* मन का मैल धुल गया* – पुष्पा जोशी : Moral Stories in Hindi

  दीपा, कल अपने पड़ौसी वर्मा जी के यहाँ भजन में गई थी । उनके छोटे बेटे की शादी के बाद बहू के आने की खुशी में उन्होंने भजन का कार्यक्रम रखा था। सुलभा जी और उनकी दैवरानी, जिठानी आपस में बहुत प्रेम से बातें कर रही थी,

मिलजुल कर सारे काम कर रही थी। भजन में आई सारी महिलाऐं  उनकी तारीफ करते नहीं थक रही थी कि दैवरानी     जैठानी हो तो सुलभा जैसी, कितना प्रेम से रहती है तीनों। किसी के मन में कोई कड़वाहट नहीं है। भजन के बाद आरती और प्रसाद लेकर दीपा घर आई

तो उसका मन भारी हो गया था। बार- बार एक ही शब्द कानों में गूंज रहा था कड़वाहट। रात को उसने ठीक से भोजन भी नहीं किया। दोनों बच्चे पढाई कर रहै थे और मनीष को थकान के कारण नींद आ गई थी। दीपा की ऑंखों से नींद उड़ गई थी,

आज उसे अपना अतीत और उसमें की गई अपनी गलतियाँ याद आ रही थी। वह करवटें बदल रही थी और सोचती जा रही थी  कि “कितनी कड़वाहट भरी थी मेरे अन्दर। सबकुछ बिखेर कर रख दिया मैंने। इतना प्यारा परिवार था

मेरा।सास- ससुर का स्नेह और आशीर्वाद हम सभी को मिल रहा था। जेठ – जिठानी ने भी कभी कुछ नहीं कहा। मैं अल्हड़ प्रकृति की थी,काम करना भी ठीक से  नहीं आता था। ,कई गलतियॉं करती, नुकसान करती तो भी वे कभी ऊंची आवाज में मुझसे नहीं बोले।

जिठानी ने सारे गृहकार्य बहुत प्रेम से सिखाए।ननन्द, देवर  दोनों मुझे बहुत प्यार करते पर मैं पता नहीं किस मिट्टी की बनी थी, मेरे अन्दर हमेशा चिड़चिड़ाहट भरी रहती थी।चेहरे पर शिकन लिए हरपल इस कोशिश में रहती कब कोई गलती करें

और मैं अपनी खीज उसपर निकाल दूं। मेरी खीज का कारण भी था, मैं शौभित से शादी करना चाहती थी और माँ -पापा ने मेरा विवाह मनीष से करवा दिया। मुझ पर इमोशनल दबाव ऐसा बनाया कि मुझे शादी करनी पड़ी। खैर जो होता है अच्छे के लिए होता है, बाद मैं मालुम हुआ कि शोभित सिर्फ मेरे जज्बातों से खेल रहा था उसकी शादी हो चुकी थी, और यह बात उसने मुझसे छिपाई थी।

मै दिल से मनीष और उसके परिवार को अपना ही नहीं पा रही थी। हर समय खिचा -खिचा रहना, बात-बात में बिफर जाना मेरी आदत बन गया था। कोई कब तक सहन करता, सहनशक्ति की एक सीमा होती है। सास -ससुर ने मनीष से कह दिया

कि ‘मनीष यह रोज -रोज का क्लेश ठीक नहीं है, शायद दीपा को यहाँ रहना रास नहीं आ रहा है। तुम उसे लेकर हमने जो नया फ्लेट लिया है उसमे  शिफ्ट हो जाओ। वह छोटा है पर तुम दोनों के लिए पर्याप्त रहेगा। जब तुम्हारी इच्छा हो यहाँ आते रहना

घर तुम्हारे लिए हमेशा खुला है। अगर चाहो तो त्यौहार यहाँ साथ आकर मना लेना। बेटा !बहू को खुश रखना तुम्हारा दायित्व है उसे निभाना।’ मनीष भारी मन से उस फ्लेट में शिफ्ट हो गया। वह उदास रहता था, पर मेरे प्रति उसने हर फर्ज को निभाया।

कुछ समय तक हम दोनों घर जाते त्यौहार मनाते मगर सबकुछ औपचारिक सा लगता। धीरे-धीरे जाना कम हो गया और अब तो सास ससुर भी नहीं रहै। बच्चे बड़े हो गए है। अब अगर चाहूँ भी तो उन बीते पलों को लौटा नहीं सकती

सब मेरी ही गलती का परिणाम है।” दीपा रात भर सो नहीं पाई। सुबह उसका उदास चेहरा और सूजी हुई लाल ऑंखें देखकर मनीश ने पूछा ‘क्या बात है दीपा क्या रात भर सोई नहीं। यह क्या हालत बना रखी है अपनी?’   ‘सब मेरे ही कर्मों का परिणाम है।

आज किससे शिकायत करूँ? मैंने अपने व्यवहार से अपने ससुराल और पीहर दोनों से दूरी बना ली है। अकेले रह गए हैं हम। ससुराल में सब को अपने व्यवहार से नाराज कर दिया। अब तो अगर मैं क्षमा भी मांगू तो क्या कोई मुझे अपनाएगा?’

उसकी आवाज में नमी थी। मनीष के चेहरे पर खुशी का भाव था वह बोला -‘तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया है। तुम्हारे मायके के बारे में तो मैं कुछ नहीं कह सकता पर अपने दादा भाभी के बारे मे तो विश्वास के साथ कह सकता हूँ, 

कि हम अगर मॉंफी मांगेगे, तो वे हमें जरूर माफ कर देंगे। वे अपने मन में कोई कड़वाहट नहीं रखते। कल ही मुझे दादा  मिले थे, बता रहै थे कि बुलबुल का रिश्ता पक्का हो गया है। दीपावली के बाद शादी है। अच्छा मौका है हम कल दादा के यहाँ चलते हैं।

देखना वे हमें दिल से अपना लेंगे, बस तुम अपने मन की सारी कड़वाहट को छोड़कर कर चलना। हमारे परिवार की बेटी है हम सब मिलकर उसका विवाह धूमधाम से करेंगे।’ मनीष का मन बहुत प्रफुल्लित था। दीपा ने कहा

‘हम चलेंगे और अब मैं किसी को कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगी।’ दूसरे दिन दोनों उनके घर गए। हरि वल्लभ दादा और भाभी रमिया उन्हें देखकर बहुत खुश हुए। जब दीपा ने क्षमा मांगी तो रमिया ने उसके सर पर हाथ रखा और कहा

  ‘हम तुमसे नाराज नहीं है, हमारा तुम्हारे  सिवा है कौन’ दीपा भावुक हो गई थी वह रो पढ़ी, रमिया ने उसे गले से लगा लिया और कहा-‘ पगली इस तरह रोते नहीं, तू मेरी बहिन के समान है और अभी हम सबको मिलकर बुलबुल की शादी करनी है।

कल मनोज भैया और राधा भी आने वाले हैं। उनके आने के बाद हम सब मिलकर शादी की पूरी रूप रेखा बनाते हैं।मैं अभी से कह रही हूँ, विवाह के एक महिने पहले से सब यहाँ आ जाना सरला दीदी को भी जल्दी बुला लेंगे। अब मुझसे अकेले नहीं सम्हलेगा यह काम।

‘ मनोज की नौकरी पास के गॉंव मे थी अत:वह और राधा वहीं रहते थे। दीपा ने कहा -‘भाभी आप बस बताती जाना सारा काम राधा,दीदी,और मैं मिलकर कर लेंगे।’घर का माहौल खुशनुमा हो गया था। सबने साथ में भोजन किया और मनीष और दीपा घर आ गए।

दीपा के मन मे अब कड़वाहट के स्थान पर परिवार के प्रति प्रेम का भावना जाग गई थी,उसके मन का मैल धुल गया था। अब मनीष और दीपा हरि वल्लभ दादा के यहाँ आते जाते रहते और विवाह की पूरी तैयारी में उन्होंने  उनकी पूरी मदद की।

बुलबुल की शादी सआनन्द सम्पन्न हो गई और पूरे परिवार की एकता और प्रेम की सभी ने प्रशंसा की। दीपा को अपने परिवार के साथ मिलजुल कर रहते देखा तो, उसके मायके वालों की नाराजी भी दूर हो गई थी। 

प्रेषक

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

#कड़वाहट

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!