मन का मैल – प्रवीण सिन्हा : Moral Stories in Hindi

डिंग डांग डोर बेल बजी तो सुभाषिनी बिस्तर से उठ कौन हैं कह कर दरवाजा खोलने चल पड़ी सोचती जा रही थी इस भरी दोपहरी भला कौन आया होगा दरवाजा खोलते ही अवाक रह गई रत्ना कह कर सुभाषिनी रत्ना के गले लग कर रो पड़ी पूरे तीन साल बाद रत्ना को देख रही थी रत्ना भी रो पड़ी थोड़ी देर बाद मां बेटी चुप हुई तो सुभाषिनी ने कहा आ बैठ बेटा कह कर अंदर चली गई इधर रत्ना हाल को निहारे जा रही थी कितना सुंदर सजाया हैं । सब कुछ वैसा का वैसा हैं टिक-टिक करती घड़ी में ढाई बज रहे थे ।

बस पहले फाल सीलिंग न था अब हैं जो हाल की खूबसूरती को बढ़ा रहा था सुंदर लाईट और झूमर से हाल की सुंदरता और झलक रही हैं । इतने में कौन है सुभाषिनी कहते हुए लकवाग्रस्त हरिराम बेडरूम से बाहर निकल हाल में आते ही रत्ना को देखकर चीखें अब क्या लेने आई हो ‌।

           रत्ना उसकी छोटी बेटी थी बड़ी साक्षी थी जो जूनियर इंजीनियर अजय के लिए गई हैं अजय पी डब्ल्यू डी में हैं । एक बेटा है रत्नेश जो तहसील में कम्प्यूटर आपरेटर हैं । साक्षी एक एक  बेटा बेटी की मां बन कर अपने घर परिवार में खुश हैं बुच की रत्ना भी बड़ी सुंदर चंचल थी । पढ़ाई में औसत थी इसलिए बीए फिर एम ए तक शिक्षा ले पाई थी । जैसे तैसे उमर निकलते चला जा रहा था । रत्ना के लिए कोई रिश्ता आता तो हरिराम सरकारी नौकरी की आस के साथ देखते कभी लड़का सावला हैं

कहकर टिल जाते तो कभी लड़का नाटा हैं कहकर तो कभी मोर अतेक सुन्दर बेटी गंवई गांव में नई जाय कह कर टाल जाते । रत्ना थी भी बड़ी सुन्दर पर सरकारी नोकरी के आस में  31 की हो चली इधर रत्नेश भी 29 का हो गया था । हरिराम यही कहते रत्ना के लग जाए तो रत्नेश के लिए रिश्तो की कमी थोड़ी हैं । ईधर एक दिन रत्नेश ने पापा से कह ही दिया रत्ना के शादी नई लगही त मै जिंदगी भर कुंवारा बैठे रहू का , हरिराम रत्नेश के प्रश्न से अवाक रह गये ।

आखिर बेटे के इच्छा के सामने घुटने टेकते हुए अच्छे परिवार में रिश्ता कर विवाह सम्पन्न कर दिया । ईधर रत्ना चंचल स्वभाव से गंभीर होती चली गई । हमेशा भाभी के साथ गृहस्थी के काम में लगी रहती ।  सरकारी नौकरी वाले दामाद के चक्कर में रत्ना 34 की हो गई आस पास की उससे छोटी-छोटी लड़कियो का विवाह हो गया था जब वे मायके आती तो उसके बच्चे बड़ी मम्मी बड़ी मम्मी कहते जो बड़ी तो थी पर मम्मी न बन पाई थी ।

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कभी कभी रत्ना को अपने पापा पर गुस्सा आता पर थी तो वह नारी ही अपने घर के लोगो को कुछ कह नहीं पाती थी । रत्ना का जीवन इतना ही  था गृहस्थी के काम में लगे रहना और सप्ताह के दो दिन सब्जी लेने जाना । 33 उम्र में उसका सम्पर्क सब्जी लेने जाते समय कृष्णा से हो गया उसके घर के आस पास के लोग उसे डाक्टर डाक्टर कहते हैं । रत्ना भी बड़े प्रेम से पूछती तोला डाक्टर काबर कथे बड़े प्यार बताता बचपने में कुत्ते के पिल्ले को इंजेक्शन लगा रहा था तो कुत्ते ने काट लिया तभी से पूरे मोहल्ले के लिए डाक्टर बन गया ।

          कृष्णा जोर से चिल्ला कर सब्जी बेचता पढ़ा लिखा तो 12 वीं था कालेज में मन नही लगा तो छोड़ छाड़ कर सब्जी के पारिवारिक धंधे में लग गया । उसके दुकान में हमेशा भीड़ लगी रहती । रत्ना की सप्ताह में दो दिन ही मुलाकात हो पाती 30 साल का गबरू जवान सांवला रंग उसका व्यक्तित्व आकर्षक ही था उसकी स्पष्टवादिता भी गजब की थी सप्ताह में एक दिन खाना पीना हो जाता हैं ये बताता था । उसके मम्मी पापा भी सब्जी का ही धंधा करते थे

मां भी गहनो से लदी बाजार मे सब्जी बेचती थी गोरी नारी सप्ताह के 6 दिन अलग-अलग बाजारो में सब्जी बेचती थी बाजार में सब्जी का धंधा करना हिम्मत का ही काम होता हैं पचासों प्रकार के लोगो से सामना करना पड़ता है । सब्जी की कमाई से अच्छा खासा सुन्दर सा घर बना रखा था एक ही बेटा था

पढ़ाने का बड़ा प्रयास किया पर पढ़ाई उसके पल्ले न पड़ी । एक टाटा एस भी ले रखा था जिसमें सब्जी का परिवहन करते । कभी कभी रत्ना कृष्णा के मां से हंसी ठिठोली करते हुए कहती अतेक गाहना ला ला पहिर के काबर बजार आथस वो कोन्हों पुदक के ले जही त कृष्णा की मां भी बड़े आत्मविश्वास से कहती कोन रोगहा के मौत आहे ते मोर गहना ला पुदकही कह कर हंस देती । 

       सप्ताह के दो दिनों का मिलन कृष्णा और रत्ना में प्रेम पनप गया पता ही न चला रत्ना को बाजार के दो दिनो का बड़ा बेसब्री इंतजार रहता । मोबाईल तो था पर कभी भी उसने कृष्णा से बात नहीं की । प्रेम का बुखार ऐसा चढ़ा की अपने से 3 साल छोटे कृष्णा से उधर कृष्णा से भी रहा न गया ।

अचानक एक दिन शाम हरिराम को टी टेबल पर पत्र मिला कि पापा मैं गोकुल नगर के कृष्णा के साथ शादी कर रही हूं काम उसका छोटा हैं पर अच्छा  हैं  इतना कमाता हैं की अपना और अपने परिवार को खुश रख सकता हैं । मुझे क्षमा करना मम्मी पापा मेरे पास और कोई विकल्प भी नहीं था

अब तो इस उम्र में मेरे लिए रिश्ते भी आने बंद हो गये थे । इतने बड़े रिटायर्ड एकाउंटेंट पूरी कालोनी में जंगल में आग की तरह फैल गयी कुछ लोग रत्ना को तो कुछ लोग हरिराम को दोषी ठहरा रहे थे । रत्नेश भी जगह जगह यही कहता 30 साल के मां-बाप के प्यार को ठोकर मार कर चली गई सुखी नहीं रहेगी हरिराम भी मजबूरी में रिश्ता को स्वीकार न कर रत्ना को अपनी जिंदगी से अलग कर दिया । बस इतना कहते पगड़ी उछाल कर चली गई । 

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            कुछ दिनो बाद हरिराम को लकवा मार गया रत्ना चाह कर भी पापा को देखने न जा पाई । रत्नेश भी धमकी देता वो घर में आयी तो मैं घर छोड़ कर चला जाऊंगा । एकलौते बेटे के धमकी के आगे झुकना पड़ा । सुभाषिनी चाह कर भी रत्ना को बुला नही पाई । 

        कृष्णा की मेहनत रंग लाई अब कृष्णा अढ़तिया कमीशन एजेंट बन गया  । तीन साल में कृष्णा ने खूब तरक्की की धन धान्य से सम्पन्न होकर गाडी घोड़ा सब ले लिया । रत्ना के व्यवहार और साल भर में नाती की कमी पूरी होने से कृष्णा के मम्मी पापा भी खुश थे अन्य जाति से थी पर गृहस्थी के प्रति समर्पण और बहू से मिलने वाले मान सम्मान से खुश थे ।

           सोफे में  बैठी रत्ना अचानक वर्तमान में आ खड़ी हुई उठ कर पापा के पैर छूने लगी तो पापा ने मुंह फेर लिया क्या लेने आई हो मान सम्मान को तो उछाल कर चली गई  थी । अब रत्ना भी चुप न रह सकी मैने आपके मान सम्मान को ठेस पहुंचाई है जब मैने शादी नही की थी तब कभी आपने पूछा मुझसे की किस तरह का लड़का होना चाहिए तुम्हारे जीवनसाथी के रूप में आपने हर बार सरकारी नौकरी वाले दामाद के चक्कर में अच्छे-अच्छे रिश्तो को ठुकरा दिया । क्या प्राइवेट नौकरी और व्यवसाय वाले अच्छा नहीं जीते

दरअसल आप झूठी मान सम्मान बनाना चाहते थे मेराबड़ा दामाद इंजीनियर हैं तो छोटा दामाद सरकारी नौकरी में ये हैं । पापा अपने परिवार को सामान्य रूप से चलाने वाला भी अच्छा लड़का होता हैं जो अपने परिवार को खुश रख सके । हां पापा कृष्णा कभी कभी पी भी लेता हैं और खा भी लेता है । पापा आप भी तो त्यौहार बार और खुशी के मौको पर पी लेते थे । जीजाजी भी जब आते हैं रत्नेश और जीजाजी भी बैठ जाते हैं । पर मेरे लिए रिश्ता खोजते समय यही कहते थे । लड़का पीता खाता न हो । इतने में रत्नेश आफिस से आ गया ।

रत्ना को देखकर आगबबूला हो गया । मां बाप के प्रेम को तो ठुकरा कर चली गई हो फिर क्यो आयी हों । हां भाई चली गई पर कभी सोचा हैं गृहस्थी बसाने के लिए पति की भी जरूरत होती है जीवन में मां-बाप भी जरूरी है़ तो परिवार बसाने के लिए लड़का-लड़की की भी जरूरत हैं ।

मेरी उमर इतनी हो गई थी पर कभी तुमने मेरा रिश्ता लगाने के लिए ईमानदारी से प्रयास किया विवाह होते ही अपने परिवार में मस्त हो गये । कभी सोचा था मां बाप के न रहने पर मेरा क्या होगा । मात्र मै काम सम्हालने वाली बाई ही रह जाती । इच्छाएं सभी की होती हैं । तुमने पापा से कह कर अपनी शादी करवा ली । मैं नारी किससे कहती  मुझे नौकरी वाला नहीं परिवार की जिम्मेदारी उठाने वाला साधारण सा जीवनसाथी चाहिए । मेरी भावनाओं को माता-पिता ने समझा ही नहीं तब तुम कैसे समझते । 

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          आज जो कुछ भी हो कृष्णा के साथ खुश हूं कम पढ़ा लिखा हैं पर अपने व्यवसाय का हिसाब किताब बखूबी जानता है हिसाब किताब में मै भी मदद कर देती हू । अब तो कृष्णा के आफिस जाकर मै भी सम्हालती हूं ।  अब जा रही हू पापा कह कर रत्ना सोफा से उठ खड़ी हुई तो पापा ने कहा न बेटा मुझसे भी गलती हुई हैं अपने झूठे मान सम्मान के लिए तुम्हारी भावनाओं को न समझ सका कह कर दोनो हाथ जोड़ लिए न पापा कह कर रत्ना पापा से गले लग कर रोने लगी । रत्नेश के भी आंसू निकल आये ।

इतने में सुभाषिनी ने कहा बस रोती रहेगी या पापा के लिए कुछ बनायेगी । पापा के पसंद का उपमा और कड़क मीठी चाय बना कर ला । रत्ना उपमा और चाय बना कर ले आयी । रत्ना जाने लगी तो सुभाषिनी ने नाती के लिए उपहार दिया और कहा अगले हफ्ते तेरे भतीजे का मुंडन संस्कार बुआ ही तो निभाती हैं दामाद बच्चे समधी समधन के साथ आना हैं शाम को साथ मे बर्थडे पार्टी भी हैं ।  हां मम्मी कहते हुए रत्ना हाथ हिलाते हुए गाड़ी स्टार्ट कर निकल पड़ी घर की ओर वह सोचते जा रही थी मन की बात कहने से मन का मैल धुल जाता हैं ।

                       प्रवीण सिन्हा  

                      रामकुंड रायपुर

                     09 फरवरी 2024

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