हिमांशी कुछ समझ नहीं पा रही है, उसके दिल में हजारों सवाल है वह
जितना ही इन सवालों के घेरे से निकलने की कोशिश करती है। उतनी ही उलझती जाती है ‘
प्रातःकाल में वह सुकून की तलाश में टहलती हुई रोज ही पार्क में आ जाती है। उसकी यह आदत पिछले कई सालों से चली आ रह कर अब तो नशा बन गई है। एक तलब सी उठती है उसके अन्दर और वह उठ कर पार्क की तरफ चल देती है।
अपने घर और पति ‘साहिल’ के ऊब भरे साथ वाले दमघोंटू माहौल से बचने का उसके पास एक यही तरीका है। कुछ पल के लिए भी सही लगता है ‘सब कुछ ठीक है ‘
क्या हर औरत की किस्मत ऐसी ही होती है या फिर मेरी किस्मत ही काली स्याही से लिखी गई है ?
पिता ने तो अच्छी तरह देखभाल कर ही रिश्ता किया था पर साहिल की भोलीभाली सूरत के पीछे वे यह नहीं देख पाए कि उसके भीतर किस कदर शरीर की भूख छिपी है। देखते भी किस प्रकार जब हिमांशी की किस्मत ही खोटी है।
साहिल और उसके बीच का रिश्ता पति-पत्नी के बीच जैसा मधुर नहीं है।
साहिल के लिए हिमांशी सजी-सजाई स्त्री देह मात्र है। वह उसे नित्य नोंचता -खसोटता और दांतों से काटता रहता है। जिसकी गवाही उसके पूरे शरीर पर पड़े निशान देते हैं।
आज हिमांशी सैर नहीं करती है। बल्कि वहीं लगी बेंच पर बैठ टिक कर अपनी आंखें बन्द कर लेती है। उसे थोड़ी देर खुद से मिलना है।
वह अपने प्रति साहिल के इस मर्यादा विहीन व्यवहार को समझ नहीं पाती है। उसे लगता है उसकी किस्मत उससे आंख मिचौली खेल रही है।
हिमांशी की आंखों से आंसुओ की धार फूट रही है।
तभी पड़ोस वाले शुक्ला जी और उनकी पत्नी पर नजर पड़ी दोनों पति-पत्नी हर दम साथ ही रहते हैं हिमांशी सोचती है कुछ लोगों को कैसी सजी-सजाई ज़िन्दगी मिलती है।
इन्हें साथ-साथ देख कर उसे अपना अकेलापन और खालीपन और भी अखरता है। उन्हें अपनी ओर आता देख कर वह शर्मिंदा सी हो कर उठने को तैयार हुई तभी ,
‘ अरे हिमांशी कहां जा रही हो ?
उठती हिमांशी फिर से वहीं बैठ गई उसे लगा जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो।
‘साहिल नहीं आए हैं साथ में रात में उसकी कितनी तेज-तेज आवाज आती है तुम कुछ करती क्यों नहीं हो ? ‘
हिमांशी समझ गई अब उसके और साहिल के बीच की बात घर से बाहर निकलने लगी है।
वह कट कर रह गई और कर भी क्या सकती थी ?
खून का थक्का सा जमता लगा दिल में।
कल रात की बातें कानों में गूंजने लगी जब उसने शाम में ही साहिल के बार-बार तंग करने पर टोक दिया था तब साहिल बेसब्र हो कर उसके बालों को उंगलियों में कस कर खींचते हुए चिल्ला पड़ा ,
‘ नो मोर डिस्कशंस ऑन दिस टाॅपिक मुझे शाम से ही चाहिए तो बस चाहिए मेरे प्रति तुम्हारी लापरवाही मुझे एक क्षण भी बर्दाश्त नहीं है ‘
हिमांशी के अंदर छन्न से शीशे की तरह कुछ टूटा था। अंतस के दर्द का असर शारीरिक दर्द से कई गुणा ज्यादा होता है।
इधर सामने खड़ी शुक्ला आंटी कह रही हैं,
‘ चुप रहने से हर सवाल हल नहीं होते हैं हिमांशी तुम समझदार और पढ़ी-लिखी हो अच्छी तरह जानती हो ,
‘ विरोध की एक आवाज हमेशा जिन्दा रखनी चाहिए भले ही वह धीमी और बेअसर क्यों ना हो , नहीं तो जुल्म और जो़र-जबरदस्ती सहने की आदत हो जाती है ‘
हिमांशी और नहीं बैठ पाई उठ खड़ी हुई, आंसुओ से लिथड़ते चेहरे को पोंछती हुई आगे बढ़ गई।
थोड़ी देर बाद अपने घर के दरवाजे पर खड़ी लंबी -लंबी सांसें ले रही थी कि चिर-परिचित सी कर्कश आवाज ,
हिमांशी … हिमांशी कहां हो तुम पार्क में इतनी देर क्या करती हो तुम वहां किसी से प्रेम-व्रेम का तो चक्कर नहीं चला रही हो ?
क्या मैं अकेला काफी नहीं हूं तुम्हारी गर्मी शांत करने के लिए ‘
उफ्फ … मन ही मन कराह उठी कान में पिघले शीशे जैसी लहूलुहान करती आवाज।
चारों तरफ कांच के टूटे टुकड़ों पर पांव कैसे और किस तरह बढ़ाएं ?
अचानक शुक्ला आंटी का मृदुल चेहरा नजर के सामने नाच उठा।
— दृढ़ आवाज में हिमांशी,
‘ क्या बोल रहे हो साहिल, तुम्हारी पत्नी हूं। शब्दों की मर्यादा का तो ख़्याल रखो! ‘
हिमांशी की गर्म आवाज साहिल को कभी नहीं रास आती है झपट कर उसे अपनी ओर खींच कर बिस्तर पर पटक दिया ,
‘ अभी बताता हूं तुम्हें ‘
हिमांशी जिस गति से बिस्तर पर गिरी थी उससे भी दोगूने वेग से उठ कर खड़ी हो गई,
‘ लिसन केयरफुली साहिल, मैं ने तुमसे शादी की है पर यह अधिकार तुम्हें नहीं दिया है कि तू यह तय करें कि मैं क्या करूं और क्या ना करूं ?
हमारी शादी को अभी दो साल नहीं हुए हैं समझ लें तू और अगर सात बर्षों के अंदर मैं कोर्ट में चली गई तो तेरा क्या हश्र होगा ? ‘
‘ और हां एक बात और तू मुझसे दूर ही रह कर पहले मर्यादा में रहना सीख ले फिर आना मेरे पास तब दिल से स्वागत करूंगी उस वक्त ‘।
हिमांशी के इस रूप को देख कर साहिल को अपने अंदर के छिपे हुए पुरुषोचित दंभ, अहं और गुमान में कुछ- कुछ दरकता हुआ लगा।
प्रिय पाठकों आप मेरी इस कहानी की नायिका ‘हिमांशी’ का समर्थन करते हैं या नहीं ? कृपया पढ़ कर अवश्य बताएंगे
#मर्यादा
सीमा वर्मा/ नोएडा