ममता – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : ” मेरा नाम शुभ है ।पता नही क्यों आज मेरा मन बहुत बेचैन हो रहा है ।मम्मी, पापा बहुत याद आ रहे हैं ।वैसे ही बैठे बैठे फोन देख रहा था कि मेरी नजर ” बेटियां ” शीर्षक पर पड़ी ।ममता शीर्षक पर कहानी लिखने की मांग की गई थी ,तो सोचा क्यों न मैं भी अपनी मम्मी के बारे में कुछ लिखूँ ।

मै अपने माता पिता को खो चुका हूँ लेकिन उनकी याद, उनकी ममता को भला कैसे भुला सकता हूँ ।माँ की ममता किसी की भी तराजू में नहीं तौली जा सकती ।लेकिन मै मरहूम हो गया ।पापा तो मेरे छुटपन में ही चले गए थे ।फिर मम्मी ने सबकुछ संभाला ।बहुत मेहनत किया मेरी जिंदगी संवारने में ।स्कूल में पढ़ाई के अलावा बहुत टयूशन करती रही ।

सिर्फ मेरे लिए ।थक कर चूर हो जाती ।फिर पूरा परिवार के साथ थी तो घर के बहुत सारे काम निबटाती ।उनका सपना अब सिर्फ मै था।चाहती थी मै अच्छी तरह पढ़ाई करके कुछ अच्छा बन जाउँ ।समय भागता रहा ।मै भी अच्छी नौकरी पर लग गया ।मेरी शादी भी हो गई ।खुशी के पलों का आनंद भी नहीं ले पाया कि मम्मी भी चली गई ।

आज मैं अपनी मम्मी का लिखा हुआ ही जो मेरे जीवन से संबंधित है उसे ही फिर से प्रेषित कर के उनके प्रति श्रद्धांजली देना चाहता हूँ ।कहीँ कोई त्रुटि या गलती रह जाए तो पाठक क्षमा करेंगे ।”कहानी ” — किसी छोटे से स्टेशन पर ट्रेन रुकी हुई थी ।तभी स्वाति की नींद खुल गई ।

उसने घड़ी पर नजर डाली,सुबह के पाँच बजे थे।फ्रेश होने के लिए उसने वाशरूम जाने के पहले बेटे को उठाया और तभी उसकी नजर सीट के नीचे गयी, तो उसके तो होश ही उड़ गये।उसका बैग ही गायब था।बैग में दोनों माँ बेटे के कपड़े और एडमिशन के पेपर थे।स्वाति अपने बेटे शुभ का एडमिशन बैंगलोर के एक इंजीनियरिंग कालेज में कराकर वापस लौट रही थी।

घबरा कर उसने तुरंत बेटे से कहा और शुभ भी बिना कुछ सोचे समझे नंगे पांव ही स्टेशन पर दौड़ गया ।बैग की खोज में वह स्टेशन के बाहर तक दौड़ गया ।लेकिन कुछ पता नहीं चला ।इधर स्वाति ने घबरा कर रोना शुरू कर दिया ।अब क्या करेगी वह? उसके बेटे की जिंदगी बर्बाद हो गई ।शुभ भी निराश हो कर वापस ट्रेन में बैठ गया ।

ट्रेन खुल चुकी थी ।स्वाति के समझ में नहीं आ रहा है, क्या करें? अभी राँची पहुचने में पाँच घंटे बाकी थे।अपनी सारी जमा पूंजी लगा कर उसने बेटे का एडमिशन कराया था।अब तो सब खत्म हो गया ।पति आनन्द के देहान्त के बाद स्वाति का एक ही सपना था अपने बेटे की जिंदगी सही तरीके से संवारना ।

कपड़े की चिंता उसे बिलकुल नहीं थी पर अगर एडमिशन के पेपर नहीं मिले तो क्या होगा? साथ बैठे सहयात्रीयों ने दोनों माँ बेटे को सांत्वना दिया और समझाया ” थोड़ी परेशानी तो होगी, पर सारे पेपर की डुप्लीकेट काॅपी आपको मिल जायेगी ।परन्तु स्वाति न जाने किस दुनिया में खोयी थी।

डेढ़ साल पहले की ही बात है इसी तरह वह पति और बेटे के साथ दिल्ली जा रही थी।पति आनन्द का इलाज कराने ।बीमारी की हालत में भी आनन्द पूरे रास्ते बेटे को दुनिया दारी समझाते रहे थे ।दिल्ली पहुंच कर भी आनन्द ने स्टेशन से लेकर अस्पताल तक की सारी जिम्मेदारी बेटे को सौंप दी।और शुभ ने भी बेटा होने का पूरा फर्ज निभाया था ।

तब वह ग्यारहवीं कक्षा में ही था।इस छोटी सी उम्र में ही उसने बहुत कुछ सीख लिया था ।और जब डाक्टर ने उन्हे जवाब दे दिया कि अब ज्यादा से ज्यादा एक महीने की जिंदगी बची है ।आनन्द की किडनी सिर्फ दस प्रतिशत ही काम कर रही थी वह भी न जाने कब काम करना बंद कर दे।स्वाति का मन धक से रह गया था वह अपने को संभाल नहीं पाती अगर शुभ न होता ।

तब उसी ने तो माता पिता को सहारा दिया और समझाया था कि मम्मी, पापा को कुछ नहीं होगा ।आज कल मेडिकल साइंस इतना डेवलपर कर गया है कि बड़ी से बड़ी बीमारी का इलाज संभव है ।हम घर पहुंच कर पैसे का इन्तजाम करेंगे और पापा का किडनी ट्रांसप्लांट करवायेंगे ।घर में इतने सारे लोग हैं, तुम हो,खुद मै ही अपनी किडनी दे दूँगा ।

देखना पापा बिलकुल ठीक हो जायेंगे ।घर पहुँची तो पूरा परिवार जुट गया।मायके से लेकर ससुराल तक सारे लोग जुट गये मदद के लिए ।लेकिन ईश्वर को यह मंजूर नहीं था ।आनन्द के कदम मौत के तरफ बढ़ते गये।एक रात स्वाति से कहा कि तुम लोग अब मुझे लेकर परेशान मत हो, अब चाहे कुछ भी उपाय कर लो,मेरा जाना निश्चित ही है ।

पैसे शुभ के पढ़ाई के काम आयेंगे ।देखना मेरा बेटा इन्जीनियर बनेगा ।और उसी दिन वे चले गए ।काश,वह अपने आनन्द को बचा पाती।मौत को दरवाजे पर खड़ी देख स्वाति के आखों के आगे अंधेरा छा गया था ।आज— अपने आनन्द के सपने को पूरा करके स्वाति वापस लौट रही थी और यह घटना हो गई ।

अचानक ट्रेन के रूकने पर उसकी तंद्रा टूटी ।उसका स्टेशन आ गया था ।स्टेशन पर भैया और देवर थे।दोनों फिर उसे लेकर रिपोर्ट लिखाने थाने गये।स्वाति आनन्द को ही याद कर रही थी “आज यदि वह होते तो यह दिन नहीं देखना पड़ता ।” स्वाति के मुँह से निकला ” रिपोर्टर साहब,कहां हैं? क्या मेरी कुछ मदद नहीं कर सकते “? तुम्हारे बेटे की जिंदगी का सवाल है ।अचानक उसका मोबाइल बज उठा ।उसने बेमन से हलो कहा ।

तभी उधर से किसी ने कहा ” हलो मैडम,क्या आपका कुछ खो गया है? ” स्वाति के हां कहते ही उसने नाम पता पूछा और कहा ” मै एक रिपोर्टर बोल रहा हूँ राउरकेला स्टेशन से थोड़ी दूर पर एक जंगल में एक बैग पड़ा मिला है जिसमें एडमिशन के पेपर और सार्टिफिकेट तथा दो चार कपड़े है ।मै इसे थाने में जमा कर रहा हूँ, प्लीज आप आकर ले लें।शाम होते होते सारा सामान स्वाति के हाथ में था।उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था ।

सभी लोग कह रहे थे भगवान ने ही रिपोर्टर के रूप में तुम्हारी मदद की ।लेकिन स्वाति जानती थी कि यह कोई और नहीं उसके आनन्द ही थे।उन्होंने ही हर कदम पर उसका साथ दिया तो अब कैसे छोड़ देते ।जब तक स्वाति है तबतक किसी न किसी रूप में आनन्द हमेशा उसके साथ रहेंगे ।— और फिर कहानी का अंत बहुत ही खराब हो गया ।मम्मी भी हमे छोड़ कर जा चुकी थी ।काश मेरे माता-पिता होते तो कितना खुश होते ।मै भी तो इतनी कम उम्र में उनकी ममता को तरस गया हूँ ।” यह रचना मेरी माँ की लिखी एक एक शब्द है ” — उमा वर्मा, नोएडा ।सत्य घटना पर आधारित ।स्वरचित, अप्रसारित ।

#ममता

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