मैं कहां फंस गई – अभिलाषा आभा

सीमा अपने साथ ससुर और देवर,देवरानी के साथ कोलकाता में रहती थी। सीमा का स्वभाव बहुत ही अच्छा था और वह एक सुघड़ गृहणी थी। घर के सारे काम समय पर करना, सास- ससुर की सेवा करना और देवर-देवरानी के साथ प्यार से रहना, उसे खूब आता था। उनकी की एक ननद थी, पुष्पा। जिसकी शादी हो चुकी थी और वह अपने ससुराल में रहती थी। पुष्पा का ससुराल कोलकाता में ही था।

 कभी-कभी वह अपने मायके आया करती थी। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। सीमा आजकल थोड़ी परेशान रहने लगी थी। उसकी तबीयत ठीक नहीं रहती थी। फिर भी घर के सारे काम उसको ही करने पड़ते थे। देवरानी रागिनी सिर्फ चाय बनाती और सब्जी काट कर रसोई से बाहर निकल जाती। उसके बाद सारे काम सीमा को ही देखने पड़ते। 

खाना बनाने से लेकर झाड़ू पोंछा, तक सीमा ही करती थी।एक दिन सीमा को बहुत बुखार था। उसने रागिनी को बुलाकर कहा “रागिनी आज तुम खाना और कपड़े देख लेना, मुझसे उठा नहीं जा रहा है। मुझे बहुत तेज बुखार है।” रागिनी ने मुंह बनाते हुए कहा “दीदी मुझसे इतना काम नहीं हो सकता, खाना बाहर से आर्डर कर देती हूं और कपड़े धोबी को बुला कर दे देती हूं।


एक दिन झाड़ू पोंछा नहीं होगा, तो कोई बात नहीं। आप ठीक हो जाएं, तो कर लेना।” यह सुनकर सीमा रोने लगी। तभी सीमा की सास वहांँ पर आई।उन्होंने रागिनी से कहा, “सीमा दिन-रात खटती है। तुम्हें मैंने कभी काम करने को नहीं कहा, लेकिन जब आज यह बीमार है, तो घर का सारा काम तुम ही करोगी।” रागिनी ने गुस्से में कहा “ठीक है” और चली गई। किसी तरह खाना बना और कपड़े तो नहीं धूले, धोबी को दे दिए गए। घर भी गंदा रह गया। शाम होते-होते रागिनी का सिर दर्द करने लगा और वह अपने कमरे में आराम करने चली गई।

शाम तक सीमा को कुछ अच्छा लग रहा था तो शाम के सारे काम उसने कर दिए परंतु उसे कमजोरी हो गई थी सारा काम करना और समय पर खाना ना मिलने के कारण। सीमा का पति राजन उसके साथ नहीं रहता था। वह मुंबई में काम करता था सीमा कभी किसी से कोई शिकायत नहीं करती थी, लेकिन अब वह थक चुकी थी इसलिए उसने अपनी सास से कहा, “माँ जी, घर के काम को बांट दीजिए। सुबह का नाश्ता और झाड़ू पोंछा मैं कर दूंगी।

दोपहर का खाना और रात का खाना रागिनी बनाएगी और कपड़े अब धोबी को दिए जाएंगे।” सासु मांँ ने इस बात के लिए हामी भर दी, परंतु जैसे ही रागिनी को इस बात का पता चला, उसे तो लगा कि मैं कहां फंस गई। अब वह अपने पति मनोज को अलग घर लेने के लिए दबाव देने लगी। मनोज ने उसकी बात को अनसुना कर दिया क्योंकि मनोज कभी भी अपने माता-पिता और भाभी को छोड़कर जाना नहीं चाहता था।

उसने रागिनी से कहा कि काम का जो बंटवारा हुआ है वह ठीक है, भाभी करती है, तो तुमको भी करना होगा रागिनी मन मसोस कर रह गई। किसी तरह 1 सप्ताह बीता। 1 सप्ताह के बाद शाम होते रागिनी के सिर में दर्द हो जाता और वह रोती हुई अपने कमरे में जाकर जाकर सो जाती। खाना जब बन जाता तो उठती, खाना खा लेती और फिर जाकर सो जाती। सीमा तो रागिनी का स्वभाव जानती थी। इसलिए उसने कुछ नहीं कहा। रागिनी के हिस्से का काम भी कर दिया करती, परंतु सास को यह चीज अच्छी नहीं लगती थी।

उन्होंने रागिनी को बुलाकर प्रेम से समझाया, “जब काम का बंटवारा हो चुका है,तो जब तुम्हारी बारी होगी तो तुम्हें काम करना पड़ेगा, नहीं तो अब मैं तुम्हारी शिकायत मनोज से कर दूंगी। वह दिन भर बाहर रहता है शाम को थका हारा आता है इसलिए मैं कुछ नहीं कह पाती।” यह सुनकर रागिनी ने गुस्से से सास को देखा और वहांँ से चली गई। आज खाना बनाते बनाते रागिनी गिरकर बेहोश हो गई। सबने उसे उठाया और बिस्तर पर लेटाया। डॉक्टर को बुलाया गया। डॉक्टर ने कहा, “रागिनी का बीपी बहुत लो हो गया है और यह बहुत कमजोर है। इसको आराम की जरूरत है।” अब सास और सीमा दोनों एक दूसरे का मुंह देखने लगीं।


थोड़ी देर बाद जब रागिनी को होश आया तो सीमा ने कहा “ठीक है, मैं ही सारा काम कर लूंँगी। तुम आराम करो।” दो-चार दिन बीतने के बाद एक दिन अंधेरे के समय सीमा छत पर के समय खड़ी थी। रागिनी को लगा कि सीमा किचन में काम कर रही होगी। वह अपनी एक सहेली से हंस हंस कर बात कर रही थी और उसने अपनी सहेली को बताया कि “वह 1 दिन खाना बनाते बनाते बेहोश हो गई थी डॉक्टर ने आकर आराम करने की सलाह दी है। तब से वह खूब आराम कर रही है।” यह सुनकर सीमा को अच्छा लगा परंतु अंतिम लाइन जो सीमा ने सुनी के तो होश ही उड़ गए। रागिनी ने अपनी सहेली को बताया कि फैमिली डॉक्टर के साथ मिलकर यह सारी प्लानिंग की थी।

उसने डॉक्टर को पहले ही फोन कर दिया था, और सिखा दिया था कि जब उनको फोन घर से जाए तो उनको यहांँ रागिनी के विषय में क्या कहना है। यह सुनकर सीमा को बहुत बुरा लगा। अब उसने सोचा कि अब मैं इसके साथ नहीं रहूंगी।उसने अपने पति राजन को फोन किया और सारी बातें बताईँ। राजन को भी यह सब सुनकर बहुत गुस्सा आया और वह छुट्टी लेकर कोलकाता आ गया। यहांँ आकर उसने अपनी मांँ से कहा,”मांँ मेरा और मनोज का बंटवारा कर दो। मेरी पत्नी अब उनलोग के साथ नहीं रहेगी। मेरी पत्नी भी इंसान है और जिस तरह से बाकी लोग इस घर में अधिकार से रहते हैं, उसका ही उतना ही अधिकार है।उसे उसका अधिकार नहीं मिल रहा,

तो मैं उसको अपने साथ ले जाऊंगा। आप बंटवारा कर दें।” राजन ने मनोज और माता-पिता के सामने रागिनी की सारी बातें बताकर उसकी पोल खोल दी। यह सुनकर मनोज बहुत शर्मिंदा हुआ उसने कहा, “भैया आप जो फैसला लेंगे, मैं उसमें आपका साथ दूंँगा।” जब रागिनी ने देखा कि मनोज भी उसके साथ नहीं है, तब वह अपनी सास और सीमा के पैर पकड़कर रोने लगी और बोली कि “जेठानी जी आप मुझे अपने से अलग मत करो। मैं छोटी हूंँ। मुझसे गलती हो गई।मुझे माफ कर दीजिए।” सीमा को रागिनी के आंँसू देखे नहीं गए और उसने रागिनी को उठाकर गले से लगा लिया और कहा “ठीक है जब तुम्हें अपनी गलती का पछतावा है तो हम तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। लेकिन अब तुम्हें भी अपने आप को सुधारना होगा। रागिनी इसके लिए तैयार हो गई और उसने हाथ जोड़कर सब से माफी मांँगी।

मौलिक, स्वरचित रचना

अभिलाषा आभा

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