” क्या अम्मा जी, परेश कोई बच्चे हैं जो आप उनकी राह तकती रहती हैं,आ जायेंगे।आप जाकर सो जाइये।” दीपा ने अपनी सास से कहा जो अपने बेटे के आने का इंतज़ार कर रहीं थीं।
” बहू, बेटा कितना ही बड़ा हो जाये,माँ के लिए तो वह बच्चा ही रहता है।परेश बाहर भटकेगा तो मेरी आँखों में नींद कैसे…।
” तो ठीक है,आप बैठी रहिये,मैं तो सोने जा रही हूँ।” कहकर दीपा अपने कमरे में चली गई।
परेश की कम्पनी के क्लाइंट भारत के अलावा दूसरे देशों के भी होते थें,इसलिए उसकी मीटिंग देर रात चलती रहती थी,घर आने में उसे देर-सबेरे हो जाता था।वो जब तक घर नहीं आ जाता, उसकी माँ अपने बेटे का इंतज़ार करती रहती,यही बात उसकी पत्नी को खलती थी।परेश की माँ रोज बेटे का राह तकती और दीपा उन्हें मना करती।एक-दो बार तो परेश ने भी उन्हें मना करते हुए कहा था कि इस तरह से देर रात तक आप मेरे लिए जागेंगी तो बीमार पड़ जायेंगी, आप सो जाया कीजिए और तब वे मुस्कुरा देती।
दीपा का बेटा चौथी कक्षा में पढ़ता था।स्कूल का होमवर्क करके वह शाम को दोस्तों के साथ खेलने चला जाता था।एक दिन वह नहीं आया, अंधेरा होने लगा तो दीपा घबरा गई,उसने बेटे के दोस्तों के घर फ़ोन लगाया लेकिन कहीं से भी कुछ पता नहीं चला। क्या करे, किससे पूछे कि तभी उसका बेटा आ गया।बेटे को देखकर उसकी जान में जान आई।बेटे को सीने से लगाते हुए बोली कि कहाँ रह गया था, मेरी तो जान ही निकल गई थी।आगे से देर मत करना,मैं घबरा जाती हूँ।बेटा बोला, क्या मम्मी, आप भी…अब मैं बड़ा हो गया हूँ।” उस वक्त बेटे की बात को दीपा ने हँसी में उड़ा दिया।
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दीपा का बेटा नौवीं कक्षा में आ गया।वह शाम को ट्यूशन पढ़ने जाता था,आने में उसे देर हो जाती तो दीपा उससे पूछती कि देर क्यों हो गई, कहाँ रह गये थे,वगैरह-वगैरह।एक दिन दीपा ने बेटे से कह दिया कि तू समय पर घर आ जाया कर,मेरा मन घबरा जाता है।तब बेटे को गुस्सा आ गया,बोला, ” मम्मी, अब मैं बड़ा हो गया हूँ, अपना भला-बुरा समझना मुझे आता है।आपको मेरी चिन्ता करने की कोई ज़रूरत नहीं है।”
बेटे की बात से दीपा को बहुत दुख हुआ,नम आँखों से बोली, ” बेटा ,मैं माँ हूँ तेरी, फ़िक्र तो होगी ना मुझे।तू कितना भी बड़ा हो जाएगा, मेरे लिए बच्चा ही रहेगा ना।”
” यही बात तो दादी भी पापा के लिए कहती थीं,तब तो आपने उनकी हँसी उड़ाई थी और अब…।” कहकर वह अपने कमरे में चला गया और दीपा अपनी सास को देखने लगी जो दरवाज़े पर टकटकी लगाये परेश के आने का इंतज़ार कर रहीं थीं।
— विभा गुप्ता
स्वरचित