मैं काम नहीं करूँगी – के कामेश्वरी  : Moral Stories in Hindi

अहल्या के पति मनोज कॉलेज में मेथ्स विभागाध्यक्ष के पद पर कार्यरत थे । वे खुद हाउस वाइफ़ थीं । उनके दो बेटे हुए हैं । उनकी क़िस्मत अच्छी नहीं थी या भाग्य का खेल था कि बड़ा बेटा रमेश गूँगा और बहरा पैदा हुआ था ।

उनका छोटा बेटा राघव बहुत ही होशियार था । दोनों ही बच्चे पढ़ लिख गए थे । पिता के अकाल मृत्यु के बाद रमेश को उनके ही कॉलेज में क्लर्क की नौकरी मिल गई थी । मनोज जी का वहाँ नाम अच्छा था तो मैनेजमेंट ने उनके गूँगे बहरे बेटे को नौकरी देकर उनके लिए कुछ अच्छा करना चाहते थे वह किया था ।

अहल्या ने रमेश की शादी एक जान पहचान के परिवार में ही एक लड़की थी लक्ष्मी उससे उसकी मर्ज़ी से ही कर दिया था । लक्ष्मी बहुत ही संस्कारी थी उसने परिवार को बहुत ही अच्छे से सँभाल लिया था ।

राघव ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई गुंटूर में की थी । उसके बाद विशाखा स्टील प्लांट में नौकरी करते हुए ही एम टेक भी कर लिया था और साफ्टवेयर में ही नौकरी ढूँढ लिया था ।

अहल्या के भाई ने कहा कि दीदी राघव के लिए भी रिश्ते आ रहे हैं । उसकी भी शादी करा देंगे तो तेरी ज़िम्मेदारी ख़त्म हो जाएगी ।

अहल्या और राघव के हाँ कहते ही भाई ने रिश्ते ढूँढने का काम शुरू कर दिया था । अहल्या ने राघव से कहा कि शादी के पहले ही तुम्हें बता देती हूँ कि भाई की तनख़्वाह कम है तो उसके परिवार को भी तुम्हें ही सहारा देना पड़ेगा तुम पैसे कमाओगे और रमेश मैं उसके साथ रह लूँगी । तुम दोनों पर मेरा ही हक है समझ गए हो ना!

अहल्या के भाई ने फ़ोन किया कि बहना तुम्हारे घर के पास ही मेरा एक दोस्त रहता है जो स्कूल में शिक्षक है । दहेज नहीं दे सकता है परंतु संस्कारी बेटी को दे सकता है । जिसने बी ए किया है क्यों ना एक बार हम उसे देख लें ।

अहल्या थोड़ी फंसी टाइप की महिला थी उन्हें कोई भी वस्तु हो या लोग जल्दी से पसंद नहीं आते थे । इसलिए चार बार उस लड़की को देखने गए थे कभी बहनों को भेजा तो कभी जेठानी देवरानी फिर अपनी पक्की सहेलियों को अंत में वह अपने भाई और राघव को लेकर गई थी ।

उस समय लड़का लड़की का अकेले में बात करने का रिवाज नहीं था इसलिए बड़ों के बीच बैठकर देख लेते थे बस ।

अहल्या ने एक दो प्रश्न पूछे और जाते हुए कहा कि पत्र लिखेंगे । एक महीना हो गया था लेकिन उनके पास से कोई जवाब नहीं आया था ।

लड़की जिसका नाम रत्ना है उनके घर में सबने सोच लिया था कि शायद उन्हें रत्ना पसंद नहीं आई होगी । दूसरा रिश्ता देख लेते हैं ।

इसी बीच रत्ना की चाची एक दिन उनके घर आई और माँ से कहने लगी थी कि वाह दीदी रत्ना की शादी तय हो गई है और आपने हमें ख़बर तक नहीं होने दी है । उन्होंने कहा कि अरे नहीं छोटी सिर्फ़ देखकर गए थे एक महीना हो गया है कोई ख़बर नहीं आई है । उन्होंने कहा कि लड़के की माँ सबको बता रही है कि उनके बेटे के साथ रत्ना का रिश्ता तय हो गया है इसलिए तो मैं कह रही थी । अजीब औरत है हमें ही नहीं मालूम है कि उन्हें रत्ना पसंद आ गई है ।

उस दिन रत्ना के घर में सबको पता चला कि रत्ना को अहल्या जी ने पसंद कर लिया है सबको बता भी दिया है कि राघव की शादी तय हो गई है । रत्ना के घर वाले ही इस बात से अनजान थे । अहल्या थी ही ऐसी !

एक दिन अचानक अहल्या अपने भाई भाभी के साथ रत्ना के घर पहुँच गई और उनसे शादी की बातचीत की और बिना किसी दहेज के रत्ना को बहू बनाने की बात कही ।

रत्ना के पिताजी वैसे भी दहेज नहीं दे सकते थे । अपनी दो बेटियों को ब्याहने के बाद रत्ना की शादी के लिए उधार माँगने वाले थे लेकिन अहल्या ने उन्हें इस दुविधा से आज़ाद कर दिया था ।

जब सब राजी हो गए तो शादी भी हो गई थी । रत्ना खुश थी कि मायका और ससुराल एक ही शहर में हैं । राघव विशाखापटटनम में नौकरी करता था इसलिए रत्ना वहीं चली गई थी ।

राघव के साथ शादी के एक साल बाद उनके घर ख़ुशियाँ लेकर रिशी आया । रमेश की दोनों ही लड़कियाँ थी तो रिशी सबकी आँखों का तारा बन गया था ।

अहल्या ने राघव से कहकर पति के द्वारा बनाए गए घर पर ही ऊपर एक मंज़िल और बनवाया और खुद ऊपर की मंज़िल पर अकेले ही रहने लगी । उन्हें खाने से पहले कम से कम नौ दस बार और खाने के बाद नौ दस बार कॉफी पीने की आदत थी । इसलिए वे सुबह ही एक बड़े से फ़्लास्क में कॉफी बनाकर रख लेतीं थीं ।

जैसे ही ख़त्म हो जाता था फिर बना लेतीं थीं । खाना वे केरियर मंगा लेतीं थीं रमेश ने कई बार कहा कि हम सब एक ही जगह खाना खाएँगे ऊपर आप रह लेना । अहल्या ने यह बात नहीं मानी । उनके पति का पेंशन आता था उससे उनका खर्च चल जाता था ।

उन्होंने पति के गुजरने के बाद ही बच्चों से कह दिया था कि वे अब काम नहीं करेंगी । मुझसे किसी भी तरह की मदद की उम्मीद नहीं रखना ।

इसी बीच राघव को अमेरिका जाने का मौक़ा मिला तो अहल्या ने उससे कहा कि तू अमेरिका जा बेटा और खूब पैसा कमा । राघव जब अमेरिका जा रहे थे तब रत्ना और रिशि को यहीं छोड़कर गए थे ।

राघव के जाते ही अहल्या ने रत्ना को उसके मायके यह कहते हुए भेज दिया था कि राघव के आने के बाद आना क्योंकि मुझे काम करना पसंद नहीं है साथ ही घर में शांति चाहिए ।

इसलिए रत्ना राघव के वापस आते तक मायके में ही रही । राघव छह महीने के बाद आए और अपनी पत्नी और बेटे को लेकर अमेरिका के लिए निकल गए ।

माँ ने उसे भेजते हुए कहा था कि बेटा तुम्हें जहाँ जाना है जा पर पैसे कमाकर यहाँ भेज दे। रत्ना को आश्चर्य हो रहा था सास की बातों को सुनकर परंतु दुनिया में हर किस्म के लोग रहते हैं उनमें ये भी हैं।

वहाँ जाकर रत्ना भी नौकरी करने लगी । इस बीच उनके घर एक बेटी राशि ने भी जन्म लिया । रत्ना बच्चों और नौकरी के बीच व्यस्त हो गई थी ।

रत्ना के माता-पिता भी आकर कुछ दिन रह कर गए थे । उन्होंने अहल्या को भी बुलाया परंतु उसने साफ मना कर दिया था । उसकी सोच में उसके घर में जो हक उसका है वह और कहीं नहीं होगा साथ ही अपनी सहेलियों और दूसरे लोगों के मुँह से उसने सुना था कि अमेरिका में बहुएँ सास से बहुत सारे काम करातीं हैं और उन्हें काम से सख़्त नफ़रत है । राघव के बार बार कहने पर वह अमेरिका जाने के लिए तैयार तो हो गई थी पर शर्त यह थी कि वहाँ वह अपनी मर्ज़ी से रहेगी काम नहीं करेगी ।

राघव उन्हें लेकर गया था । पहले ही दिन रत्ना ने सारे काम करके बच्चों को स्कूल भेज कर सास के लिए खाना नाश्ता सब रख कर ऑफिस चली गई ।  शाम को आकर देखा तो सारा खाना टेबल पर ही रखा हुआ था। उन्होंने ढक्कन खोलकर भी नहीं देखा था ।

रत्ना के पूछने पर कहा कि ठंडा खाना मैं नहीं खा सकती हूँ और मायक्रोवेव में खाना गरम करना मुझे आता नहीं है ।

उस दिन से रत्ना रोज ऑफिस से लंच के दौरान घर आकर अहल्या को खाना गरम करके देकर फिर भागती थी । अहल्या वहाँ कहीं भी घूमने भी नहीं गई थी । बड़ी मुश्किल से एक दिन राघव उन्हें मंदिर लेकर गया था ।

तीन महीने बाद अहल्या ने राघव से कहा कि बेटा अब मुझे इंडिया छोड़ आ मैं यहाँ नहीं रह सकती हूँ । मेरा अपना घर है मैं वहाँ अपने अंतिम समय आराम से बिताना चाहती हूँ ।

राघव उन्हें इंडिया में उनके घर छोड़ आया था । ऐसा नहीं है कि वे बीमार रहती हैं बस उन्हें काम से नफ़रत है । उनके लिए सुबह दो इडली का नाश्ता आता था नाश्ता करके नहा धोकर फोन पर लग जाती थी अपनी भाभियों बहनों भाई से बातचीत करती थी ।

दोपहर को उनका केरियर आता था अगर सब्ज़ी अच्छी नहीं है तो नीचे लक्ष्मी को आवाज़ लगाती है तो वह उसकी बनाई हुई सब्ज़ी इन्हें देकर इनकी सब्ज़ी ले जाती है । थोड़ी देर आराम फिर टीवी या फिर सहेलियों के संग बातें करना यही उनकी दिनचर्या थी ।

बेटा बहू साल में एक बार इंडिया आते थे तो बहू से आते ही कहती थी कि तुम अपने मायके में रहो मेरा बेटा यहाँ रहेगा । जितने भी दिन वे इंडिया में रहते थे रत्ना बच्चों के साथ मायके में रहती थी राघव माँ के साथ रहता था ।

जाने के दिन रत्ना अपने घर से सीधे एयरपोर्ट पहुँच जाती थी । राघव माँ को लेकर एयरपोर्ट पहुँच जाता था वहीं बहू और बच्चों से मिल कर उन्हें बॉय कह देती थी ।

वह हमेशा राघव को याद दिलाती थी कि राघव तुम पर मेरा पूरा हक है तुम्हारे पिता का पेंशन आता है परंतु मेरी ज़रूरतों की पूर्ति तुम्हें ही करना है । राघव एक आज्ञाकारी बेटे की तरह माँ को कोई तकलीफ़ नहीं होने देता था । उनके अंतिम समय में भी पहले से ही वह माँ के पास मौजूद था । उसकी ही मौजूदगी में अहल्या ने अपनी अंतिम साँसें छोड़ दी थी ।

अहल्या को जिस तरह से जीना था उसने वैसे ही अपनी ज़िंदगी को जिया है ।

दोस्तों हमें लगता है कि इस तरह की माँएँ भी होती हैं क्या ?  जी ऐसी माँएँ भी होती हैं तभी तो यह कहानी बनी है । बाद में उनके ही रिश्तेदारों से पता चला कि उनकी शादी अठारह साल की उम्र में ही हो गई थी । उस समय से पति के जीवित रहते तक उन्होंने इतना काम किया था कि उन्हें काम से ही नफ़रत हो गई थी 

इसलिए उन्होंने काम न करने का फ़ैसला कर लिया था । आप इनकी कहानी को पढ़कर कुछ भी कहना चाहते हैं तो आपकी मर्ज़ी परंतु यह सत्य घटना है पिछले साल ही अहल्या की मृत्यु हुई है । उनकी बहू ने ही मुझे उनके बारे में बताया था तो मैंने सोचा था कि चलो हम इसकी कहानी लिख दें ताकि लोगों को पता चले कि ऐसे भी लोग दुनिया में मिल जाते हैं ।

के कामेश्वरी

2 thoughts on “मैं काम नहीं करूँगी – के कामेश्वरी  : Moral Stories in Hindi”

  1. Main bhi aisi hi hu😅13 sal ki umar se kaam kr rhi hu..yeh hi sochti hu bache apna apna settle ho jaye to main bhi kaam nhi krungi

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