पल्लवी लगभग दो मिनट तक बेल बजाती रही पर किसी ने भी दरवाजा नहीं खोला। वह थककर वहीं बैठ गयी। प्यास से उसका हलक सूख रहा था। जल्दी घर पहुंचने के चक्कर में उसने रूककर पानी भी नहीं पिया था। अभी वह सोच ही रही थी कि क्या करे इतने में भड़ाक से दरवाजा खुला। सामने प्रदीप खड़ा था।
उसे देखते ही बोला-” आने की जरूरत क्या थी वहीं रुक जाती? ”
पति को गुस्से में देख वह बिना कुछ बोले अंदर आ गई। उसने हाथ मूंह धोया और किचन में घुस गई। जल्दी -जल्दी खाना बनाया और उसे डाइनिंग टेबल पर रखकर सबको बुलाने चली। सास ससुर दोनों ने खाने से मना कर दिया। दोनों ननद और छोटा देवर सोने का नाटक करने लगे। अंत में वह पति के पास गई और बोली-
“आप तो चलकर खाना खा लीजिए।”
“मुझे भूख नहीं है,अपने टाईम के हिसाब से बनाई हो तो जाकर खालो भरपेट। ”
भूख से बेहाल पल्लवी की आंखे भर आई। उसने एक नजर मेज पर रखे खाने को देखा और एक ग्लास पानी पीकर चुपचाप से सो गई।
सुबह आंख खुलते ही जैसे घर में भूचाल आ गया था।
पल्लवी ने सास- ससुर का ऐसा रूप पहले कभी नहीं देखा था। वह समझ गई थी कि यह भूचाल उसी को लेकर आया है।
उसे देखते ही सास बोली-” प्रदीप अपनी पत्नि को अच्छे से समझा दो कि बहुत हो गया और अब मनमानी नहीं चलेगा । इस घर में रहना है तो आंख की पानी को बचाकर रखे । ”
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पल्लवी ऑफिस जाने के लिए आलमारी से कपड़े निकाल रही थी तभी प्रदीप दनदनाता कमरे में घुसा और एक सांस में बोल गया।
-” पल्लवी तुम्हें ऑफिस जाने की कोई जरूरत नहीं है। तुम आज ही रिजाइन करोगी। ”
“क्या कह रहे हैं आप? मज़ाक तो नहीं कर रहे हैं? ”
“मजाक तो तुम मेरा बना रही हो। मौका क्या दे दिया मुझे ही बेवकूफ़ बनाने लगी। पांच बजे की छुट्टी रात के दस बजे होने लगी है।”
“ऐसा नहीं है, ऑफिस में मीटिंग था और अब महिने में दो बार होगा ।”
“अच्छा … इसीलिए तो कह रहा हूं कि तुम्हारा ड्रामा देखकर ही अम्मा बाबूजी चाहते हैं कि तुम रिजाइन करो ।”
“कितनी मेहनत से मुझे नौकरी मिली है और आप लोग इतनी आसानी से इसे छोड़ने के लिए कह रहे हैं। आप एक बार उन्हें समझाये तो सही ।”
“देखो पल्लवी मैं अम्मा बाबूजी के खिलाफ एक शब्द नहीं बोल सकता। चाहे उनका निर्णय सही हो या गलत। यह मेरे उसूलों में नहीं है। बचपन से आजतक मैंने उनके हर फैसले को सिर झुकाकर स्वीकार किया है। और मेरा मानना है कि तुम्हें भी मान लेना चाहिए।”
“मैं यह कहां कह रही हूँ कि आप उनका विरोध कीजिए पर उन्हें समझा तो सकते ही हैं ।आप कहें तो मैं उनसे विनती करती हूं। ”
“पल्लवी अब तुम मुझे मत सीख दो कि मुझे क्या करना है क्या नहीं। उनकी इच्छा नहीं है तो तुम्हें
रिजाइन करना ही होगा।”
वह कुछ बोलती इसके पहले ही प्रदीप पैर पटकते हुए ऑफिस के लिए निकल गया । पल्लवी को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। प्रदीप ने गुस्से में आकर उसके सामने शर्त रख दिया था या तो वह नौकरी छोड़े या फिर उसे घर छोड़ कर जाना पड़ेगा। हर बार एक ही धमकी घर छोड़ने का। पल्लवी दोराहे पर खड़ी थी।
वाह रे पति परमेश्वर! कितना आसान था यह कह देना कि घर छोड़ कर जाओ।
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पल्लवी के दिल में पहले से दफ्न दर्द अनायास ही रिसकर उसकी आंखों से गिरने लगा।
वह टीस आज भी याद है जब उसके माँ बनने की खुशखबरी सुनकर प्रदीप आग बबूला हो गया था।उसने उसे झटकते हुए कहा था-” तुम्हारा इंटरव्यू होने वाला है और तुम इस बेकार के पचरे में पड़ना चाहती हो, बच्चे कभी भी हो जाएंगे लेकिन नौकरी जब चाहोगी तब नहीं होगा। ”
मन मसोस कर उसने अबॉर्शन करवा लिया था। परिवार वाले भांप न ले इसके लिए उसे कितने पापड़ बेलने पड़े थे। कई बार तो उसे ससुराल वालों ने बाँझ तक कह डाला था। सास प्रदीप पर उसे छोड़ देने का दबाव भी बनाती रहती थी। पल्लवी ने पति और घर के लिए अपनी सारी खुशियों को जला डाला था। बहुत मेहनत के बाद उसे नौकरी मिल गई थी। घर की आर्थिक स्थिति तो अच्छी हो गई लेकिन पल्लवी चाहकर भी माँ नहीं बन पा रही थी।
यह ठीक है कि यहां तक पहुंचने में उसके पति ने साथ दिया था।उसका मनोबल बढ़ाया। लेकिन यह भी सच है कि उसे यहां तक आने के लिए अपनी सारी खुशियों का तिलांजलि देना पड़ा है । जब न तब उसके सामने शर्तो का पहाड़ खड़ा कर दिया जाता है। हो क्या गया है प्रदीप को….. जब पंख काटना ही था तो उड़ने के लिए आसमान क्यों दिखलाया ।
कुछ सोच कर पल्लवी एक झटके से आईने के सामने खड़ी हो गई और अपने आप से बोली –
मैं पल्लवी हूँ मुझे त्याग की मूर्ति नहीं बनना। मैं कोई सीता नहीं जिसे जब चाहा अपना लिया और जब चाहा त्याग कर दिया ।इस बार ऐसा बिल्कुल नहीं होगा। अब मैं अपने किसी खुशी का त्याग नहीं करूंगी। अगर करना होगा तो तुम्हारा और तुम्हारे अहम का त्याग करूंगी प्रदीप । बस अब नहीं। पल्लवी ने अपना पर्स उठाया और ऑफिस के लिए निकल पड़ी।
स्वरचित एवं मौलिक
डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर, बिहार
Splus S
I loved this modern Sita, long live her tribe.
Absolutely
कहानी में फिर वही अधूरापन,मन में संकल्प लिया और कहानी खत्म वाह क्या बात है !
Ofcourse
कहानी अधूरी रह गई है