मैं लेखक हूं – नेकराम Moral Stories in Hindi

मैं एक लेखक हूं मुंबई काम की तलाश में आया हूं रात काफी हो गई है कहीं रात बिताने के लिए कोई गार्डन या सुरक्षित स्थान होगा वह दुबला पतला सा नौजवान कुछ देर तो मुझे देखता रहा फिर कहने लगा मैं एक चोर हूं रात को छोटी-मोटी चोरियां करके अपना पेट भर लेता हूं यहां से कुछ दूर एक मंदिर है उस मंदिर के पीछे एक किराए की खोली है 3 वर्षों से वही अकेला रह रहा हूं किसी जमाने में मैं भी एक लेखक था कभी-कभी कहानी भी लिख लेता था —
मुंबई शहर चला आया यह सोचकर की नाम और शोहरत कमाऊंगा अपनी लिखी कहानी लेकर दर-दर भटकता रहा कई दिन बीत चुके थे घर से जो रुपये लाया था धीरे-धीरे खत्म होने लगे
अंत में मुझे कई कई दिनों तक सड़कों पर भूखे रहकर दिन बिताने पड़े लिखने की प्रेरणा धीरे-धीरे लुप्त होती गई और एक दिन एक औरत का पैसों से भरा पर्स छीन कर मैं भाग निकला बहुत दूर जाने के बाद किसी होटल में पेट भर के खाना खाया मन ही मन मेरी आत्मा मुझें कोस रही थी कि तूने एक महिला का पर्स छीना है समाज में यह काम सबसे घटिया काम गिना जाता है
फिर कभी ऐसा काम न करने का स्वयं से वचन लिया छीने हुए पर्स में पांच हजार रुपए थे तीन हजार रुपए देकर भाड़े में एक खोली ले ली कुछ पेन और कॉपियां खरीदी फिर से नई कहानियां लिखी और बड़े-बड़े कलाकारों के घर के चक्कर लगाए लेकिन हर जगह से निराशा ही हाथ लगी
तब मेरी सब्र का बांध टूट चुका था वापस गांव भी नहीं लौट सका अपनी अम्मा को बड़ी-बड़ी बातें कह कर आया था मुंबई शहर जा रहा हूं सबसे बड़ा लेखक बनकर लौटूंगा लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया और मैंने फैसला किया अब लोगों की जेब काटूंगा पर्स छीनूगा रात को निकलूंगा हाथ में चाकू लेकर आने-जाने वालों को चाकू दिखाकर उनके मोबाइल रुपए घड़ी सब छीन लिया करूंगा 3 साल हो गए अब मैं एक पक्का चोर बन चुका हूं
तुम्हें भी मैं चाकू दिखा कर लूटने के इरादे से तुम्हारे नजदीक आया लेकिन जब तुमने कहा मैं एक लेखक हूं तब ना जाने मुझे अपनी लेखक की जिंदगी याद आ गई गांव में मेरी बहन कुंवारी बैठी है या शादी हो गई कुछ पता नहीं
दादा – दादी अम्मा और बाबूजी ना जाने किस हाल में होंगे बहुत मन करता है गांव जाने का लेकिन किस मुंह से जाऊं क्या कहूंगा अपने लोगों से कि मैं मुंबई जाकर एक चोर एक अपराधी बन गया कहीं मेरी मां चोर का नाम सुनकर सदमे में ना चली जाए चोर की बहन से भला कौन शादी करता है यही ख्याल आकर मैं मुंबई से बाहर निकल ही नहीं पाता हूं इतना कहकर वह फूट-फूट कर रोने लगा
तब मेरी समझ में आया कि एक चोर के सीने में भी दिल होता है मैंने चोर को अपना रुमाल देते हुए कहा लो आंसू पोछ लो क्या मैं तुम्हारी खोली में रात बिता सकता हूं
उसने रुमाल मुझे वापस देते हुए कहा मैं तो एक चोर हूं मेरे साथ रहोगे तो अन्य लोग भी तुम्हें चोर समझेंगे मैं मुस्कुराया और कहने लगा तुम चोर नहीं हो तुम आज भी एक लेखक हो और मुझे पूरा विश्वास है इन तीन सालों में तुमने जितना भी अनुभव बटोरा है यही तुम्हारी पूंजी है
जब कोई बच्चा दौड़ते दौड़ते गिर जाता है तो वह समझता है अब मैं खड़ा नहीं हो सकता लेकिन जब वह बच्चा याद करता है की मां को कहा था मैं दौड़ में अवश्य जीतूंगा और उसके भीतर जीतने की शक्ति फिर से पैदा हो जाती है वह फिर से दौड़ता है और पूरी शक्ति से दौड़ता है और जीत हासिल करता है तुम भी गांव से मुंबई आए थे 3 सालों के लिए तुम गिर चुके थे अब तुम फिर से उठोगे फिर से दौड़ोगे और तुम भी जीत जाओगे दुनिया में तुम्हारा भी नाम होगा लोग तुम्हें सम्मान की निगाह से देखेंगे तुम फिर से गांव जा सकोगे दादा दादी अम्मा बाबूजी अपनी छोटी बहन से मिल सकोगे
तूफान आने पर कमजोर पत्ते पेड़ से टूट जाते हैं लेकिन मजबूत पत्ते तूफान का सामना करते हैं इसका अर्थ है देश के प्रसिद्ध नामी लेखक लेखिकाएं कई संघर्षों से जूझते हुए अपने लक्ष्य पर टिके रहते हैं उनके इरादे इतने मजबूत होते हैं कि उनके सामने दुख कठिनाई परेशानी तकलीफ गरीबी जैसी कोई भी चीज उनका रास्ता नहीं रोक पाती
उस रात में चोर के घर ठहरा लेकिन मुझे उसके भीतर के लेखक को बाहर निकालना था इसलिए मैं उसके साथ 3 सालों तक रहा इन 3 सालों में हम दोनों ने शुरुआत में अखबार बेंचने का काम शुरू किया एक महीने के भीतर हमने अखबार के बड़े सेल्समैन से अच्छी खासी दोस्ती कर के नौकरी हासिल की अब हम छोटे-छोटे दुकानदारों को अखबार गिन कर दिया करते थे
वह अखबार एक बड़े से ट्रक में लदकर आया करते थे दो महीनों में हमने ट्रक चलाने वाले ड्राइवर से दोस्ती करके कहा कि जहां से अखबार छपकर आते हैं हमें वहां साफ सफाई का काम दिलवा दीजिए 3 महीने के बाद ट्रक वाले ने कहा दो सफाई करने वाले वर्कर चाहिए मैंने तुम दोनों का जिक्र किया था कल से प्रेस में आ जाना ट्रक वाले के बताएं पते पर हम दोनों अगली सुबह चल पड़े
मशीनों से अखबार छपकर निकलते थे हमें सब मशीनों पर कपड़ा लगाना होता था मशीनों को चमकाना होता था फिर झाड़ू पोछा मार कर तहखाना को साफ सुथरा करना होता था 6 महीने बीत गए
मशीन में अखबार छापने वालों से दोस्ती कर ली वहां प्रेस के बड़े-बड़े लेखकों से जान पहचान बनाई और एक दिन हम दोनों ने एक-एक छोटी सी कहानी लिखकर संपादक को दे दी संपादक ने कहानी छाप दी अगले दिन संपादक ने कहा साफ सफाई का काम बंद करो 9 हजार रुपए महीने की दोनों को सैलरी मिलेगी उसके बाद हम रोज एक कहानी लिखकर संपादक को देने लगे कुछ महीने बाद हमारी खोली में एक सज्जन आए उन्होंने बताया मैं मुंबई मासिक पत्रिका निकालता हूं अखबार में तुम दोनों की कहानी पढ़ता हूं आप दोनों को मैं
20 हजार रुपए महीने की सैलरी दूंगा मुझे नए लेखकों की तलाश है हम दोनों ने मुंबई मासिक पत्रिका में एक साल काम किया अब हमने समय निकालकर उपन्यास लिखने शुरू किये
खा – पीकर जो रुपए बचते थे उन रूपयों से अपनी-अपनी उपन्यास छपवाकर बाजार में निकलवा दी उपन्यास में हमारी खोली का पता लिखा था कुछ सप्ताह बाद मुंबई के मशहूर डायरेक्टर हमारे पास आए उन्हें हमारा दोनों का उपन्यास पसंद आया हम दोनों को रहने के लिए एक नया फ्लैट दिया और सामाजिक फिल्म की स्टोरी लिखने का काम सौंपा , पत्रिका का काम हमारा छूट चुका था
हमारी सामाजिक कहानियों ने देश के लोगों को जागरूक किया समाज के खोखले ढांचे को दर्शाती फिल्में एक के बाद एक सिनेमा घरों में लगने लगी कई पुरस्कारों से हम दोनों को सम्मानित किया गया देशभर में हमारी पहचान बन गई
तब मुझे उसने कहा ,,
मैं तो एक चोर बन गया था लेकिन तुम्हारे बताए मार्ग पर चलने से आज मेरे पास मान -और सम्मान दोनों हैं आज मैं अपने गांव सर उठा कर जा सकता हूं
उस दिन वह ट्रेन में बिठाकर मुझे भी अपने गांव ले गया कहने लगा मैं सबसे मिलवाऊंगा पूरे गांव को बताऊंगा तुमने मुझे एक नया जीवन दिया है गांव पहुंचने के बाद उसने अम्मा बाबूजी के पैर छुए छोटी बहन की मांग में सिंदूर देखकर कहा मुझे माफ करना छोटी मैं तेरी शादी नहीं देख सका मगर मेरे जीजा देखने में कैसे हैं मुझे भी तो उनसे मिलवाओ
इतने में उसके दादा-दादी जी कमरे से बाहर आते हुए बोले तू 3 सालों से जिसके साथ मुंबई में रहा वही तो तेरे जीजा है
इतना कहकर सब हंस पड़े ,,,,,
छोटी ने आगे बढ़कर भाई को बताया जब तुम मुंबई चले गए थे उसके बाद एक महीने बाद मेरे लिए रिश्ता आया सगाई हुई फिर शादी जब मैं ससुराल पहुंची तो अपने लेखक भाई की कहानी बताई कि वह मुंबई में 3 साल पहले लेखक बनने गया था इन तीन सालों में उसका कुछ भी अता पता नहीं ना मोबाइल से कॉल आता है अम्मा और बाबूजी का रो-रोकर बुरा हाल है तब तुम्हारे जीजा उसी समय कहने लगे मुझे मेरे साले का फोटो दे दो मैं पूरी मुंबई छान मारूंगा और अपने साले को खोज कर ही लाऊंगा
छोटी की बात सुनकर वह मुझसे लिपटकर खूब रोया ✍️
नेकराम सिक्योरिटी गार्ड
मुखर्जी नगर दिल्ली से
स्वरचित रचना ✍️

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