Moral Stories in Hindi : रूपाली और तुषार दोनों का नया-नया रिश्ता तय हुआ था। शादी होने में 3 महीने बाकी थे। दोनों इस कोर्टशिप गोल्डन पीरियड का आनंद ले रहे थे। एक साथ पूरा पूरा दिन घूमना फिरना, बातें करना, एक दूसरे की पसंद ना पसंद को जानना, खाना पीना और फिर घर जाकर उसे सुंदर बीते हुए दिन को याद करते हुए अकेले में मुस्कुराते रहना।
एक बार इसी तरह हाथों में हाथ डाले दोनों पार्क में जाकर हरी-हरी घास पर बैठ गए। बातों बातों में तुषार ने कहा-“मुझे बच्चे बहुत पसंद है। क्यूट से, गोल मटोल मुस्कुराते हुए, शोर मचाते हुए, प्यारे प्यारे बच्चे।”
रूपाली चुप थी। तुषार ने पूछा-“क्या हुआ, तुम इतनी चुप क्यों हो गई?”
रूपाली-“क्योंकि मुझे बच्चे बिल्कुल पसंद नहीं, मुझे तो मुसीबत और जी का जंजाल लगते हैं। उफ, कितना शोर मचाते हैं जब खेलते हैं। और फिर लड़ते भी हैं।”
तुषार हंसने लगा। उसे लगा कि उसके घर के पास खेलते समय बच्चों का शोर होता होगा इसीलिए रूपाली ऐसा कह रही है।
रूपाली घर की इकलौती बेटी थी। पूरे लाड प्यार में पली बढ़ी और तुषार की एक छोटी बहन भी थी अदिति, जिसका विवाह भी होने वाला था।
नियत तिथि पर रूपाली और तुषार का विवाह प्रसन्नता पूर्वक विधि विधान से संपन्न हुआ। उनके विवाह के कुछ समय बाद अदिति का विवाह भी प्रसन्नतापूर्वक संपन्न हुआ। समय तेज गति से भागता रहा। दोनों के विवाह को लगभग 2 वर्ष बीतने वाले थे। तुषार की बहन अदिति गर्भवती थी। उसकी गुड न्यूज़ सुनकर तुषार की पापा बनने की इच्छा बलवती होने लगी, पर रूपाली बच्चे का नाम लेते ही भड़क जाती थी। अब तुषार को समझ में आ रहा था कि यह समस्या मामूली नहीं बहुत गंभीर है। साथ ही साथ वह इस बात से भी हैरान था कि यह कैसी औरत है ना तो इसके अंदर मां बनने की इच्छा है और ना इसके अंदर ममता दिखाई देती है।
आखिरकार उसने परेशान होकर पूरी बात अपनी मां को बता दी। उसकी मां ने कहा-“तुषार बेटा तू चिंता मत कर, मैं समय के साथ सब कुछ ठीक करने की कोशिश करूंगी।”
तुषार थोड़ा सा निश्चिंत हुआ। अदिति ने प्यारी सी गुड़िया को जन्म दिया और उसका नाम रखा प्रियांशी। प्रियांशी सचमुच सबको बहुत प्रिय थी। अदिति उसे लेकर मायके रहने आई। यहां भी प्रियांशी ने नाना नानी, तुषार मामा सब का मन मोह लिया। सिर्फ रूपाली ही उसे गोद में नहीं लेती थी, सिर्फ दूर से देखती थी।
तुषार की मम्मी ने एक दिन रूपाली से कहा-“बेटा, आज तुम्हें एक जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी, चाहे तुम्हारा मन हो या ना हो।”
रूपाली-“हां हां क्यों नहीं मम्मी जी, बताइए।”
मम्मी जी-“अदिति की बेस्ट फ्रेंड की मम्मी बीमार है और वह मेरी भी सहेली है। हम दोनों उन्हें देखने अस्पताल जा रहे हैं और वहां इतनी छोटी बच्ची को लेकर नहीं जा सकते, इसीलिए तुम्हें ही प्रियांशी को थोड़ी देर संभालना होगा। अभी वह छोटी है अधिकतर समय सोती रहती है और जब वह जागेगी , तो थोड़ा सा दूध कटोरी चम्मच से पिला देना। उसके साथ थोड़ा समय बिता लेना, हम जल्दी ही आ जाएंगे, और हां, दूध बिल्कुल हल्का-हल्का गुनगुना करना, तेज गम नहीं।”
रूपाली-“मैं कैसे संभालूंगी मम्मी जी, मुझे तो गोद में उठना भी नहीं आता।”
मम्मी जी-“अरे घबराती क्यों हो, मैं बताती हूं। (प्रियांशी को गोद में लेकर रूपाली को सिखाने लगी) देखो, अपना एक हाथ इसके सिर के नीचे रखो और दूसरे हाथ से इसे संभालो। अगर यह रोने लगे तो इसका सर आराम से धीरे से अपने कंधे पर रखो और हां दूध पिलाने के बाद भी बच्चे को सीने से सीधा लगाकर उसका सर कंधे पर रखकर गोद में उठाया जाता है। ताकि दूध नीचे उतर सके और बच्चे को डकार आ जाए।”
रूपाली ने जैसे ही सास के कहने पर उसे सीने से लगाया, उसे बड़ा अच्छा सा महसूस हुआ।
थोड़ी देर बाद दोनों मां बेटी चली गई। रूपाली ने प्रियांशी को अच्छे से संभाला। नींद में प्रियांशी जब मुस्कुरा रही थी तब रूपाली को उसे देखकर बहुत अच्छा लग रहा था। उस दिन के बाद से वह प्रियांशी को रोज गोद में उठने लगी।
अदिति कुछ दिनों बाद ससुराल लौट गई। रूपाली कुछ उदास उदास थी पर कुछ कह नहीं रही थी।
उसकी उदासी देखकर तुषार ने अपनी मां को बताया। उसकी मां ने कहा-“हां मैंने भी उसकी उदासी नोटिस की है। तुषार धीरे-धीरे ममता जागेगी। वह इसीलिए उदास है कि उसका प्रियांशी को देखने का मन है पर वह कह नहीं रही। कोई बात नहीं होने दो उदास, बस तुम देखते जाओ, सब ठीक हो जाएगा।”
आखिर एक दिन रूपाली से रहा नहीं गया और उसने कहा-“मम्मी जी, अदिति को गए कितने महीने हो गए, बुला लीजिए उनको एक बार।”
मम्मी जी-“हां रूपाली, तुम ठीक कह रही हो। करवा चौथ भी आने वाला है। तुम दोनों की शॉपिंग भी हो जाएगी और हम प्रियांशी से भी मिल लेंगे। रूपाली खुश हो गई।
अगले हफ़्ते अदिति आ गई। अब प्रियांशी थोड़ी बड़ी हो गई थी। सबको थोड़ा-थोड़ा पहचानने लगी थी और बच्चों के खेल तो निराले होते ही हैं जो सबको मोहित कर देते हैं। उनका हंसना, रोना, खेलना, खाना सब कुछ कितना प्यारा होता है। बच्चों के साथ पूरा दिन कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता। ऐसा ही इन सब के साथ भी हो रहा था।
एक दिन मम्मी जी ने रूपाली से कहा-“रूपाली, तुम अदिति के साथ शॉपिंग करने जाओ। मैं प्रियांशी को संभाल लूंगी।”
रूपाली तो जैसे अवसर तलाश कर रही थी एकदम बोली-“नहीं नहीं मम्मी जी, आप अदिति के साथ बाजार जाइए, मैं घर पर रहूंगी, प्रियांशी के साथ।”
मम्मी जी-“पर तुम्हारी पसंद के कपड़े?”
रूपाली-“आप जो भी लाओगे मुझे पसंद आ जाएगा।”
मम्मी और अदिति एक दूसरे को देखकर मुस्कुराई और प्रियांशी को रूपाली के साथ छोड़कर बाजार चली गई। प्रियांशी भी अपनी मामी के साथ बहुत खुश थी। अगले दिन अदिति को अपने घर वापस जाना था।
रूपाली उसके जाने से फिर उदास हो गई। तुषार ने उसे उदास देखकर उसे छेड़ते हुए कहा-“रूपाली, उदास क्यों होती हो, क्यों ना हम अपनी प्रिया को दुनिया में लाने के बारे में कोशिश करें।”
इस बार रूपाली भड़की नहीं बल्कि शरमा कर बोली-“धत, बेशर्म। और दोनों हथेलियां से अपना चेहरा छुपा लिया।
आज 4 महीने बाद मंदिर से आकर तुषार और रूपाली ने मम्मी पापा के पैर छूकर आशीर्वाद लिया और उन्हें दादा-दादी बनने की खुशखबरी सुनाई। सभी लोग बहुत खुश थे कि आखिरकार रूपाली के मन में”ममता जाग उठी।”
स्वरचित अप्रकाशित
गीता वाधवानी दिल्ली
साप्ताहिक विषय- #ममता