डॉ. अविनाश तेज गति से कार चला रहे थे । साथ में बैठी उनकी पत्नी नेहा और चार साल का बेटा विनय कुरकुरे और चिप्स खा रहे थे।
अविनाश बोला ,” यार नेहा ! तुम भी ना विनय के साथ कभी कभी बच्चा बन जाती हो। “
नेहा हँसी और बोली ,” अविनाश जी ! मुझे भी अच्छा लगता है विनय के साथ चिप्स खाने में। “
दोनों हँसने लगे तो विनय भी हँस दिया।
तभी अचानक एक औरत गाड़ी के सामने आकर खड़ी हो गई।
अविनाश गाड़ी का ब्रेक लगाते हुए बोला ,” अरे पागल है क्या ? चल सामने से हट ! ”
नेहा भी गाड़ी का शीशा नीचे सरकाते हुए बोली ,” भिखारिन कहीं की ! गाड़ी के सामने क्यों आकर खड़ी है ? मरना है तो कहीं और जाकर मर ना !”
भिखारिन औरत एक पॉलीथिन गाड़ी के अन्दर फेंकते हुए बोली, “अपना कूड़ा अपनी गाड़ी में ही फैलाइए साहब। जैसा बाप वैसा ही बेटा।”
इतना कहकर वह वहाँ से निकल कर चली गई।
अविनाश और नेहा दोनों एक-दूसरे का मुँह तांकने लगे।
अभी थोड़ी देर पहले ही कुरकुरे और चिप्स के खाली पैकेट और पानी के बोतल को नेहा ने ही पॉलिथीन में रखकर सड़क पर फेंकी थी।
उस भिखारिन की इस हरकत से नाराज अविनाश बोला , “ऐसे कैसे वह भिखारिन औरत हमें बोलकर चली गई और हम कुछ बोल भी ना सके ? ”
नेहा भी आक्रोश में बोल पड़ी, “अभी उस बुढ़िया को बताती हूँ।”
अविनाश उसे शांत करने का प्रयास करते हुए बोला , “यार नेहा छोड़ो जाने दो…भिखारिन के मुँह नहीं लगते। लेकिन एक बात उसकी मैं समझ नहीं सका कि वह ‘जैसा बाप वैसा बेटा’ किसको बोली? मुझे या विनय को?”
नेहा भी असमंजस भरे स्वर में बोली ,”पता नहीं। कितना घिन्न आ रही थी उस औरत को देखकर और सफाई की बात हमें सीखा रही थी।”
अविनाश गाड़ी स्टार्ट करके आगे बढ़ गया।
वह अपने क्लीनिक पर पहुँचा और मरीजों को देखने लगा ।
बहुत बड़ा हॉस्पिटल था, जो अविनाश के पापा बनवाये थे।
पहले अविनाश के पापा और मम्मी दोनों शहर के मशहूर डॉक्टर थे और अब उनका बेटा उनकी विरासत को संभाल रहा था।
अविनाश जब एमबीबीएस कर रहा था, तभी अपनी ही सहपाठी नेहा से प्यार करने लगा था और दोनों के प्यार और शादी से किसी को कोई ऐतराज नहीं था।
नेहा भी एक प्रसिद्ध डाक्टर की बेटी थी।
दोनों परिवार बराबरी के थे और दोनों की शादी खूब धूमधाम से हुई थी।
उन दोनों की जिंदगी में उनका प्यारा सा बेटा ‘विनय’ पैदा हुआ, जो दोनों घरों में खुशहाली लेकर आया।
विनय जब दो साल का था, तभी एक अनहोनी घटना घटी । अविनाश के मम्मी और पापा सुनील और उनकी पत्नी दोनों एक रोड एक्सीडेंट में असमय काल के गाल में समा गए।
अविनाश के ऊपर वज्रपात हुआ था।
नेहा और उसके मम्मी पापा अविनाश को बहुत समझाए और तब अविनाश सामान्य हुआ और हॉस्पिटल संभालने लगा था।
वह भी अपने पिता की तरह ही ख्याति प्राप्त करने लगा।
अविनाश दूसरे दिन अपने हॉस्पिटल से घर जा रहा था, तभी उनकी नजर उस भिखारिन औरत पर पड़ गई।
वह औरत झाड़ू लेकर सड़क झाड़ रही थी । अविनाश ने एक व्यक्ति को बुलाकर पूछा ,”आप इस औरत को जानते हैं? “
– “सर ! यह औरत पागल है और भीख माँग कर गुजर-बसर करती है । रोज सुबह-शाम सड़क पर सफाई करती रहती है। कही पर भी किसी को कूड़ा फेंकते हुए देखती है, तो झाड़ू लेकर ही दौड़ा देती है। यह कालोनी इसकी वजह से ही इतना साफ-सूथरा है। क्या मजाल कि कोई यहाँ कूड़ा फेंक दे।” उस व्यक्ति ने बताया था ।
अविनाश ने उसके बारे में और जानना चाहा ,”और इसका परिवार?”
उस व्यक्ति ने बताया , “पता नहीं सर , यह कहाँ से आई हैं! लेकिन सुनने में आता है कि इसका एक बेटा था और करीब एक साल पहले ही किसी गम्भीर बीमारी में चल बसा। तभी से यह औरत पागल हो गयी। और ज्यादा तो नहीं पता मुझे इसके बारे में।”
अविनाश उस व्यक्ति का धन्यवाद करके आगे बढ़ गया ।
अविनाश को उस औरत की एक ही बात कचोट रही थी कि उसने यह क्यों बोला ‘जैसा बाप वैसा बेटा’।
नेहा उनकी बैचेनी को लेकर चिंतित रहने लगी और उसे समझाई , “अविनाश जी ! आप क्यों उस पागल औरत की बातों को दिल से लगा लिए हैं? सिर्फ पॉलीथिन ही तो फेंके थे और उसने इतना सुना दिया था। खैर छोड़िये और चलिये आज रेस्टोरेंट चलते हैं।”
अविनाश बुझे हुए स्वर में बोला, ” नहीं नेहा ! आज मेरा मूड ऑफ है। फिर कभी।”
नेहा अविनाश के चेहरे को देखकर प्यार से बोली , “अविनाश जी, आप ऐसे क्यों उदास हैं?
अविनाश बोला ,”नेहा, आज मुझे याद आया है कि एक दिन वह भिखारिन औरत मेरे हास्पिटल में अपने बेटे को लेकर आई थी इलाज के लिए। और काउंटर पर गिड़गिड़ा कर रो रही थी कि उसके पास पैसा नहीं है और उसके बेटे को डॉक्टर साहब देख लें। मैं भी कैमरे में सब देख रहा था और बाहर निकल कर उसको भगाने के लिए बोला तो……वह मेरा पैर पकड़ कर बोली थी कि डॉक्टर साहब, मेरे बेटे को बचा लिजिए। इसके अलावा मेरा कोई नहीं है, बेसहारा हो जाउंगी। मैं बदले में आपके हॉस्पिटल में दाई का काम करूंगी, जब तक आपका पैसा ना चुका दूँ । वह रिपोर्ट दिखाना चाहती थी, लेकिन मैंने रिपोर्ट भी नहीं देखा और उसको बाहर निकालने को बोलकर अपने केबिन में आकर बैठ गया था। वह चिल्लाई, ‘डाक्टर साहब आपका बहुत नाम सुनी थी, बड़ी उम्मीद से आई हूँ………’
पर मैं अनसुना करके मरीज देखने लगा, तो उस औरत की आवाज सुनाई पड़ी….. ‘जैसा बाप वैसा ही बेटा’। और नेहा ! उस दिन भी उसने यही बात दोहराई। “
नेहा ने उसे समझाना चाहा था , “अविनाश जी, आखिर में हम डाक्टर फ्री में कितना करेंगे? और आपने कुछ गलत नहीं किया। पापा जी कैसे थे! आज भी लोगों के दिलों पर राज करते हैं
और आपको भी पूरा शहर जानता है।”
अविनाश कुछ सोचते हुए बोला , “नेहा, कहीं उस औरत से हमारा कोई कनेक्शन तो नहीं….?”
नेहा ने मुस्कुराते हुए उसे यकीन दिलाना चाहा ,”अरे अविनाश जी, आप कैसी बात कर रहे हैं। उस भिखारिन पागल औरत का हमारे घर से………संबंध ???? …..नहीं अविनाश जी, ऐसा हो ही नहीं सकता।”
समय बीतता गया । आज विनय का जन्मदिन था और अविनाश ने घर पर ही पार्टी का आयोजन किया था ।
आज उसे अस्पताल से घर के लिए जल्दी निकलना था और वह निकला भी तो रास्ते में भीड़ देखकर…….गाड़ी रोक दिया और वहाँ भीड़ में जाकर देखा तो वही भिखारिन औरत खून से लथपथ गिरी पड़ी थी।
लोग कह रहे थे ‘यह पागल नहीं साक्षात भगवान थी जो उस बच्चे को बचाने के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी। ‘
भीड़ में उसे जो जानकारी प्राप्त हो सकी उसके अनुसार एक छोटा बच्चा गाड़ी के सामने आ गया था और जब उस भिखारिन औरत ने यह देखा तो दौड़ पडी़ और बच्चे को बचाने में कामयाब हो गई । लेकिन अपने को नहीं बचा सकी और गाड़ी के नीचे आ गई।
अविनाश घबराया हुआ घर आया, तो देखा नेहा विनय को सीने से लगाकर जार-जार रो रही थी। अविनाश को देखकर नेहा ने कहा, “अविनाश जी, आज मेरा विनय एक्सीडेंट से बच गया।”
अविनाश चिल्ला कर बोला , “नेहा, तुमने इसे अकेले कहाँ भेजा था ? “
– “अविनाश जी, यह अपने दोस्त के साथ चला गया था उसके घर। और मैं ड्राइवर भेजी थी लेने के लिए।” अपने आँसू पोंछते हुए नेहा बोली थी ।
तभी नेहा को रोते देख विनय बोल पड़ा ,”
सॉरी पापा ! पर पापा, वह आंटी जो उस दिन रास्ते में हमारी गाड़ी के अन्दर पॉलीथिन फेंकी थी ना, वह गंदी नहीं थी। वह बहुत अच्छी थी। उसने ही मुझे बचा लिया । ” और वह अविनाश को पकड़ कर रोने लगा।
अविनाश भावुक होकर जोर जोर से चिल्लाने लगा और रोते हुए बोलने लगा ,”अरे वह भिखारिन नहीं थी । असल में भिखारी तो मैं हूँ । एक दिन उसने मुझसे अपने बेटे के लिए इलाज के लिए भीख मांगी और मेरे पास धन दौलत सबकुछ होकर भी उसको कुछ नहीं दे सका। भिखारी तो मैं हूँ , जो बिना मांगे ही वह मुझे भीख दे गई, मेरे बेटे की जान बचाकर।
अपनी सबसे अनमोल चीज अपनी जान देकर उसने मेरे बच्चे को बचाई। भिखारिन वह नहीं, भिखारी हम हैं। वह तो बहुत अमीर थी, और गंदी वह नहीं, गंदे हम हैं, जो सड़कों पर और इधर -उधर कूड़ा फेंकते हैं।”
अविनाश फफक फफक कर रोने लगे, तो नेहा भी रो पड़ी ,” प्लीज अविनाश जी जाइए और उनका अंतिम संस्कार करवाइए। उसे लावारिस मत छोड़िये।”
अविनाश पुलिस की मदद से उस औरत का अंतिम संस्कार करवा, वह जहाँ रह रही थी, वहाँ गये…उस टूटी -फूटी झोपड़ी में।
वहाँ कुछ नहीं मिल सका।
अविनाश औरत का अतीत जानना चाहते थे।
सिर्फ उनको एक औरत का पता मिला, जो इस पागल औरत के बारे में जानती थी।
लेकिन वह किसी गाँव में रहती थी।
अविनाश वहाँ गये, तो संयोग से वह औरत मिल गयी।
पहले तो ना-नुकर करती रही लेकिन जब अविनाश हाथ जोड़कर विनती करने लगे, तब औरत बोली, “मैं बताना तो नहीं चाहती हूँ, लेकिन आप इतना विनती कर रहे हैं, तब बता रही हूँ। वह औरत भिखारिन नहीं थी। उनका नाम ममता था और वह इसी गांव की सीधी-साधी लड़की थी । वह पांचवी तक पढ़ी थी। उनकी शादी शहर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुई थी । उनके पति पढा़ई कर रहे थे। और ममता ने ही अपने गहनों को बेचकर अपने पति की डाक्टरी की पढ़ाई पूरी करवाई थी। वह डाक्टर बन गये, तो उनको गाँव की ममता गंवार लगने लगी। और इसी बीच उनका एक बेटा भी हुआ।
डाक्टर साहब कहीं भी बाहर जाते थे, तो साथ में काम करने वाली डाक्टरनी को अपनी पत्नी बनाकर ले जाते थे। वह अपने दोस्तों के सामने गंवार ममता को नहीं लाना चाहते थे। ममता अन्दर ही अन्दर घूटती थी। बाकी लोगों की नजर में ममता गाँव की गंवार दिखने वाली सामान्य महिला ही लगी। डॉक्टर साहब बहुत ही अभिमानी और स्वार्थी बन चुके थे। और वह अपने बच्चे पर भी ममता का असर नहीं पड़ने देना चाहते थे।
इसलिए बेटे को भी ज्यादातर अपने पास ही रखते थे। एक दिन ममता से बोले, “देखो मैं तुम्हारे साथ और नहीं रह सकता। मेरा समाज में बहुत रुतबा है और लोगों के बीच में रहना है, तो तुम जैसे गंवार को मैं कैसे कही लेकर आ जा सकता हूँ ? इससे बेहतर हम अलग हो जाते हैं। तुम तो जानती ही हो मैं किसी और से प्यार करता हूँ।”
ममता आँखों में आँसू लिये हुए बोली , “जी जानती हूँ, लेकिन मुझे अलग मत करिये। यहीं एक कोने में पड़ी रहूँगी। मैं आपके नाम और बेटे के सहारे जी लूंगी।”
डाक्टर बोला , “नहीं ममता, मैं नहीं चाहता हूँ कि मेरा बेटा तुम्हारी तरह सीधा बने। उसको मै अपनी तरह बनाना चाहता हूँ।”
और डॉक्टर साहब ने ममता को जबरदस्ती घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
ममता अपने बच्चे को छोड़कर चली गई, तो डॉक्टर साहब ने उसी डॉक्टरनी से दूसरी शादी कर लिया ।
ममता का दूसरा बच्चा पेट में पल रहा था।
डॉक्टर साहब ममता को अपने बेटे से भी मिलने नहीं देते थे।
उन्होंने ममता का नामोनिशान मिटा दिया था.. अपने दिल घर दिमाग हर जगह से, ताकि बेटे को कभी भी ममता के बारे में पता ना चल सके।
घर छोड़कर जाती हुई ममता को अपने साथ कोई भी निशानी ले नहीं जाने दिया और उसे चेतावनी देते हुए बोले , ” अब फिर कभी मिलने की कोशिश न करना । कभी भी मेरे नाम और इज्जत पर आंच नहीं आनी चाहिए।”
ममता मेहनत और मजदूरी करके जीने लगी । दूसरा भी बेटा ही पैदा हुआ और वह अपने बेटे के साथ रहने लगी। “
अविनाश औरत की बात सुनकर उत्सुकता से बोल पड़ा , “प्लीज बताइये कौन था वह डाक्टर ?? ? .?
और कही मैं……..?”
औरत रहस्यमय स्वर में बोली , “जी हाँ डाक्टर अविनाश जी, आपका बाप सुनील ही उनका पति था… और वह भिखारिन कोई और नहीं आपकी ही माँ थी। आप ममता के बड़े बेटे हैं और मैं यह सब इसलिए जानती हूं क्योंकि मैं उस समय सुनील डाक्टर साहब के यहाँ नर्स थी। ममता मुझे अपनी सारी बातें बताती थी और जब भी मैं शहर जाती थी, तो उनसे मिलती थी। आप अपने ही भाई का भीइलाज नहीं कर सके। अरे! वह बेचारा खुद किस्मत से मारा था। इतने बड़े डाक्टर का बेटा होकर मजदूरों की बस्ती में रहता था। ममता ने उसे बहुत उच्च शिक्षा दी थी। वह मेधावी छात्र था और वकालत की पढ़ाई पूरी कर चुका था।
लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था। उसको कैंसर जैसी गम्भीर बीमारी हो गई थी। शायद आप बचा सकते थे, लेकिन आप तो अपने बाप से भी एक कदम आगे निकले। और बेटे के मरने के बाद ममता पागल हो गई और इधर-उधर रहने लगी।
ममता कहती थी कि जैसा बाप वैसा ही बेटा।”
अविनाश फफक फफक कर वहीं रोने लगा।
” मुझे तो पता भी नहीं था कि डाक्टर देविका मेरी माँ थी ही नहीं। उस नालायक औरत को मैंने देवी समझा जो पापा की इज्जत आन मान शान थी ,
पर मैं अपनी देवी समान माँ को पहचान नहीं सका।
धिक्कार है मुझे अपने आप पर कि मैं अपने भाई को भी नहीं बचा सका।
माँ पागल होकर भी अपने बेटे के खुशी के लिए अपनी जान दे दी।
कल तक बडे़ स्वाभिमान से बोलता था मैं कि मैं डाक्टर सुनील और देविका का बेटा हूँ।
लेकिन अब सिर्फ और सिर्फ अपनी माँ का बेटा ममता का बेटा रहूँगा।
अब मेरे हास्पिटल का नाम सुनील देविका नहीं, अब मेरी माँ ममता और मेरे भाई के नाम से जाना जायेगा।
माँ के नाम से गरीबों का निशुल्क इलाज करूँगा और सफाई अभियान में मैं खुद सड़कों पर झाड़ू लेकर निकलूंगा। “
अविनाश वहाँ से आकर नेहा से सभी बातें बताकर उससे लिपटकर रोने लगा …. . . . . !
” अविनाश जी ये समय रोने का नहीं है, अब सबको बताने का है कि आप अपनी माँ ममता माँ के बड़े बेटे हैं और मैं उनकी बहू हूँ और यह विनय उनका पोता है। और मैं खुद ममता माँ के नाम से संस्था शुरू कर रही हूँ ! ” नेहा ने उसे उसका कर्तव्य याद दिला
दोनों मिलकर जी जान से ममता के सपनों को साकार करने में जुट गए ।
मौलिक एवं स्वचरित रचना
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मृदुला कुशवाहा