मेघा को जब यह खबर मिली तो वह घर का राशन लाने मार्केट गयी हुई थी। अभी वह दालें दूकान दार को लिखा ही रहीं थी कि पीछे से मालती बहन ने आकर
कहा, मेघा जल्दी से घर जा , तेरे घर छापा पड़ा है। मेघा ने जितना सुना ,उस से ही वह बेहोश जैसे हो गई, तभी मालती बहन ने उसे झिंझोड़ा , मेघा, सुना न तूने, मेघा सब भूलकर घर की तरफ भागी। मालती बहन ने दुकानदार को उसके बारे में समझाया, बुझाकर राशन वहीं रूकवाया।
रास्ते भर मेघा के पांव जैसे मन भर भर के हो रहे थे, उठ ही नहीं रहे थे, वह जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहती थी, आखिर घर आ ही गया। घर का तो जैसे हाल ही बुरा था, घर की हर चीज फर्श पर बिखरी पड़ी थी। अलमारी लाकर, संदूक , अटैची सब का सामान बाहर की धूल चाट रहा था।
आयकर विभाग वालों ने घर के सभी सदस्यों को बाहर निकाल दिया था। कपिश बार बार उनके हाथ जोड़ रहा था कि अब वे बस करें , पर वे कहां कपिश की सुन रहे थे। जब सुबह की शाम हो गई तो वे लोग वार्निंग दे कर चले गए। मेघा उनके जाने के बाद काफी समय बाद जैसे होश में आई।
वह अंदर गयी तो देखा कपिश सर पर हाथ रखे सिसक रहा था। मेघा को देखते ही जोर से रो उठा, मेघा सब खत्म हो गया। जानती हो, मेरी नौकरी भी चली गई, मुझे जेल हो जायेगी, घर बर्बाद हो गया, तुम ठीक कहती थी कि,लालच का कोई अंत नहीं होता। अब क्या होगा।
कपिश को किसी तरह सांत्वना देने के बाद घर को ठीक करना याद आया।रात होते होते वे लोग कपिश को जेल ले जाने आ गये। बाद में पता चला कि घर के कागज भी वे लोग ले गए हैं व घर खाली करना पड़ेगा। मेघा हर इल्जाम से जैसे ज्यादा टूटती जा रही थी। पड़ोसी , रिश्ते दार डर के मारे उनकी मदद को नहीं आया।
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पडोस की रमा ताई छुपते छुपाते उन्हें खाना दे कर चलीं गईं। पर मां को तो किसी तरह उसने खिला दिया , पर मां के कहने पर जब वह खाने बैठी तो पहले ही निवाले पर उसे कपिश का चैहरा आंखों के आगे आ गया। और उसने रोते हुए खाना ढक कर रख दिया। मां को तबीयत का वास्ता देकर सुला दिया। पर खुद सूनी आंखों से ताकते हुए कल के बारे में सोचती रही।
कल वह घर छोड़ कर कहीं नहीं जा पायेगी क्या, सब आयकर विभाग से परेशान न होना पड़े, सोचकर मदद करने को, या रखने को तैयार नहीं हुआ।
नींद तो नहीं आनी थी, मेघा को अपने यहां की धर्म शाला में सुबह उठते ही गई धर्म शाला वाला किसी तरह उन्हें रखने के लिए मान गया। अपना व मां का जरूरी सामान ले कर वह धर्म शाला आ गई। कपिश की याद आने पर वह उससे मिलने चली जाती, उसे खाना जेल का ही खाना पड़ता। कपिश अपने किये पर शर्मिन्दा था,
पर वह लाचार था, शर्मिंदगी से कूच हो नहीं सकता था। उसने बता दिया कि वे घर छोड़ कर धर्म शाला में रहने लगे हैं। जेल से आते हूए उसे याद आया कि किस तरह उसने कपिश को ग़लत काम करने से रोका था, कपिश सब है हमारे पास , तुम यह काम छोड़ दो, तब कपिश ने नाराज हो कर कहा, तुम कैसी संगिनी हो, जो आते पैसे पर रोक लगा रही हो।
और फिर मेघा ने कहना ही छोड दिया ,पर इन सबसे वह डरी डरी रहती। पैदल चलते हुए वह धर्म शाला पहुंच गयी। धर्म शाला वाला बाहर ही मिल गया , मेघा से बोला कि आप क्या क्या कर लेती है। उसने बताया कि मैं दसवीं पास हूं। क्राफ्ट की चीजें अच्छी बना लेती हूं। वह उसे सावित्री बहन से मिलवाने ले गया। सावित्री देवी ने उसे काम देते हुए कहा कि वह यह सब देखने के बाद ही बताएंगी।
घर आकर उसने क्राफ्ट के काम में रूचि होने से वह काम अच्छे से कर लिया। अगले दिन जब सावित्री देवी ने खुश होकर उसे कारखाने में रख लिया। और इस तरह पैसों की समस्या हल हुई। पर मेघा को सुबह से शाम हो जाती। इतने मां खाने का इंतजाम देख लेती। महीने के आखिरी में जब उसे तनख्वाह मिली तो वह मां को देती हुई रो कर बोली,
मां अब हमें किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा। जब वह जेल में कपिश से मिलने गयी तो वह जानकर रो उठा पर कहा कि मेघा, मुझे विश्वास है तूम सब ठीक कर लोगी। खाना वो बोला कि मैं यही का खाऊंगा, नहीं तो तुम्हें देने आना पड़ेगा। छः महीने से वह कारखाना में अच्छा काम करते हुए सावित्री देवी की नजर में भी उठ गई। उन्होंने उसे अच्छी पोस्ट देकर पैसा भी बढ़ा दिया। मेघा ने धर्म शाला वाले का धन्यवाद कर उसकी ही मदद से घर किराए पर ले लिया।
एक दिन घर आते हुए उसकी नजर एक पेपर पर पड़ी कि छोटे, कुटीर उद्योगों के लिए बताया जाएगा। वह काम खत्म कर वहां गयी, उन लोगों ने सारा समझा कर उसकी मदद करने का वायदा किया। उसमें मांगे भी दसवीं पास थे। उसने जाकर सावित्री देवी से बात की , तो उन्होंने भी आश्वासन दिया कि वे भी उसकी मदद करें गी।
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उसने कुटीर उद्योग के लिए अपना क्राफ्ट का सामान बनाया। कुटीर उद्योगों ने उसे बिकवाने में उसकी मदद की, साथ ही सावित्री देवी भी उसे बढ़ावा देती रही। साल बीतते बीतते उसका उधोग बहुत चल गया। उसने मेघा उधोग के नाम ने बहुत तरक्की की। आज छोटी सी जगह का उधोग निखर कर एक अच्छे उधोग की पकड़ लिए तैयार था, जिसका आज उद्घाटन था। और आज ही कपिश जेल से बाहर आ रहा था। मेघा जैसे उड़ान पर थी।
जेल से निकलकर कपिश जब मेघा के सामने आया, तो प्रशंसात्मक नजरे डाल कर बोलने ही वाला था कि मेघा बोल उठी कि क्या मैं अब तुम्हारी संगिनी हूं, कपिश आंखों में पानी भर कर बोला, मेरी सच्ची संगिनी तुम्हीं हो।
* पूनम भटनागर।