रीना मुंबई की एक मल्टी नेशनल कंपनी में काम करती हैं । कहने को वो एक संस्थान से जुड़ी हैं ,जो गरीब ,लाचार बच्चों की हर तरह से मदद करती हैं । रीना हर महीने अपनी सैलरी का कुछ भाग इन बच्चों के लिए दे, पुण्य का काम रही थी । ऑफ़िस में सब रीना को बोलते कुछ पैसे दान करना मदद नहीं ,बस दिखावा है । और क्या पता वो तुम्हारे पैसों का सही इस्तेमाल कर भी रहे हैं या नहीं ?? असली मदद तो ज़रूरत के वक्त लोगों की रक्षा करना , उन्हें मुश्किलों से निकालना हैं ।
एक दिन टीवी पर न्यूज़ आयी कि मुंबई में चार दिन तेज बरसात होने वाली हैं । सब जगह हाई अलर्ट की घोषणा हो रही थी । रीना अपने बॉस से घर जल्दी जाने के लिए कहने लगी ,सर …जल्दी चलते हैं वरना मुसीबत हो जाएगी ! जैसे-तैसे वो घर के लिए निकली ,तो तेज हवा के थपेड़े पड़ने लगे । ना जाने कितने लोगों को घर जाने की जल्दी थी । इससे पहले तूफ़ान अपने पूरे ज़ोरों पे हों , सब अपनो के पास पहुँचना चाहतें थे । लेकिन कुदरत के आगे सब बेबस हैं “कौन कहाँ ,कब कैसे ,बिछड़ जाए कोई नहीं जानता “??
रीना अपनी माँ से फ़ोन पे बात कर रही थी ,तभी सिग्नल ठप हो गया । तेज तूफान के चलते कार में डर से सहमी रीना भगवान को याद करने लगी । बहुत जद्दो जहद के बाद कार का दरवाज़ा खुला और वो भाग के सामने की दुकान में घूँस गयी । अंदर जा जब बाहर का नजारा देखा तो दिल दहल गया …..तेज हवा के साथ बारिश भी शुरू हो गयी । इतनी तेज बरसात हो रही थी,कि सड़क पर जो भी था सब डूबने लगा । थोड़ी देर बाद मैंने दुकान का शीशा साफ कर ,जब बाहर देखा तो बहुत सारे लोग फ़ंसे हुए थे ।चारों तरफ तबाही का मंजर था ।अचानक मेरी नजर एक कार पर पड़ी ,हाथ हिलाता हुआ बच्चा मानो वो मुझे इशारा कर अपनी मदद के लिए पुकार रहा हों ।
फिर एकाएक मैं उठ खड़ी हुई और बाहर की ओर बढ़ी । तभी पीछे से एक आवाज़ आयी बेटी कहां जा रही हो ?? पीछे मुड़ के देखा तो एक बूढ़ी औरत थर-थर काँप रही थी । मैंने अपने बैग से स्टोल निकाल उनके ऊपर डाल दिया ।
शुक्रिया बेटी तुम जीती रहो !
ये सुन ! मुझे हिम्मत मिली और मैं बाहर चल पड़ी, मुझे दूसरों की सहायता करता देख, कुछ लोग मदद करने के लिए आगे बढ़े । स्पीकर पर तेज – तेज आवाज़ आ रही थी कि तूफ़ान और तेज होने वाला है । जो जहाँ हैं वहीं रहें ….जैसे-तैसे मैं उस कार तक पहुँची और बच्चे को निकालने लगी । मुझे देख कार में बैठें सबके चेहरो पे एक मुस्कुराहट आयी और दिल में जीने की चाह जागी । कार का शीशा तोड़ हमने कार में से सब को निकाल लिया और भाग के अंदर चले गए ।
जब हम दुकान में पहुँचें तो मैंने देखा वो बूढ़ी औरत जिसे मैंने अपना स्टोल दिया था ,वो दुकान के बाहर खड़ी हैं । ये देख मैं उनकी तरफ़ भागी…..उन्हें अंदर आने को कहा पर वो घबराई सी इधर- उधर देख रही थी । मैंने कहा आंटी अंदर चलों !“नही बेटा ,” मुझे मेरे पति के पास जाना है ,वो मुझे यहाँ छोड़ कर बाहर गए हैं “। बाहर कोई नही है आंटी…..आप यहीं रुकिए ! अचानक से एक तेज हवा का झोंका आया…. इससे पहले मैं कुछ कर पाती वो मेरी आंखो से ओझल हो गई ।जब सब शांत हुआ तो बचाव दल के लोग आए और हमें सुरक्षा के साथ घर पहुँचाया ।
अपनो से मिल सबने राहत की साँस ली ।अगला दिन तो हुआ , पर रात की वो दर्दनाक बातें याद कर आँखो से आंसू बह गए ।मुझे रोता हुआ देख मेरी माँ पास आयी और मुझे गले से लगा लिया । तभी टीवी पर न्यूज़ में मरने वालों का बताने लगे ।बूढ़ी आंटी की फ़ोटो देख खीज सी हुई और पता चला कि उनके पति तो बहुत समय पहले ही मर चुके थे । उनके मरने के बाद से ही वो बदहवास सी रहने लगी । आज सब ठीक है मैं ऑफ़िस जा रही हूँ , पर उस चौराहे पे पहुँच कर वो भयानक रात सामने आ जाती है । माना मैंने बहुत लोगों को बचाया पर पछतावा इस बात का हैं कि मैं उन आंटी को नही बचा पाई । काश मैं उनके हाथ को कस के पकड़ती तो ऐसा नहीं होता, आज वो हमारे बीच होती ….लेकिन कहते है ना कि “क़िस्मत के आगे किसी की नही चलती “।
चाहें आज सब लोगों को मुझ पर मान हैं ,ऑफ़िस में सब मेरी वाह – वाही करते हैं ।आज” मैं सबकी नज़रों में सुपर स्टार हूँ “,पर किसी को ना बचाने का मलाल एक टीस की तरह उठता हैं । कभी कोई ऐसा मंजर ना देखें बेबसी के आगे खुद को झुकता ना देखे ॥
#पछतावा
स्वरचित
स्नेह ज्योति