मैं भी इस घर का हिस्सा हूं,मुझे भी थोड़ा स्नेह पाने का अधिकार मिलना चाहिए……. – सिन्नी पांडे : Moral Stories in Hindi

संध्या दांत दर्द से कराहते हुए अपने कमरे में लेटी थी। दांत दर्द के कारण उसके आधे सर में भी दर्द था।

सुबह ऑफिस जाते वक्त नितिन ने उसे चाय और ब्रेड बनाकर खिला दिया था और दवा दे दी थी।

दांत में दर्द के अलावा संध्या के होंठ में अंदर की तरफ एक छाला भी निकल आया था तो उसे कुछ भी गर्म या कड़वा खाने में तकलीफ थी।

संध्या की सास गीताजी जो कि काम से रिटायरमेंट ले चुकी थीं वो बड़े टेढ़े मेढ़े मुंह बनाते हुए काम कर रही थीं और बहुत हद तक उन्हें संध्या की तकलीफ कामचोरी लग रही थी।

नितिन सुबह जो दो ब्रेड और आधी कप चाय बनाकर दे गया था उसीको खाकर संध्या लेटी हुई थी जब लगभग 4 घंटे बीत गए तो संध्या को भूख लगनी महसूस हुई क्योंकि दवा की वजह से उसे दर्द में भी थोड़ा आराम मिला था। वो उठकर किचन में गयी तो देखा कि उसकी सासूमाँ और ससुर जी बरामदे में पड़ी डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खा रहे हैं।

उसे थोड़ा बुरा लगा कि आज जब वो तकलीफ में है तो गीताजी एक बार आवाज़ भी न दे पाई कि,संध्या तुम भी खाना खा लो । खैर यही सोचते हुए उसने दाल और चावल एक कटोरी में निकाला और मिलाकर जैसे ही मुंह मे रखा,वो दर्द और जलन से बेहाल हो उठी।दाल में गीताजी ने प्रेम से लाल मिर्च डाला था। उसकी आँखों से तकलीफ और क्रोध की वजह से आँसू बहने लगे।

वो सोचने लगी कि गीता जी को पता था कि मेरे मुंह में छाला भी है और दांत में भी दर्द है अगर मेरी थोड़ी सी सादी दाल निकाल देतीं या फिर एक दिन मिर्च से न छौंकती तो क्या कुछ बिगड़ जाता।

तभी गीताजी खाना खाकर उठीं और संध्या से बोलीं,”अब तो तबियत ठीक हो गई होगी तुम्हारी,खाना बन चुका है, खा लो।”

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तो संध्या ने क्रोधवश रुआँसी होकर पूछा,”मम्मी जी आपने इतना मिर्च क्यों डाल दिया,मेरे छाले में बहुत दर्द होने लगा।” इतना सुनते ही गीताजी ने आपा खो दिया और बिगड़ते हुए बोलीं,” एक तो मैने खाना बनाकर रखा ऊपरसे तुम कानून पढ़ा रही हो।”

संध्या ने रोते हुए कहा,”मम्मी जी मैं तो हर रोज़ खाना नाश्ता सब कुछ बनाती हूं और सबके लिए बनाती हूं। और सबके स्वाद और पसंद नापसंद का ध्यान रखती हूं तो आज तो मेरी तबियत खराब थी मेरे मुंह मे छाले की वजह से बेइंतहा दर्द और जलन थी तो क्या मैं इतनी भी उम्मीद नहीं कर सकती मेरी माँ समान सास जिसके लिए मैं हर वक़्त लगी रहती हूं वो एक वक्त के खाने के समय मेरी तकलीफ का ही ध्यान रख लेती।”

आपको डायबिटीज है तो 365 दिन आपको बिना चीनी की चाय पिलाती हूं आज तक कभी गलती से भी नही भूली फिर आपने मेरे बारे में क्यों नहीं सोचा?

अगर मैं चाहती तो ये बात अपने मन मे रखकर यहाँ से हट जाती पर ये बात कहीं न कहीं मन मे कड़वाहट के बीज बोयेगी और इसका असर समय के साथ परिवार के हर सदस्य पर पड़ने लगेगा,इसलिए मैंने आपसे कह देना सही समझा। अगर आपको सही न लगा हो तो मैं माफी चाहती हूं।आखिर यहां पर मां के स्थान पर आप ही तो हैं।”

इतना कहकर संध्या ने फ्रिज से दूध निकाल कर हल्का गरम किया और उसमें ब्रेड डालकर खाने चली गयी।

गीताजी निरुत्तर हो गई थीं और संध्या अपने अंदर की कड़वाहट को बाहर निकाल कर बहुत हल्का महसूस कर रही थी।

दोस्तों, ये एक वास्तविक कहानी है।आज भी बहुत से परिवारों में बहू को उसका वास्तविक स्थान और सम्मान नहीं दिया जाता और न ही उसे दिल से अपनाया जाता है।अगर दूसरे परिवेश से आई हुई लड़की को प्यार और सम्मान दिया जाए तो निश्चित रूप से वो परिवार की हर एक कड़ी को जोड़कर रखेगी।जब उसे अपना वजूद खतरे में दिखता है तो वहीं से विध्वंस शुरू होता है।

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धन्यवाद।।

Cinni Pandey

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