Moral Stories in Hindi : देर रात फोन की घंटी बजती है, रमेश बाबू घबराये से उठकर देखते हैं, आखिर रात के सन्नाटे में घंटी की आवाज डरा देती है, किसी अनहोनी की आशंका से उनकी नींद झट से खुली, जल्दबाजी में चश्मा लगाकर देखा तो फोन उनके दुकान के पास ही पहरा देने वाले बबलू का था।
“अरे!! बबलू तू? इतनी रात को कैसे फोन किया? मै आज तो दुकान की चाबी ले आया हूं, उस दिन की तरह भूला नहीं हूं।”
“रमेश भाई साहब बात चाबी की नहीं है, दरअसल दुकान में शायद शॉर्ट सर्किट की वजह से आग लग गई है, मैंने आग बुझाने वालों को फोन कर दिया है और फिर आपको फोन लगाया है, आप जल्दी से यहां आ जाइये।’
दुकान में आग …… ये सुनते ही रमेश बाबू का चेहरा तनाव से भर गया, और वो स्कूटी निकालकर जाने वाले थे, तभी उनकी पत्नी दौड़कर जैकेट और हेलमेट लाई, इतनी सर्दी में बिना पहने ओढ़े ही जा रहे हैं? आपको कुछ हो गया तो?
“हां, मैंने सुना, हमारी दुकान में आग लग गई है, पर आप धीरज रखिए, सब ठीक हो जायेगा , उसकी आधी-अधूरी बात सुन रमेश बाबू जल्दी से चले गये।”
थोड़ी देर बाद उनकी पत्नी लक्ष्मी अपनी दोनों बेटियों समेत वहां पहुंच गई, सब जलकर खाक हो गया था, और इसी से तो उनका घर चलता था, पन्द्रह दिनों बाद बड़ी बेटी की शादी है, सब कपड़ों के साथ उसकी शादी के लेन-देन और बाकी कपड़े भी जलकर खाक हो गये, लक्ष्मी और दोनों बेटियों ने उन्हें संभाला और समझा-बुझाकर घर लेकर आयें, इतना बड़ा नुक्सान सहन करना मुश्किल था।
“अब सब काम कैसे होंगे, नीरू की शादी नजदीक आ रही है,और घर खर्च भी चलाना है, एक रात में हम सड़क पर आ गये।” रमेश बाबू बड़े ही चिंतित स्वर में बोले तो लक्ष्मी की भी आंखें भर आई।
“किसी से उधार ले भी लूं तो कैसे चुकाऊंगा? मै नीरू के ससुराल वालों को क्या जवाब दूंगा?”
थोड़ी देर बाद फोन की घंटी बजती है, रमेश बाबू की छोटी बहन अनिता है, उसी का वीडियो कॉल था, दुकान के जलने की बात सुनकर उसे भी काफी दुख हो रहा था, रमेश बाबू ने उससे ज्यादा बात नहीं की और फोन रख दिया।
अगली सुबह वो उनके घर आ गई।
“भाई साहब आप चिंता मत कीजिए, हम दोनों मिलकर नीरू की शादी करेंगे, जो भी काम या खरीदारी बची है, आप मुझ पर छोड़ दीजिए।”अनिता जी बोली।
“लेकिन मै तुमसे मदद नहीं ले सकता हूं, भाई का हाथ तो देने के लिए होता है, लेने के लिए नहीं।” रमेश बाबू निराशाजनक स्वर में बोले।
“भाईसाहब, आपने मुझे माता-पिता दोनों का प्यार दिया है, बचपन मेरा आपके साये में गुजारा है, मेरी पढ़ाई-लिखाई,शादी ब्याह सब आपने किये है, आप कभी अपने फर्ज से पीछे नहीं हटे तो आज मेरी फर्ज निभाने की बारी है।” अनिता जी बोलती है।
“आपने मेरी इतने अच्छे घर में शादी की है, आपकी प्रेरणा से मै अपने पैरों पर भी खड़ी हूं तो भाई के लिए इतना तो कर ही सकती हूं, अनिता जी ने सारी बातें अपने पति को बताई, उन्होंने भी हामी भर दी।
दोनों ने मिलकर सब तैयारी कर दी, और नीरू का ब्याह तय समय पर अच्छे से हो गया, नीरू अपनी बुआ के गले लगकर बहुत रोई, “बुआ मम्मी-पापा का ध्यान रखना और वो चली गई।”
रमेश बाबू की आंखों में आंसू थे, वो अनिता जी से बोले,” तूने हम पर बहुत बड़ा अहसान किया है, आज तू हिम्मत और सहारा नहीं देती तो हम तो टूट ही जाते।”
“भाईसाहब, अपनों का अहसान कैसा? ये तो मेरा फर्ज था, क्या सारे फर्ज भाई के ही होते हैं, बहन के कुछ नहीं होते हैं।” आपने अपने सभी फर्ज निभाए है तो ये बहन कैसे पीछे रहती?
रमेश बाबू की दुकान की फिर से मरम्मत करवाई गई, और फिर से अनिता जी की मदद से नया माल मंगवाया गया, धीरे-धीरे उनकी जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आने लगी, तब तक उनकी बहन ने उनका पूरा साथ दिया और कुछ महीनों बाद सब ठीक हो गया।
रमेश बाबू को फिर से अच्छी आय होने लगी, वो कुछ रूपये लेकर अपनी बहन के घर गये,” ये थोड़े से रूपये तो रख, बाकी का मै धीरे-धीरे चुका दूंगा, पर अनिता जी बोली,” भाई साहब नीरू मेरी भी बेटी है, मैंने अपनी बेटी के लिए अपना फर्ज निभाया है और उसकी कीमत मै नहीं लूंगी, मैंने अपना फर्ज निभाया है, कोई अहसान नहीं किया है, अहसान की कीमत होती है, फर्ज की नहीं, और फर्ज तो अपने ही निभाते हैं।”
अपनी बहन की बातें सुनकर रमेश बाबू निरूत्तर हो गये और उसे आशीर्वाद देकर चले आयें।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित