Moral stories in hindi: रात को ११ बजे आकांक्षा ने जैसे ही स्कूटी से अपनी कॉलोनी में प्रवेश किया … रात के भोजन के बाद कॉलोनी में टहलने वालों की निगाहें उसे ऐसे घूर रहीं थीं मानों उसने कुछ अपराध किया हो … मिसेज पाटील की ऑंखें मिसेज वर्मा को कुछ इशारा कर रही थीं..
मिसेज पाटील बोली- अब मिसेज भंसाली के तर्क कहां गए कि लड़क़ी को ज्यादा रात तक बाहर नहीं रहना चाहिए … अब अपनी ही बेटी रात ११ बजे तक घर से बाहर रहती है.. मिसेज वर्मा बोली- हां मिसेज पाटील! यह सिलसिला दो महीनों से चल रहा है मैंने भी देखा है.. जरूर उसका कोई चक्कर चल रहा है कभी कभी एक लड़का भी मोटर साइकिल पर उसे छोड़ने आता है …और फिर यह बात पूरी कॉलोनी में फैल गई।
आकांक्षा की मम्मी के कानों तक जब यह बात आई तो बेटी के आते ही आव देखा न ताव और बरस पड़ी बेटी पर.. क्या मैनें तुम्हें यही संस्क़ार दिए हैं… तुमने तो खानदान का नाम डूबो दिया.. अब हम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहे.. ऑफिस में यही गुल खिला रही हों ..तुम्हारा किस लड़के से चक्कर चल रहा है बताओं?
आकांक्षा बोली- माँ! आपके संस्कार इतने कमजोर नहीं हैं कि आपको बेटी सही गलत को न समझ सके.. पापा समाजसेवी हैं मैं भी पापा की तरह खानदान का नाम रोशन करना चाहतीं हूँ। आप जानना चाहती हैं कि मैं क्या करती हूं कहाँ जातीं तो सुनो… माँ! मैने तीन महीने पहले ऑफिस ज्वाइन किया हैं तब से आते जाते समय मैं रोज रेड लाइट पर कुछ गरीब बच्चों को भीख मांगते देखती तो मन दुःखी होता था
बड़ी बुआ का बेटा विकास जो मेरे साथ ही ऑफिस में काम करता है उसका भी मन बच्चों को भीख मांगते देखकर द्रवित होता था.. हम दोनों ने सोच यदि इन बच्चों को शिक्षा मिले तो ये बच्चे शायद भीख न मांगें बड़े होकर अपनी रोजी रोटी खुद कमाएं फिर क्या था विकास भइया और हमने अपने ऑफिस के बाद कुछ घण्टे इन बच्चों को पढ़ाने का विचार किया..
व्यक्तिगत रूप से सभी बच्चों से पूछा तो सभी बच्चे पढ़ने के लिए खुशीखुशी तैयार थे.. ऑफिस के बाद हमने एक पुराने बस स्टॉप के पास बच्चों के इकट्ठा करके पढ़ाना शुरू किया.. देखते ही देखो बच्चों क़ी संख्या बढ़ने लगी है सभी बच्चे खुश हैं उत्साहित हैं अब हमें बड़ी जगह की जरूरत है सो सरकारी लोगों की मदद से बड़ी जगह खोज रहे हैं.. बच्चों को पुस्तक, कॉपी पेंसिल टाट पट्टी की जरूरत होगी उसके लिए धनराशि की व्यवस्था हम अपने घर वालों की मदद से कर लेंगे ,पहले जमीन मिल जाए…
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मोटरसाइकिल से मुझे घर छोडने के समय कल विकास भइया कह रहे थे कि यदि घर के ं सब लोग़ राजी होते हैं तो हम इस विषय पर निर्णय ले लेते हैं… तब मैंने कहा था- पहले हम कुछ कदम आगे बढ़ते हैं अर्थात् जमीन निश्चित हो जाए तब घरवालों को बताएंगे… यह बात शायद कॉलोनी की एक दो आंटी ने सुन ली होंगी.. और दूसरे रूप में लेकर आग की तरह पूरी कॉलोनी में फैला दी होगी.. यह बात कान के कच्चे सभी लोग़ों ने मान ली और इसी अवधारणा से आपके दिल में शंका का जहर घोल दिया..और आपने भी उन सब की बात मन ली…
मुझे माफ कर दे बेटा। तेरी माँ इतनी कान की कच्ची हो गई कि अपने संस्कारों पर अविश्वास कर बैठी कहते हुए माँ ने आकांक्षा को गले लगा लिया…
स्वरचित मौलिक रचना
सरोज माहेश्वरी पुणे ( महाराष्ट्र)
# कान का कच्चा