मजबूर – श्वेता मंजु शर्मा

यह कहानी है मिन्हाज़ और फरहा की। फरहा जहाँ बी कॉम दूसरे वर्ष की छात्रा थी वहीं मिन्हाज़ कंप्यूटर क्लास मे tally सिखाया करता था। एक कॉमन दोस्त के घर दोनों मिले और प्यार हो गया. फरहा ने इश्क का इज़हार कर दिया जिसे मिन्हाज़ ने मंजूर किया । बहुत सारी बातों के अलावा एक बात दोनों मे common थी. वह थी कि मिन्हाज़ के माता पिता बचपन में ही गुज़र गए थे और फरहा के दोनों की मुलाक़ात के कुछ समय पहले. मिन्हाज़ अपने भाई बहनों के साथ रहता था. फरहा अपने सौतेले भाई बहन के साथ रहती थी. बाकी सारे भाईबहन उसकी सौतेली माँ की संतान थी। 

अपने माता पिता की फरहा इकलौती संतान थी। 90 के दशक में घटने वाली यह घटना बिलकुल सच्ची है।दोनों की मोहब्बत रंग चढ़ने लगी थी। मिनहाज फरहा से कहता था कि अभी तू किसी से कुछ ना कहना। पर न जाने क्यों फराह को अपनी सौतेली भाभी पर बड़ा यकीन था। एक दिन मिन्हाज़ के मना करने के बाद  भी फरहा ने अपनी भाभी को मिन्हाज़ के बारे में सबकुछ बता दिया। और जैसे कि उस दौर में हुआ करता था, उन दोनों के मिलने जुलने पर पाबंदी लग गई। फराह के भाई फराह के लिए रिश्ता ढूँढन लगे।

 फराह की माँ सरकारी शिक्षिका थी। पिता की मौत के बाद उनकी जगह बड़े भाई को नौकरी मिल गई। कुछ पैसा था जो दोनों पति पत्नी ने फराह के नाम रखा हुआ था। फरहा के सौतेले भाई बहनों की नजर उस पैसे पर थीं। उन लोगों ने धोखे से उससे उस पैसे पर साइन करा लिए। और फराह को उसकी बहन के घर भेज दिया। इधर, मिन्हाज़ तड़प रहा था अपनी फरहा से मिलने के लिए। उधर फराह का भी यही हाल था। वो रात दिन मिन्हास को याद करती थी। दुआ में उसका नाम पढ़ती थी।

 जैसे तैसे करके मिन्हाज उसकी बहन के घर उससे मिलने पहुंचा। मिन्हास कमाता ही क्या था? मामूली से ₹400 उसकी तनख्वाह हुआ करती थी उस समय। यहाँ वहाँ से उधार ले करके वह उसकी बहन के घर पहुंचा। वो जानता था कि शायद फराह उसे कभी नहीं मिलेगी। फिर भी वो हिम्मत नहीं हारना चाहता था। पर जब इतने पहरे में फरहा हो तो वो कहाँ तक बगावत करें? और उसके पास कोई ठिकाना भी तो नहीं था जहाँ वो फराह को ले जा करके रखता। माता पिता रहे नहीं। भाई बहन खुद ही संघर्ष में लगे हुए थे। 

    1 दिन फरहा सब कुछ छोड़छाड़ कर भाग आई । उसके घरवाले उसे ढूँढते हुए स्टेशन पहुँच गए। मिनहाज को उन्होंने बुलाया और फरहा को समझाने को कहा। मिनहाज को समझ ही नहीं आ रहा था वो क्या कहे पर फिर भी उसने     फरहा को  कहा कि वो घर जाएं, स्टेशन पर अकेले न रहें क्योंकि वो जानता था उसकी कितनी बड़ी मजबूरी है, उसके पास कोई जगह ही नहीं है। 



जहाँ पे वो ले जा करके अपनी फराह को रख सकता या उसके वालिदैन जिंदा होते तो शायद वो इतना बेबस ना होता। मात्र ₹400 महीना कमाने वाला वो नौजवान कहाँ क्या इंतजाम करता? जितना बेबस मिन्हास ने उस दिन अपने आप को महसूस किया था, उतना उसने अपनी जिंदगी में कभी नहीं किया। पूरी जिंदगी वो संघर्ष करता रहा पर उसने कभी उफ्फ नहीं की। फरहा को उसके घर वाले ले गए और न जाने कहाँ भेज दिया। मिन्हाज ने बहुत कोशिश की उसे ढूंढने की पर वो नहीं ढूंढ पाया। शायद उसका निकाह कर दिया गया था। उसकी पढ़ाई बीच में ही रह गई।

उस दिन मिन्हास निश्चय किया था कि अब वो सिर्फ पैसा कमाएगा क्योंकि वो जानता था कि अगर उसके पास पैसा होता तो फरहा  आज उसकी होती।वक्त गुजर गया। आज वो 44 साल का युवक है।पर आज भी वो फराह को बहुत याद करता है। उसकी शादी हो गयी है। दो बच्चे भी हैं। पर फराह जब याद आती है तो बहुत याद आती है। वह तड़पकर रह जाता है। वो चाहता है फराह को ढूंढना।

 ताकि उसे उससे एक बार माफी मांग सके। उसको लगता है की  सब ने फराह को धोखा दिया और उसने भी तो फराह को धोखा दिया। फराह अपना सबकुछ छोड़ करके उसके पास आई थी। पर वो इतना मजबूर था की वो कहीं ले जा ही ना सका फराह को अपने साथ। उसने बहुत कोशिश की फराह को ढूंढने की। पर उसे फराह मिली नहीं।

  मिन्हाज़ की पत्नी जोया मिन्हाज़ को कभी समझ ही नहीं पायी। उसकी जिंदगी की तन्हाई को कभी ज़ोया ने दूर करने की कोशिश ही नहीं की।  मिनहाज अकेला ही तड़पता रहता है। अभी कुछ साल पहले उसे नितिका मिली। नितिका उसे अच्छी लगी। 

दोनों दोस्त बन गए। बातों बातों में  1 दिन मिन्हाज़ ने नीतिका को फराह के बारे में बताया। नीतिका ने मिन्हाज़  से वादा किया वह कोशिश करेगी  फराह को ढूंढने की और उसे वापस लाकर देगी ताकि वो उससे माफी मांग सके। मिन्हाज़ ने नीतिका से कहा कि तुम्हारा एहसान होगा मेरे ऊपर जिंदगी भर के लिए अगर तुम मुझे सिर्फ एक बार फराह से मिलवा दो और उससे माफी मांगने का मौका दो।

इस कहानी में धोखा किसी न किसी को नहीं दिया था, पर हर शख्स यही महसूस कर रहा था कि उसके साथ धोखा हुआ है, चाहे वो मिन्हाज हो या फराह हो। 

स्वरचित एवं मौलिक

श्वेता मंजु शर्मा

देहरादून

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