Moral stories in hindi : तू अभी इसी वक्त निकल यहां से आज से तेरा कोई रिश्ता नहीं है हमारे से !विकास के पापा जोरदार आवाज मैं बोले उनकी आवाज सुनकर रुचि अंदर तक कांप गई ।
विकास ने अपने परिवार के खिलाफ जाकर एक गैर जाति की लड़की रुचि से शादी करी थी ।रुचि ने समझाया भी था की तुम्हारे घर वाले कभी स्वीकार नहीं करेंगे पर, विकास को लगा की एक बार शादी हो गई तो अपना ही लेंगे ।
रुचि और विकास एक दूसरे से बहुत प्यार करते है रुचि का सरल स्वभाव ने विकास का दिल जीत लिया था रुचि के समझाने के बावजूद विकास नही माना रुचि भी विकास के प्यार के आगे हार गई और आज कोर्ट मैं शादी करके रुचि को घर ले आया जिस से उनके बाबूजी नाराज थे क्योंकि, उन्होंने साफ कह दिया था की रुचि इस घर की बहु नही बनेगी
विकास की मां ने समझाना चाहा पर उन्होंने चुप करा दिया और विकास घर से निकल गया मां रोती रह गई विकास की दोनों बहने अपनी ससुराल मैं थी कोई उन्हे तसल्ली देने वाला नही था मन मार कर रह गई पति के खिलाफ जाने की हिम्मत नही थी।
विकास किराए के घर मैं रहने लगा रुचि को दुख होता की मेरी वजह से मांजी दुखी है कभी कभी मां चुपके से मिलने आ जाती रुचि उनका बहुत आदर करती शांति जी सोचती कितनी अभागन हूं की अपने बच्चों को साथ नही रख पा रही ।
रुचि को भी ससुराल की कमी महसूस होती उसको भी लगता सब साथ रहे मिलकर जैसे उसकी भाभी रहती है मायके मैं सब मिल जुल कर रहते है पर क्या कर सकती थी ।
कुछ महीने बीत गए एक दिन पता चला मां सीढ़ियों से गिर गई है पैर मैं फ्रेक्चर की वजह से सवा महीने का आराम बताया है विकास और रुचि घर पहुंचे तो बाबूजी घर मैं नही आने दे तब रुचि बोली बाबूजी आपकी जो भी नाराजगी है वो अपनी जगह सही है लेकिन मांजी को किसी के सहारे की जरूरत है
बाबूजी बोले मेरी बेटी आ जायेगी ।
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रुचि बोली ठीक है ,जब तक मैं घर सम्हालूंगी और आप को जो बोलना है बोल लीजिए लेकिन मैं ससुराल से नहीं जाऊंगी शांति जी की हालत देख बाबूजी कुछ नही बोल पाए
रुचि पूरी लगन से घर का और दोनों का ख्याल रखने लगी मां ने दोनों बेटियों को कह दिया की कोई बहाना बना कर आने की मना कर दे उन्होंने ऐसा ही किया क्योंकि वो भी चाहती थी की भाई-भाभी घर मैं ही रहे और ये तो सौभाग्य की बात थी की ऐसी बहू मिली है ।
रुचि ने अपनी सेवा से बाबूजी का दिल भी जीत लिया विकास भी खुश था लेकिन उसे यही दुख था की फिर अलग जाना पड़ेगा पर इस बात की खुशी थी की अब बाबूजी गुस्सा नही करते थे।
धीरे – धीरे शांति जी ठीक हो गई प्लास्टर खुल चुका था आज रुचि भारी मन से जाने की तैयारी कर रही थी शांति जी भी उदास थी सामान पैक करके जाने के लिए बाबूजी के पैर छुए तो उन्होंने कहा अब कहीं जाने की ज़रूरत नही है मैं गलत था इंसान गैर जाति से नहीं व्यवहार से होता है तुमने सबको अपना बना लिया अब तुम इस घर की बहू हो ।
रुचि की आंख से आंसू बहने लगे उसका सपना सच हो गया था बाबूजी बोले अब कभी नहीं जाना ससुराल छोड़ कर
रुचि बोली ..मैं ससुराल से नहीं जाऊंगी कभी भी
सामान रख दो पति देव जी ।
सब हंस पड़े आज जाने कितने दिनों बाद सब दिल से खुश थे .!!
हर लड़की का सपना होता है ससुराल मैं प्यार से रहना ससुराल नाम से डर नही एक उमंग होनी चाहिए एक नया घर को अपनाने की इसलिए कोशिश दोनों तरफ से होनी चाहिए ताकि नए रिश्ते प्यार से बंध सके
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स्वरचित
अंजना ठाकुर
#ससुराल