दरवाजे की कुंडी बजते ही सामने अपने बेटे दीपक को नेवी अफसर की वर्दी में देखकर रागिनी को एक बारगी तो अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ, वह भाग कर घर के मंदिर में जाती है और बेटे की नजर उतारने के लिए पूजा की थाली लेकर आती है। रागिनी की बेटी समृद्धि जो आज फिजियोथैरेपिस्ट की ट्रेनिंग ले रही है वह भी दौड़कर अपने भाई से लिपट जाती है।
उन तीनों की ही आंखों से आज खुशी की गंगा जमुना बह रही है, कोई मुंह से ज्यादा बोल नहीं पा रहा बस उस पल के आनंद का उत्सव मन ही मन मना रहे हैं।
रागिनी की आज तक की तपस्या पूरी हो चली है, जैसे उसके रूठे हुए भगवान शायद बरसों पश्चात आज उस पर अपने आशीर्वाद की बारिश कर रहे हैं।उसके दोनों ही बच्चे आज समर्थ और सक्षम हो चले हैं। रागिनी के चेहरे पर असमय ही आई झुर्रियों पर आज कुछ अलग ही तरह की चमक है ।रागिनी ने अपनी दोनों बच्चों की परवरिश जिस तरह की है वह आज आस पड़ोस के लिए मिसाल बन चुकी है।
तभी रागिनी का बेटा दीपक अपनी पहली तनख्वाह अपनी मां के हाथ में रखता है तो बहन कहती है मां आज हम सबसे पहले सिद्धिविनायक के मंदिर जाएंगे, फिर ढेर सारी शॉपिंग करेंगे और किसी अच्छी जगह खाना खाएंगे। न जाने कितने दिन हो गए मां हम सभी को अच्छा खाना खाए हुए।पापा के जाने के बाद तूने हमें जिस तरह पाला पोसा है शायद उसका हम शब्दों में बखान कर ही ना पायें।वो तो मां हमें तेरे हाथ का स्वादिष्ट और प्रेम से भरपूर खाना मिला, नहीं तो पूरा जीवन आलू भात खाकर कैसे ही हम गुजारा करते।
स्कूल में जब सभी बच्चे नये नये टिफिन में रोज ही कुछ नया लाते तो हमें एहसास होता कि बिन पापा के तुमने हमें अच्छी शिक्षा के साथ अच्छा जीवन देने की अपनी कोशिशों में कभी कोई कोर कसर बाकी ना छोड़ी। अपनी ममता के आंचल की छांव में तुमने हमें हर कदम संभाला। हम बहुत खुश नसीब हैं मां जो तेरे आंचल की छाया हमें मिली।
इतना सुनकर रागिनी अपने बच्चों के सिर पर हाथ रखते हुए उन्हें दुलारती हुई वर्तमान की खिड़की से अतीत की सीढ़ियां उतरने लगती हैं। याद करती है कि कितना खुश था उसका परिवार ज्यादा सुविधाएं बेशक नहीं थी पर सुख शांति और प्रेम भरपूर था उसके परिवार की बगिया में। पर समय की बेदर्द आंधी ने जैसे उसकी बगिया उजाड़ डाली। उसके पति नरेंद्र किसी प्रॉपर्टी ठेकेदार के असिस्टेंट के रूप में काम करते थे। किसी भी बिल्डिंग को बनाने में ठेकेदार से ज्यादा उनका ही सहयोग रहता था। पर समय का कुचक्र ऐसा चला कि वह मनहूस दिन आ ही गया जिसने नरेंद्र को उनकी जिंदगी से दूर कर दिया।
एक दिन सुबह-सुबह नरेंद्र नाश्ते के लिए बैठा ही था कि तभी ठेकेदार का फोन आया कि उसे तुरंत साइट पर जाना पड़ेगा। उस दिन मूसलाधार बारिश हो रही थी रागिनी का मन बिल्कुल नहीं था कि नरेंद्र इस समय साइट पर जाए। वह नरेंद्र को साइट पर जाने के लिए मना करती रही पर नरेंद्र नहीं माना। शाम को मिलते हैं कहकर वह घर से निकल गया, और उस दिन रागिनी की दाई आंख फड़कती रही, उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था। शायद नियति उसे समझाना चाहती थी कि आज उसका सब कुछ बर्बाद होने वाला है। तभी कुछ घंटे बाद साइट से आये एक फोन से खबर मिली कि नरेंद्र का साइट की चौथी मंजिल से फिसलकर गिरने से एक्सीडेंट हो गया है और ज्यादा खून बहने से उसकी वही मृत्यु हो गई।
रागिनी बेहोश होकर फर्श पर गिर जाती है,, दोनों बच्चे अपनी मां का आंचल पड़कर रोने लगते हैं। तभी से रागिनी के जीवन में एक जंग छिड़ जाती है उसके धैर्य के साथ उसकी अनगिनत परीक्षाओं की। यह मानव जीवन का दस्तूर रहा है कि सुख में तो सभी साथ देते हैं पर दुख में सभी साथ छोड़ देते हैं। रागिनी और उसके बच्चों के साथ भी वही हुआ ,घर परिवार नाते रिश्तेदार धीरे-धीरे उससे कटने लगे। रागिनी की जीवन की कठिनाइयों और जिम्मेदारियां की पगडंडी लंबी होती चली गई, उसकी गृहस्थी की गाड़ी का एक पहिया बैठ चुका था। अब रागिनी को अकेले ही अपने कंधों पर अपनी गृहस्थी की गाड़ी का बोझ संभालना था।
एक रात अपने सोते हुए बच्चों के मासूम चेहरे देखकर वह मन ही मन फैंसला करती है कि चाहे जितनी भी परीक्षाएं आए, जितनी भी परेशानियां आएं ,वो हार नहीं मानेगी और अपनी ममता की छांव में दोनों बच्चों की परवरिश में कोई कमी बाकी नहीं छोड़ेगी।
शादी से पहले उसने सिलाई का डिप्लोमा किया था, उसे सिलाई का काम बखूबी आता था। धीरे-धीरे आसपास सभी के कपड़े सिलने का वह काम शुरू कर देती है।
उससे उसकी गृहस्थी की लड़खड़ाती गाड़ी को कुछ सहारा मिलता है। पूरे 16 साल वो सभी के नए कपड़े सिल कर देती रही , मौका मिलने पर दोनों बच्चों के भी कपड़े बनवाती पर अपने लिए शायद ही उसने कोई साड़ी इन बरसों में ली हो।
समय अपनी रफ्तार से चलता रहा, उसकी साड़ियों में पैबंद लगने लगे, ममता का आंचल फटने लगा पर उसकी ममता में कभी कोई कमी नहीं आई ।उसकी आंखों में बस एक ही सपना पलता रहा उसके दोनों बच्चों को लायक बनाना ,अपने पैरों पर खड़ा करना और आज उसका वह सपना सच हो रहा था तो उसे अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं हो रहा था।
तभी उसके बेटे दीपक ने उसे झकझोरा तो वह वर्तमान में आती है। उसका बेटा अपनी मां के गोद में सर रखकर कहता है आज मैं सबसे पहले एक बेटे का फर्ज निभाउंगा ,मंदिर दर्शन से पहले भी अपनी मां को उनकी मनपसंद साड़ी देकर।
उसका बेटा दीपक कहता है हमारी भगवान तो आप हो मां हमारी परवरिश के लिए आपके आंचल ने ना जाने कितने दुख सहे पर आपने अपने आंचल की ओट से हमें बचाए रखा, अपनी ममता की छांव में हमें हर दुख परेशानी से बचाया ।तो आज सबसे पहले अपने भगवान को हम कुछ उपहार देना चाहते हैं,कहकर वह मां के लिए लाई साड़ी रागिनी के गोद में रख देता है। जिसे रागिनी सीने से लगाकर दोनों बच्चों को अपनी बाहों में भर लेती है और मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद करतीं हैं।
ऋतु गुप्ता