ममता फर्क नहीं करती – किरन विश्वकर्मा

मैं अभी बाहर खड़ी सब्जी ले ही रही थी कि मुझे वैभवी अपनी बेटी के साथ दिखाई दी जो की ट्रॉली बैग लेकर कहीं बाहर जा रही थी मुझे देखते ही उन्होंने पूछा कि……बहुत दिनों बाद दिखाई दे रही हो क्या बात है मैंने भी जवाब दिया हां अब तबीयत सही नहीं रहती है शुगर और हाई बीपी की प्रॉब्लम बनी रहती है इसलिए अब मै घर के बाहर थोड़ा कम ही निकलती हूं फिर मैंने उन्हें देखते हुए पूछा…….आप शायद कहीं जा रही हैं वह खुश होते हुए बोली……हां बिटिया!!! इंजीनियर बन गई है और नोएडा में जॉब भी लग गई है पहली सैलरी मिलते ही मुझे और अपने पापा को वैष्णो देवी धाम लेकर जा रही है मैया जी के दर्शन के लिए…..वह मुस्कुराते हुए बोली।

बहुत-बहुत बधाई!!! कि आपकी बिटिया इंजीनियर बन गई और जॉब भी लग गई भई हम तो मिठाई खाएंगे….मैंने वैभवी से कहा।

हां हां….बिल्कुल बस माताजी के दर्शन करके लौटे फिर आपको मिठाई भी खिलाएंगे यह कहते हुए वह आगे बढ़ गई।

एक हफ्ते बाद में मिठाई का डब्बा और प्रसाद लेकर मेरे घर आई मैंने उन्हें गले लग कर बधाई दी……वैभवी तुमने बहुत अच्छा किया जो यह नेक काम किया तुमने कई वर्षों पहले बिटिया को गोद लेने का निर्णय लेकर अपनी सूनी गोद को भर लिया और समाज के लिए एक मिसाल कायम की है तुमने उसे पाला- पोसा और एक अच्छा इंसान बनाया। एक अनाथ बच्चे को घर दिया मां- बाप का प्यार दियाऔर पढ़ा- लिखा कर आत्मनिर्भर बनाया इससे इससे अच्छा नेक काम और कोई हो ही नहीं सकता।




हां नीलू तुम सही कह रही हो…..पर जब कई वर्ष पहले मैंने यह निर्णय लिया था तब कोई भी खुश नहीं था और ना ही किसी ने मेरा साथ दिया दस वर्षों तक में बाँझन शब्द अपने लिए सुनती रही किसी भी शुभ काम में मुझे बुलाया नहीं जाता था कि कहीं मेरी छाया भी ना पड़ जाए। बहुत दुःख होता था बहुत रोती थी अगर मुझे कोई औलाद नही है तो इसमें मेरा क्या कसूर है। एक बच्चे के लिए मैं कितने मंदिर और कितने अस्पताल कहां-कहां नहीं गई मैंने अपना आंचल फैलाकर हर भगवान के सामने एक औलाद मांगी पर शायद ईश्वर ने मेरी किस्मत में मुझे इस तरह से औलाद देना लिखा था।

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 फिर एक दिन पता चला कि कोई भिखारिन जो कि मानसिक विक्षिप्त भी थी…….बेटी को जन्म देकर वह चल बसी मेरी सहेली उस अस्पताल में नर्स थी उसने घर आकर मुझे बताया फिर क्या था बस तभी से सोच लिया था कि उसी बिटिया को घर लाना है पहले तो यह भी तैयार नही थे फिर मैंने इन्हें बहुत समझाया……हाथ जोड़कर इनसे मिन्नते की तब जाकर यह माने फिर कानूनी कार्यवाही शुरू हुई…कानूनी कार्यवाही में करीब पाँच महीने का समय लग गया फिर मुझे वह बिटिया रानी मिल गई। 

मैंने ढोल- नगाड़ों के साथ बिटिया को घर ले आई तब मेरे इस फैसले का सभी लोगों ने बहुत विरोध किया किसी ने कहा की गोद लेना ही था तो बेटा लेती….बेटी को लेकर क्या मिलेगा बेटा घर का चिराग होता है, बुढ़ापे का सहारा होता है और मां-बाप की मृत्यु के बाद मोक्ष और मुक्ति भी तो बेटा ही देता है किसी ने कहा कि पता नहीं किसका गंदा खून है जो यह उठाकर अपने घर में ले आए बहुत लोगों ने बहुत तरीके से विरोध किया पर मैंने किसी की भी ना सुनी मेरे लिए तो वह एक खूबसूरत गुड़िया थी उस बिटिया का क्या कसूर था बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं सबसे ज्यादा खुशी मुझे इस बात की थी कि मैं भी अब मां बन गई थी मैंने अपना सारा प्यार- दुलार बिटिया को दिया…..




 ममता कभी फर्क नही करती कि औलाद बेटी है या फिर बेटा। उसे पढ़ाया- लिखाया और अपने पैरों पर खड़ा किया। आज मेरी बिटिया पढ़- लिखकर अपने पैरों पर खड़ी है और आत्मनिर्भर भी बन गई है बीतते वक्त के साथ अब सभी का मुंह बंद हो गया अब जबकि मेरी बिटिया जॉब करने लगी है तो अब सभी लोग मेरे साथ-साथ उसकी भी तारीफ करते हैं तभी उनकी बेटी आ गई……मम्मी!!! पापा आ गए हैं और चाय भी बन गई है आपको बुला रहे हैं….वैभवी खुश होकर अपनी बिटिया का हाथ पकड़े हुए अपने घर चली गई। सच में कितना अच्छा फैसला लिया है वैभवी ने और लोगों का क्या लोगों का तो काम ही कुछ न कुछ कहना है।

किरन विश्वकर्मा

लखनऊ

#औलाद

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