विशाखा कहां खोई है, चल बस का समय हो गया है, लेट पहुंचे तो सही से खड़े होने को भी जगह नहीं मिल पाएगी।
आंहां, चल अलसाई सी विशाखा उसका उत्तर देने लगी।
और कहां खोई होगी, फिर राम के बारे में ही सोच रही होगी, क्यों सही कहा न मैंने, रीमा उसकी शक्ल देखते हुए बोली।
हां, मेरी जिंदगी में उससे आगे क्या है, क्या ही सोचूंगी।
कहते हुए दोनों बस में सवार हो गयी। बस के आखिरी में एक सीट खाली नजर आई, तो विशाखा उस पर बैठ गई, रीमा आगे बढ़ चली।
आफिस से डेढ़ घंटे का घर तक का सफर है। एक सवारी आ रही है, एक बस से उतर रही है, क्या मेरी जिंदगी इन सवारियों से भी ज्यादा मुश्किल है, जिन्हें इनका ठिकाना तो मालूम है, पर मुझे तो मेरा पड़ाव ही नहीं मालूम, बस निरर्थक ही चले जा रही हूं।सोचते हुए विशाखा फिर खो गई। उसे याद आ गया शादी की पहली रात का वाकया,
जब राम ने उसे उस रात भी अनदेखा करते हुए अपना फैसला उस पर लाद दिया था — मैं किसी और से प्यार करता हूं, ये शादी मैंने घरवालों को खुश करने के लिए की है, मुझे तुमसे लगाव नहीं है, तुम अपने लिए फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हो, शादी निभाना या न निभाना तुमहारा फैसला होगा, कहकर राम दूसरी करवट ले सो गया था। विशाखा का चेहरा तो आंसूओं में धुंधला गया था, वह क्या सोचे, क्या नहीं,यह विचार उसके दिमाग से कोसों दूर थे। वह ऐसे ही गठरी बनी ,बैठी रह गई।
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सुबह जब रेवती, उसकी सास ने उसका उतरा हुआ चेहरा देखा, तो वह सब समझ गई, उसने नाश्ता करने के बाद उससे बात करना ठीक समझा, ऐसा नहीं है कि मैं और राम के पिता इस असलियत को नहीं जानते थे, पर तुम तो राम के पिता की हालत देख रही हो, लकवे के कारण वह कब तक हैं, कहा नहीं जा सकता, ऐसे में राम का घर पर रहना घर के लिए कितना जरूरी है , यह तुम समझ ही गई होगी, राम के साथ इस शादी को निभा लो तो , तुम्हारा ये फैसला मेरे लिए बहुत बड़ा होगा, हम लोगों को मुंह दिखाने के काबिल तो रहेंगे, रोते हुए रेवती ने हाथ जोड़ते हुए याचना की।
दिन भर लोगों के आने जाने के कारण वह अधिक नहीं सोच पाई। पर शाम होते ही यह समस्या फिर सिर उठाए खड़ी थी, रात के अंधेरे में वह इसी उहापोह में रह गई, दिल कर रहा था कि वह वह अभी अपने घर भाग जाए व मां बाबू के सीने से लग जाए, पर रेवती उसकी सास का रोना जैसे पैरों की बेड़ियां बनता जा रहा था। सुबह वह सास के साथ रसोई में मदद करने लगी, जैसे कुछ हुआ ही न हो। छोटा देवर जो कि दसवीं की परिक्षा दे रहा था , उसकी मदद करने लगी।
उसे यहां रहते एक महीना हो , गया था, राम से आमना-सामना केवल रात्रि में ही होता, वह उसके प्रति बेरुखी का ही रवैया रखता, ज्यादा बोलने को क्या, राम की शक्ल देखने को भी उसका दिल न करता।पर वह घर वालों के सामने उससे पति-पत्नी की तरह ही पेश आता। एक बात विशाखा ने अपने हित में रखी कि उसने सांस को कह कर जल्द से जल्द आफिस जाना शुरू कर दिया। सारे दिन आफिस के काम में उसका दिल लगा रहता पर शाम होते ही वह जैसे अंधे कुएं में धकेल दी जाती। छोटी ननद जो बीए में पढ़ रही थी,
उससे पता चला कि राम की कमी दिन उसके साथ रहा था, जिससे वह प्यार करता था । विशाखा ने अपनी तनख्वाह का एक बड़ा हिस्सा घर के ऊपर खर्च करना शुरू किया, व छोटी , बड़ी मदद भी करने से न जाने उसे कैसा संतोष मिलता। पर वही उसका दिल राम के लिए सोच कर यह सोचने पर मजबूर हो जाता कि वह क्यों रहे इस घर में आखिर किस हक से रहे। जिस पति के लिए वह आई, जब वही उसका नहीं तो वह किस अधिकार से घर के अन्य कार्यों को अपनाएं। पर तभी उसके अंदर से आवाज आती कि नहीं, इन लोगों को तेरी मदद की जरूरत है।
ऐसे ही छ महीने बीतते उसे अहसास होने लगा कि आखिर पूरी जिंदगी तो ऐसे नहीं बिताई जा सकती, इधर राम में भी अपने प्रति बेरुखी में बदलाव महसूस कर रही थी। वह किसी न किसी बहाने से उससे बात करने की कोशिश करता, अभी कल ही वह कैसे उसे अपने साथ चलने के लिए तैयार करा कर बाहर ले गया। पर शाम को ही गीता , उसकी ननद ने बताया कि उस औरत से जिसके साथ संबंध थे, वह किसी दूसरे के साथ चली गई है, तो यह बात है, जब उसने इसे छोड़ा , तब इसका व्यवहार बदला। विशाखा सोचने लगी कि यह तो गलत है ।
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आज ही उसे लगा कि वह राम से खुलकर बात करेगी कि वह क्या चाहता है, वह जिंदगी का साथ केवल इसलिए नहीं निभाती जाएगी और न ही जिंदगी में आने वाली हर फिक्र को यूंही उडाती जाएगी, रेडियो पर बजने वाले इस गीत को वह अपनी जिंदगी में नहीं लाएगी, उसे कोई न कोई निर्णय तो लेना ही पड़ेगा ।शाम को राम से यही बात सामने रख उसने कहा तो राम उससे माफी मांगने वाली मुद्रा में कहने लगा,
विशाखा मैंने तुम्हारे साथ शुरू दिन से ही ग़लत किया है, तुम्हें शादी कर मझधार में छोड़ दिया। बिना कसूर सजा सुना दी व उस सजा को मानने के लिए मजबूर भी किया , पर तुमने उस सजा को माना ही नहीं बल्कि मेरे परिवार का भी साथ दिया , उनके लिए आर्थिक मदद भी की। और बदले में कुछ भी नहीं मांगा।
पर अब तुम स्वतंत्र हो, मुझे भी बदले में कोई भी सजा दे सकती हो। मुझे माफ़ नकर छोड़ कर जा सकती हो। तभी बाकी के घर वाले उसके चारों तरफ घेरा डाल खड़े हो गए कि राम को माफ कर इसी घर में रह जाओ। पर विशाखा का एक तरफ आत्म विश्वास था दूसरे तरफ उसकी जिंदगी। उसने आत्म विश्वास को अपनाते हुए राम को माफ कर जिंदगी दुबारा शुरू करने के लिए समय मांगा और कहा पहले जिंदगी तुम्हारी शर्तों पर थी पर अब जिंदगी मेरी शर्तों पर शुरू होगी जिसे राम ने सहर्ष स्वीकार कर नये सिरे से जीवन जीने का आश्वासन दिया। आज विशाखा के लिए जिंदगी का साथ निभान
पंक्ति का अर्थ ठीक हुआ।
* पूनम भटनागर।