मैं मजबूर नही – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

पापा ..पापा कहां हैं आप ?” नंदिनी ने घर में घुसते ही अपने पिता ओमकार जी को आवाज दी।

” बेटा मैं यहां हूं !” रसोई में से पिता की आवाज सुन नंदिनी वहीं पहुंच गई।

” अरे पापा आप खाना बना रहे है हटिए मैं बनाती हूं …ओह आपको तो बुखार है पापा। आपने मुझे फोन क्यों नही किया !” नंदिनी जैसे ही पापा के हाथ से कड़छी लेते हुए उनके हाथ से टकराई तब बोली।

” अरे बस हलकी सी हरारत है ऐसे में तुझे क्या परेशान करता मैं ठीक हो जाएगा ये तो ….तू बैठ देख मैने तेरे लिए पनीर की सब्जी बनाई है !” पापा फीकी सी हंसी के साथ बोले।

” खाना बनाने वाली आंटी कहां हैं?” नंदिनी ने एक पल को  पिता का निस्तेज चेहरा देखा और पूछा।

” वो गांव गई है एक महीने के लिए उसकी बेटी की शादी है !” पापा बोले।

” और आपने मुझे बताना जरूरी नहीं समझा …चलिए अभी कमरे में फिर बात करती हूं आपसे मैं!” नंदिनी पिता को कमरे में ले जाते हुए बोली।

दरअसल ओमकार जी एक बेटा और एक बेटी के पिता है जिनकी जीवन संगिनी का देहांत आज से पांच साल पहले हो गया दोनो बच्चों की शादी हो चुकी थी नंदिनी अपने ससुराल में रहती है उसके सास ससुर का देहांत हो

चुका है घर में पति और दो बच्चे हैं।

ओमकार जी का बेटा विदेश में रहता है अपने परिवार के साथ। मां के देहांत के बाद ओमकार जी का बेटा उन्हे विदेश ले जाना चाहता था पर उन्होंने ये कहकर इंकार कर दिया कि इस उम्र मे दूसरे देश नही जाना चाहता

तुम्हारी माँ की यादो के साथ इसी घर मे रहना चाहता हूँ ।

तब नंदिनी ने पापा के लिए एक घरेलू सहायिका की व्यवस्था की थी जो उनका खाना , कपड़े बर्तन सब करती थी। जो अब छुट्टी पर गई हुई थी। नंदिनी ने अपने पिता को जब आने की सूचना दी तो उन्होंने ये नही बताया कि

उनको बुखार है या सहायिका छुट्टी पर गई है।

नंदिनी पिता को कमरे में ले जा रही थी साथ ही सोच रही थी काश वो एक बेटा होती तो कम से कम अपने पिता की देखभाल तो कर सकती थी बेटियों को तो ईश्वर ने शादी के बाद मजबूर बना दिया हैं। मजबूर ….अचानक उसके दिमाग में ये शब्द गूंजा ….” नही बेटियां मजबूर नही होती मैं मजबूर नही हूं जब मैने अपने सास ससुर की बीमारी में तन मन से सेवा की तो अब पिता की क्यों नही !”

” पापा जब मैं घर जाऊंगी आप भी मेरे साथ चलेंगे!” बिस्तर पर लिटाते हुए नंदिनी बोली।

” पगली सारी जिंदगी गुरूर से जिया है तेरा पापा अब बुढ़ापे में बेटी की देहरी पर रहने से सब मिट्टी में मिल जायेगा!” ओमकार जी बोले।

” नही पापा आजकल बेटा बेटी में कोई अंतर नही आप भाई के यहां जाना नही चाहते तो अब मेरे सामने और कोई रास्ता नही आप मेरे साथ चल रहे हैं मतलब चल रहे हैं !” नंदिनी बोली।

” नही बेटा अपने पिता को यूं मजबूर ना कर मैं इस उम्र में अपने गुरूर से समझोता नही कर सकता फिर तुझे भी तो सुनना पड़ेगा नही नही मुझे माफ कर बेटा मैं तेरी ये बात नही मान सकता।” ओमकार जी हाथ जोड़ बोले जिसे नंदिनी ने अपने हाथों में थाम लिया।

” पापा आप मेरा वो गुरूर है जिसे कोई भी कभी भी नही तोड़ सकता और आपकी बेटी आपका ये गुरुर टूटने भी नही देगी !” ये बोल नंदिनी बाहर आ गई और अपने पति शशांक को फोन मिलाने लगी।

” शशांक पापा की तबियत खराब है वो मेरे साथ हमारे घर आना नही चाहते इसलिए मैने निश्चय किया है कि हम उनके साथ रहेंगे क्या तुम्हे मेरा फैसला मंजूर है ?” नंदिनी बोली।

” क्या ….पर ऐसे एक दम से कैसे क्यों ?” जवाब की जगह शशांक ने सवाल उछाल दिए।

” क्यों कैसे बाद की बात है जब बात मेरे सास ससुर की थी मैंने फर्ज निभाया अब तुम्हारे ससुर की बात है तो बारी तुम्हारी है क्योंकि मैं अपना फैसला नही बदलूंगी तुम अपना फैसला सोच कर बता दो!” नंदिनी बोली और फोन रखकर अपने पापा को अपना फैसला सुनाने चल दी।

” पापा आपका ये अंतिम फैसला है मेरे घर नही चलेंगे ?” नंदिनी ने आते ही सवाल किया।

” बेटा फिर वही बात !” ओमकार जी लाचारी से बोले।

” तो ठीक है पापा मैं यहां रहूंगी आपके पास !” नंदिनी पापा के पास बैठती हुई बोली।

” ऐसे कैसे बेटा !” ओमकार जी असमंजस में बोले।

” वो ऐसे…!” नंदिनी ने शशांक से हुई बात बताई।

” पर जमाई जी राजी ना हुए तो ?” ओमकार जी खुश तो थे पर चिंतित भी।

” उसकी फिक्र आप मत कीजिए वो देर सवेर आ जायेंगे अब तो आपका गुरूर नही टूटेगा ना बस अब मुझे भाई को अपने फैसले से अवगत करवाना है !” ये बोल नंदिनी पिता के गले लग गई।

दोस्तों क्या ये जरूरी है बेटे ही मां बाप की सेवा करे बेटी भी तो कर सकती है ना कब तक बेटी मजबूर रहेगी अपने जन्मदाताओं के प्रति अपने फर्ज निभाने से समय है बदलाव का ।

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

#गुरुर

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