बचने के लिए दोनों ने कुछ समय के लिए अलग होने का फैसला किया! रुचि अपनी मम्मी के यहां चली गई
और मानस अपने इस फ्लैट में रह गया! 2 दिन तो दोनों की शांतिपूर्वक निकले, तीसरे दिन से ही रुचि तैयार होती तो उसे लगता काश.. मानस होता और कहता… यह मत पहनो वह पहनो, आज इस ड्रेस में तुम कितनी सुंदर लग रही हो, सुनने को कान तरस गए! उधर मानस का भी यही हाल था
वह जब भी अपनी सब्जी बनाते कभी जल जाती कभी पानी ज्यादा हो जाता, कभी तेज मसाले ज्यादा हो जाते, तब उसे रुचि की बेहद याद आती, कुछ समय एक दूसरे से दूर रहने के बाद दोनों को एक दूसरे की अहमियत समझ आने लगी और दोनों को ही लगने लगा अगर हम थोड़ा सा बदलाव करें
तो हमारी जिंदगी भी आसान हो सकती है, रुचि सोच ही रही थी कि काश.. मानस मुझे लेने आ जाते! तभी उसने बाहर आकर देखा.. मानस बैठे हुए थे और रुचि को देखते ही मानस बोला.. चलो यार रुचि.. अपने घर चलो.. तुम्हारे बिना मुझे कुछ भी मैनेज नहीं हो रहा,
अब तुम जैसा भी पहनोगी या जैसा भी बना कर दोगी मैं कुछ नहीं कहूंगा किंतु मुझे तुम्हारे बिना नहीं रहा जा रहा, रुचि भी कहना तो यही चाह रही थी किंतु उसने कहा क्यों बच्चू ..अब आई मेरी अहमियत समझ में, रुचि और मानस दोनों ने फैसला किया चाहे वैचारिक मतभेद भले ही हो जाए पर मन के मतभेद नहीं होने चाहिए और रुचि मानस के साथ खुशी-खुशी अपने घर आ गई!
हेमलता गुप्ता (स्वरचित)
कहानी प्रतियोगिता “मतभेद”