मैंने जो गलती की तुम उसे नहीं दोहराना – के कामेश्वरी  : Moral stories in hindi

सुधा डिग्री कॉलेज में इंग्लिश लेक्चरर थी । कॉलेज ख़त्म होने के बाद वह इंग्लिश स्पीकिंग कोचिंग सेंटर में सिखाने जाती थी।

सुबह की निकली रात को आठ बजे तक पहुँचती थी । अकेली रहती थी क्योंकि पिछले दो साल में माता-पिता दोनों का स्वर्ग वास हो गया था । वह उनकी अकेली संतान थी । उसकी अपनी भी एक ही बेटी सुनिधि थी जिसकी शादी शहर में ही मल्टी नेशनल कंपनी में नौकरी करने वाले प्रवीण से हुई थी । पूरा दिन काम करने के बाद वह थक कर चूर हो जाती थी ।

उस दिन भी वह अपने काम ख़त्म करके घर आई पानी पीकर फ्रिज से सुबह की बनी सब्ज़ी और दाल गरम करने के लिए रखी और बैठक में बैठकर टी वी ऑन किया कि नहीं उसका फोन बज गया । इस वक़्त कौन 

हो सकता है सोचते हुए फोन उठाया उधर से तेजस्वी के रोने की आवाज़ सुनकर घबरा गई क्योंकि वह रोते हुए कह रही थी कि माँ मैं तेरे पास आ रही हूँ मुझे यहाँ नहीं रहना है । मैं इन लोगों से तंग आ गई हूँ । अब इस शादी का बोझ मैं ढो न पाऊँगी । चुप हो जा बेटा पागल हो गई है क्या?

माँ मैं पागल नहीं हुई यहाँ के घरवाले पागल हैं । 

क्या बात कर रही है निधि बेटा तुम दोनों के बीच झगड़ा हुआ है क्या? वैसे भी पति पत्नी के बीच छोटे मोटे झगड़ें तो होते रहते हैं उन पर ध्यान नहीं देना चाहिए । स्टाप मम्मी आप भी दूसरों के समान मुझे ही समझा रही हो । मैं किसी की भी बात को सुनने की मूड में नहीं हूँ ।

 

प्रवीण को इसके बारे में पता है क्या मैं उससे बात करूँगी । इतनी रात गए कैसे आएगी । 

वह अभी ऑफिस से नहीं आया है माँ इसलिए उसके आने के पहले ही मैं घर से निकल जाना चाहती हूँ ।

यह क्या कह रही है बेटा प्रवीण से बात कर ले रिश्ते ऐसे ही टूट नहीं जाते हैं । 

सुनिधि ने जवाब नहीं दिया और फोन रख दिया था। मैं फोन रखकर सोचने लगी थी कि इकलौती संतान है मेरी कितनी ही नाजों से पाला है । हम दोनों ही थे मेरे लिए वह उसके लिए मैं । रसोई में मेरी सब्ज़ी और दाल दोनों ही जल गई थी साथ ही फोन पर सुनिधि की बात सुनकर मेरी भूख भी मिट गई । 

आज सुनिधि जहाँ खड़ी है उसी जगह पर बाईस साल पहले मैं खड़ी थी । मेरी माँ ने मेरे पति दर्शन को नहीं समझा था । मेरा मन पंख लगाकर बाईस साल पहले की तरफ़ दौड़ने लगा । मैं भी माता-पिता की इकलौती बेटी थी नाजों में पली बढ़ी हुई थी । ससुराल की हर बात माँ को बताती थी । दर्शन को मेरी यह आदत पसंद नहीं थी । आज भी मुझे याद है वह दिन जब माँ बाप के घर नाजों में पली मैंने भी पापा को फ़ोन करके रोते हुए कहा था कि मैं घर आ रही हूँ यहाँ नहीं रह सकती हूँ ।

पापा ने कहा आजा बेटा यह भी कोई पूछने की बात है यह घर तेरा है । उन्होंने मुझसे पूछा भी नहीं था कि बात क्या है?

मैं भी तो पीछे बिना देखे पति के रुकने के लिए कहने पर भी सीधे मायके आ गई थी।

घर में कदम रखते ही मैंने माता-पिता को अपनी उन छोटी छोटी बातों को ऐसा बड़ा करके बताया था कि उन लोगों ने कह दिया था कि अब तुम ससुराल नहीं जाओगी ।

सास ससुर ने बात करने की कोशिश की पर इनका स्वाभिमान ऐसा बढ़ गया था कि कोई भी पीछे हटकर जिद को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था ।

पापा कहते थे कि तुम्हारा पूरा परिवार हमारे घर आकर माफ़ी माँग लेंगे तो हम भेज देंगे। 

वहाँ उनका कहना था कि हम क्यों माफी माँगे हमने तो उसे घर से जाने के लिए नहीं कहा था । इस बीच मुझे पता चला था कि मैं माँ बनने वाली हूँ । उस समय भी दोनों परिवार के लोगों ने अपने अहंकार को नहीं छोड़ा । 

समय बीतता गया और जब मैंने सोचा था कि आख़िर बात क्या थी तब मुझे अपने आप पर ग़ुस्सा आ रहा था कि इतनी छोटी सी बात का मैंने बतंगड बनाकर अपनी ज़िंदगी ही ख़राब कर ली है । बड़ों ने भी नहीं सोचा था कि समझा बुझाकर इनकी गृहस्थी बसा दें सबने रिश्ते को रबर के समान खींच दिया था । एक बार मैंने कहा भी था कि पापा मैं चली जाती हूँ परंतु मेरी बात उन्होंने नहीं सुनी और कहने लगे थे कि पढ़ी लिखी है तुझे उनके सामने झुकने की कोई ज़रूरत नहीं है । हमारे घर वालों से खबर मिली थी कि दर्शन घर छोड़कर चला गया है । उसके कुछ दिनों बाद मैंने सुनिधि को जन्म दिया जब वह थोड़ी सी बड़ी हुई तो यूनिवर्सिटी में नौकरी करने लगी । मैं रातों को दर्शन को याद करके बहुत रोती थी । 

मैंने सोच लिया था कि मैं अब सुनिधि की तरफ़ से नहीं प्रवीण की तरफ़ से सोचूँगी । ससुराल अच्छा है सास ससुर अच्छे हैं शुरू में अपने ससुराल वालों की बहुत तारीफ़ करती थी । आजकल ऑफिस में काम की अधिकता के कारण या टेंशन के कारण दोनों में कुछ अनबन हो गई होगी । हाँ मुझे याद आया है कि सास ससुर तीर्थ यात्रा के लिए गए हैं । इसलिए ऑफिस और घर के काम करने में चिड़चिड़ापन आ गया होगा और दोनों में झड़प हो गई होगी । इतनी छोटी सी बात के लिए घर छोड़ने की बात नहीं करनी चाहिए । मैं माँ के समान उनके बीच में नहीं पड़ूँगी । उनकी शादीशुदा जीवन को उनके समान जीने दूँगी । प्रवीण भी बहुत अच्छा लड़का है समझदार है मेरे ख़्याल से वह सुनिधि को समझा देगा । मैंने समय देखा दस बज रहे थे सुनिधि घर से नहीं निकली होगी फिर भी प्रवीण को फ़ोन करके पूछ लेती हूँ ऐसा सोच प्रवीण को फोन लगाया । प्रवीण ने फोन उठाकर कहा आँटी आप तो अब तक सो जाती हैं ना आज अभी तक नहीं सोईं तबियत तो ठीक है ना । 

मैंने कहा कि मैं ठीक हूँ बेटा निधि क्या कर रही है । उसने कहा कि वह सो रही है आज शायद ज़्यादा ही थक गई है ।

मैंने गहरी साँस ली । मैं समझ गई थी कि मेरी बेटी मेरे समान नहीं है यह सोच एक सुखद अनुभव की प्राप्ति हुई । प्रवीण को गुडनाइट कहकर फ्रिज से दूध निकाला और पीकर सोने के लिए चली गई । 

बेटियाँ जन्म दिवस प्रतियोगिता ( कहानी -१)

के कामेश्वरी 

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