आज रानी ने पहली बार भाभी और भाई को जबाब दिया था।
भाभी जब थपाडा मारना चाही तो हाथ उलट दिया -बस आज के बाद हाथ उठाना दूर यदि आंख उठायी तो—बाल पकड़कर खींचा।
दोनों पति पत्नी अंदर चले गए।
रानी कमरे में गयी और खो गयी अतीत की याद में —
आज से तीस साल पहले इसकी शादी पिता ने रामसजीवन से कराया था।तीन साल तक तो सही चला मगर तीसरी बेटी पैदा होते ही ससुराल में अभागी और न जाने क्या-क्या कहा जाने लगा।
रामसजीवन के मरते ही वे सब इसे मार-पीट कर भगा दिए।इसकी मां की मृत्यु हो चुकी थी।
पापा के साथ दो कमरे में रहने लगी।पापा का खाना ,सारा काम करना करके वह सिलाई करने लगी और तीनों बेटियों को पढ़ाना शुरू किया।
तीन भाई थे ,वे सब अपने परिवार में मस्त।यह पापा के पेंशन और खुद की सिलाई से घर चलाने लगी।
समय बीतने लगे और बच्चे पढ़ने लगे।
आज तीनों बेटियों की पढ़ाई लिखाई,फिर शादी सब किया
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मगर भाई भावज झांकने तक नहीं आये।
बस ताना-अभागी हमारी जायजाद हड़प कर बैठी है,
कभी कहते पापा पेंशन इसी को देते हैं तो यही सब करेगी।
तीनों भाई परिवार के साथ इसे और बच्चों को कोसते।
तीनों कामचोर सो काम करना पड़ता था।
इधर यह अनसुनी कर काम में लगी रहती।बस खाना बनाना और काम करना।
बच्चे बिना बाप के थे सो खूब पढ़ते।
कीचड़ में कमल खिलता है सो तीनों को बैंक में नौकरी लग गयी। फिर शादी भी अपने पसंद के लड़के से करवा दी।
सारा काम निपटा कर पिता का निधन हुआ।
अपनी क्षमता से तेरही किया।वे लोग न आये न ही कोई भाग लिया।
पापा का जायजाद लिया तो फिर करें।यह बेटी दामाद की मदद से खूब अच्छा की।पूरे इलाके में न्योता भेजा। खूब दान भी किया।
अब भाईयों को रहा न गया।वे थू थू करने लगे। समाज की गाली हजम नहीं हुई तो लड़ने आ गये।आज हाथ उठाना चाहा मगर हाथ तोड़ कर रख दिया।
पुलिस भी आ गई और तीनों को थाने में पेश करवा दिया।
यह हमारी बहन मकान पर कब्जा किए बैठी है।
क्यों पिता का पालन करना, देख-रेख करना,तेरही करना तुम्हारा काम नहीं था।बस अधिकार जताने आ गये।
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एक बार टैक्स भी भरा है।
अब तीनों भाई टूट गये।इतनी बड़ी बात हो गई।
मकान बहन ने हड़पा है। बिल्कुल नहीं,तुमने पिता का ध्यान नहीं दिया।वे पूरी जिंदगी बेटी का खाते रहे। इलाज करवाया,देख रेख सब बेटी ने किया–
साहब ते तीनों नकारा है। मां बाप को परेशान करते रहे।
अब क्या था , पुलिस का डंडा बजते ही सभी की अक्ल ठिकाने आ गयी।
जाओ भाग जाओ,आज के बाद यदि तंग किया तो।
बस जान लेकर भागे। उन्हें यह बात समझ में आ गई कि दीदी मजबूरी में सुन रही थी।उसने जबाब भी दिया और पिटवाया भी।सच में आज के बाद —.
मां अपने बच्चों के खातिर सब सहती है,वरना जबाब देना उनको भी आता है।
#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।
#वह बच्चों के खातिर सब सहती रही