“मैं तो भूल चली बाबुल का देस”- कुमुद मोहन : Moral stories in hindi

moral stories in hindi : मम्मा !जब देखो दादी भैया का पक्ष लेकर मुझे नीचा दिखाती हैं,भले ही गल्ती भाई की हो वे मुझे ही कसूरवार ठहरा देती हैं,आप और पापा भी चुपचाप देखते हैं ,कुछ नहीं कहते ,अब मैने सोच लिया है मैं ही दादी को पलटकर जवाब देने लगूंगी तभी उन्हें समझ आऐगा”

रिया ने मुँह बनाकर अपनी मां सुधा से कहा!

“नहीं बेटा ये बात नहीं हम सब आप दोनों को बराबर मानते हैं ,हमारी नज़र में तो हमारे दोनों बच्चे बराबर हैं,हम आप और रोहन को एक ही नज़र से देखते हैं” सुधा रिया को समझाने का असफ़ल प्रयास करने लगी!

“झूठ बिल्कुल झूठ !आप लोग एक ही नज़र से हम दोनों को देखते तो दादी के कहने से मुझे भैया से कम अच्छे स्कूल में क्यों डालते इसलिए ना क्योंकि कि मेरे स्कूल में फीस कम है,मैं कोई बच्ची नहीं हूं जो ये सब ना समझ सकूं”रिया ने तमक कर जवाब दिया!

“चुप कर लड़की! “दादी गुर्राई ,”ये ही लच्छन रहे तो ससुराल में जाकर थू थू करवाऐगी!हुंह !भैया की बराबरी करेगी!छोरी है छोरी की तरह रहा कर लड़का बनने की कोसिस ना कर”

रिया अंदर ही अंदर घुट कर रह गई! अभी थोड़े दिन पहले ही नये घर की नेम प्लेट बनकर आई! पापा के साथ रोहन का नाम भी लिखा देख कर बोल उठी”मेरा नाम क्यूं नहीं क्या मैं आपकी बेटी नहीं?”

किसी के कुछ कहने से पहले ही दादी बोल उठी”अरी!वो वारिस है इस घर का ,तेरा क्या तू तो पराया धन है,कल को दूसरे के घर चली जावेगी,हमारा वंश तो उसी से चलेगा ना!लड़कियों का नाम ना लिखवाया जाता हमारे यहाँ! “

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इसी तरह दादी खाने पीने की चीजों में भी भेद-भाव करती !कुछ अच्छा बनता तो पहले ही रोहन के लिए अलग निकाल कर रख लेती रिया को कितना भी पसंद हो उसे नाप तोलकर पकड़ा देती!सुधा भी अम्मा जी के डर के मारे जबान न खोलती!

दादी के इस पक्ष पात भर रवैये से रिया का दिल  बहुत कचोटता!

दादी ने पति के मरने के बाद रिया के पिता महेश को बड़ी मुश्किल से पाला था!इसलिए महेश उनके खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं रखते थे,ना ही सुधा उनकी किसी बात को टाल सकती थी!दादी पुराने ज़माने की दकियानूसी महिला थी,उनके हिसाब से घर में लड़कों की अहमियत लड़की से ज़्यादा होती है!

उसी माहौल में रिया बड़ी हुई! बी.ए.करने के बाद रिया एम.बी.ए करना चाहती थी ,फिर दादी ने रोड़ा अटकाया “रोहन के लिए इंजीनियरिंग की पढ़ाई में खर्च होगा,उसे कोचिंग में भेजना होगा,रिया को कौन पढ़ा लिखाकर कलक्टर बनाना है?अरे ठीक-ठाक घर-वर देखकर ब्याह दो और गंगा नहाओ!ज़्यादा पढ़ाकर कौन हमें नौकरी करानी है,जल्द-से-जल्द अपने घर की हो और जा के गृहस्थी संभाले”!

और भगवान ने जैसे दादी की सुन ली!रिया के लिए उसकी बुआ एक बहुत अच्छा रिश्ता लाई!लड़का विनय मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर था,पिता सुरेश जी बड़े सरकारी अफसर,एक छोटी बहन सना जिसकी शादी तय हो गई थी!मां नीरा जी पढ़ी लिखी हाऊस वाइफ और दादी सीमा जी!

 खुले विचारों वाला छोटा सा संभ्रांत परिवार! 

आलीशान घर ,गाड़ी,नौकर-चाकर! कोई कमी नहीं! सुरेश जी ने रिया की सुंदरता और सौम्यता का सुनकर उसे अपनी बहू बनाने का निश्चय किया था!

जल्दी ही रिया बहू बनकर ससुराल पहुंच गई! 

अपने घर के दकियानूसी माहौल देखकर रिया बहुत डरी हुई थी !कहीं ससुराल में भी वही भेद-भाव होगा तो कुऐं से निकलकर खाई में गिरने वाली कहावत सच न हो जाऐ!

कहीं विनय की दादी भी दादी जैसी हुई जो उठते बैठते नसीहतों के पुलिन्दे खोलेंगी तो क्या होगा!

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ससुराल की पहली सुबह रिया को उठने में थोड़ी देर हो गई! वह सकुचाई सी कमरे से बाहर निकली तो बरामदे में बैठी दादी पर नज़र पड़ते ही रिया का दिल धक् से रह गया!उसके कान दादी के व्यंग बाण झेलने को तैयार हो रहे थे कि दादी ने बहुत प्यार और दुलार से उसे अपने पास बुलाया!पैर छूकर डरी सहमी सी रिया बोली”साॅरी दादी आज उठने में देर हो गई कल से आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगी”!

“अरे बेटा! देर कैसी?अभी तो दिन हैं देर तक सोने के ,फिर घर गृहस्थी के झंझटों में पड़ जाओगी तो कहां अपने मन से सोना मिलेगा? सना भी तो दस बजे से पहले कहां उठती है!आओ हमारे साथ बैठकर चाय पियो” दादी ने रिया का हाथ पकड़कर उसे अपने पास बैठा लिया!

यही हाल सुरेश और नीरा जी का भी था उन्होंने रिया को खुले दिल से अपनाया,अपनी बेटी से भी बढ़कर लाड-प्यार बरसाया!रिया के आश्चर्य और खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उसने घर के सामने लगी नेमप्लेट पर विनय के साथ अपना भी नाम देखा!

और तो और सुरेश जी,नीरा जी ने तो यहाँ तक कहा कि रिया अगर चाहे तो एम.बी.ए कर सकती है!

दादी और सना की कैमिस्ट्री इतनी अच्छी थी कि रिया को लगता काश उसकी दादी भी उसे ऐसे ही प्यार करती !

रिया सोचती एक उसकी दादी थी जो सोते जागते कभी कपड़ों तो कभी देर तक सोने,कभी मोबाइल में लगे रहने या किचन में मां का हाथ न बंटाने पर ताने देती ना थकती थी!भाई के तो सौ खून माफ थे बस एक रिया ही थी जो उनके निशाने पर धरी रहती!

दादी के इसी पक्षपातपूर्ण रवैये से रिया दादी के पास बैठने से भी कतराती!

रिया को लग रहा था जैसे वह इस घर की बहू नहीं बेटी है!

यहाँ ससुराल में उस पर कोई पाबंदी नहीं , कोई रोकटोक नहीं रिया का मन करता वह भी सब घर वालों का आगे से आगे बढ़कर ख्याल रखेगी,उनको मान सम्मान देगी,किसी को शिकायत का मौका ना देगी!भगवान ऐसी ससुराल हर लडकी को दे जहाँ बेटी बहू में कोई पक्षपात न किया जाता हो,दोनों को एक ही आँख से देखा जाता हो!

दूर कहीं माइक पर गाना बज रहा था”मैं तो भूल चली बाबुल का देस

पिया का घर प्यारा लगे”

रिया सोचने लगी शायद किसी ने उसके लिए ही लिखा है!

 

एक आंख से देखना(पक्ष पात न करना

कुमुद मोहन

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