मैं नहीं भाग्यहीन – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय : Moral Stories in Hindi

अभी कुछ दिन पहले ही रमाकांत जी अपनी बिटिया आन्या का ब्याह बहुत ही धूमधाम से कराया था।

पेशे से एक बैंक के क्लर्क रमाकांत जी ने अपनी हैसियत से बढ़कर दान दहेज दिया और बहुत ही धूमधाम से अपनी बेटी की शादी करवाई।

और फिर आन्या जैसी लड़की तो किस्मत वालों को मिलती है।पढ़ी-लिखी खूबसूरत  लड़की।

जैसे ही आन्या ने ग्रेजुएशन पूरा किया रमाकांत जी ने एक अच्छा लड़का देखकर उसकी शादी कर दिया।

अब वह निश्चिंत थे आन्या अपनी जिंदगी में खुश थी ।

अभी शादी के छह महीने भी नहीं बीते थे कि अचानक ही एक भूचाल आ गया।

रवि ने आन्या को छोड़ने का फैसला कर लिया।

“ऐसा क्या हो गया ऐसा कि रवि तुमसे तलाक लेना चाह रहा है?”

“मुझे कुछ नहीं पता पापा!”आन्या रोंआसी हो गई।

रमाकांत जी और उनकी पत्नी आशा दोनों ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन मगर रवि अड़ गया कि उसे आन्या से अलग होना ही है।

“ऐसी क्या बात हो गई?” रमाकांत जी रो पड़े 

इस कहानी को भी पढ़ें: 

भाग्यहीन – डाॅक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

क्या शादी ब्याह कोई खेल है जो  जब चाहे छोड़ दें।

रवि के माता-पिता चुप्पी साधे हुए थे। उनलोगों ने भी रवि को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन रवि था की अड़ा हुआ था।

यह बात उसके परिवार वालों ने सबसे छुपा कर रखा था कि रवि पहले से ही किसी लड़की के साथ रह रहा था।

जब उसके पिता ने अपनी जमीन जायदाद से बेदखल करने की बात की तो बड़ी मजबूरी में उसने आन्या से शादी करने के लिए तैयार हो गया । मगर अब वह अपने रंग दिखाने लगा था।

अब शादी के 6 महीने भी नहीं हुए थे कि वह आन्या को छोड़ने के लिए तैयार हो गया।

बहुत  समझाने बुझाने के बाद रमाकांत जी ने यह देखा कि रवि पहले से ही किसी लड़की के साथ इंवॉल्व है तो उन्होंने रिश्ते को सुलझाने के बजाय तोड़ देना ही सही समझा।

मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के आगे बैठे हुए रमाकांत जी रो पड़े ।

 जज साहिबा ने एक बार फिर से विचार करने के लिए कहा तो रमाकांत जी ने कहा “जज साहिबा जो रिश्ते मजबूत नहीं होते वह अपने आप टूट जाते हैं। इस रिश्ते में कोई मजबूती नहीं थी। पहले से गांठ लगी हुई थी।अब यह गांठ उधड़ गई है, अपने आप टूट गई है।इसे जोड़ने का कोई मतलब नहीं बनता।”

आन्या और रवि का तलाक हो गया।

आसपास के लोग खुसूर फुसूर करने लगे थे।

“ बड़ी ही भाग्यहीन बेटी है रमाकांत जी की! इतना अच्छा घर बार मिला था फिर भी वह घर लौट आई!”

रमाकांत जी अपनी बेटी के आगे ढाल बनकर खड़े हुए थे।

उन्होंने कहा “भाग्य हीन मेरी बिटिया नहीं भाग्य हीन तो वह है जिसने इसे ठुकरा दिया।

हीरे को ठुकराकर उसने कांच को अपना लिया है,जो उसे ही काट सकता है।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

रिटायरमेंट – कंचन श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

मैंने अपनी बिटिया को कभी नौकरी नहीं करने दिया। मुझे लगता था कि वह घर बार संभाले और खुश रहे मगर यह मेरी गलती थी।

अब यह गलती में सुधारूंगा।”

उन्होंने आन्य को नौकरी के लिए करने की छूट दे दी ।

आन्या ने अपनी बची हुई पढ़ाई पूरी करने लगी।

पढ़ने में वह पहले से ही तेज थी।

देखते-देखते उसने प्रतियोगिता परीक्षा निकाल लिया और जिला अधिकारी बन गई।

आन्या अब  बहुत खुश थी ।कहने को तो रमाकांत जी बहुत ही खुश थे लेकिन अंदर ही अंदर उन्हें यह सच चुभता रहता था कि लड़के वालों ने उन्हें अंधेरे में रखा और धोखा दिया। उनकी बेटी ने तो ब्याहता ही रही और ना ही कुंवारी।

एक दिन आन्या अपने पिता से बोली 

“पापा एक मेरे कॉलीग है उनका नाम भी रवि है। आपसे मिलना चाहता है। आप उनसे मिल लो वह बहुत ही अच्छे हैं।”

“ बिल्कुल बिटिया मुझे बहुत खुशी होगी ।”

 रवि सिन्हा आन्या का कलीग था। वह किसी दूसरे विभाग में काम करता था।

उससे मिलकर रमाकांत जी को बड़ी ही शांति और संतोष हुआ।

बहुत ही सिंपल और विनम्र लड़का था। जैसी उनकी आन्या थी वैसा ही रवि सिन्हा था।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

भाग्यहीन – सुनीता परसाई   : Moral Stories in Hindi

रवि को आन्या पसंद थी और वह उससे शादी करना चाहता था।

“ काश तुम पहले मिले होते ।अपनी बिटिया को भाग्य हीन मैं ही बनाया था बेटा मगर उसने मुझ भाग्यहीन को धनवान बना दिया।

जुग जुग जियो।”

रवि और आन्या दोनों ने  बहुत ही सिंपल तरीके से कोर्ट में जाकर शादी कर लिया।

अब आन्या और रवि दोनों बहुत ही खुश थे। उन्हें खुश देखकर रमाकांत जी भी खुश हो गए।

**

प्रेषिका -सीमा प्रियदर्शिनी सहाय 

#भाग्यहीन

मौलिक और अप्रकाशित रचना बेटियां के साप्ताहिक विषय के लिए।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!