मै दिखा दूंगी बहू को कैसे रखते है… – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

शीला जी एक दबंग महिला थी… सास के रूप में भी थोड़ा कड़क..।   शीला जी की तीन  बहुएँ है.।  जिंदगी ठीक चल रही थी,.. पर बहुओं को हमेशा व्यस्त रखती…. पारंपरिक घर… कितनी भी भूख हो बहुएँ सब को खिलाने के बाद ही खाती थी..। सारा काम करती थी, फिर भी सासुमां की कसौटी पर खरी ना उतरती .।

समय बीता… बहुओं के बच्चे भी शादी योग्य हो गये… शीला जी भी अब  पहले जैसे ना रही..। तीनों बहुएँ अलग हो गई..।शीला जी और उनके पति के साथ छोटा बेटा और बहू रहते… जबकि शीला जी अपनी बड़ी बहू को ज्यादा प्यार देतीं थी और छोटी को डांट ज्यादा मिलती थी… पर नटखट छोटी बहू…. सासुमां की बातों का बुरा नहीं मानती थी..।

मझली बहू एकदम अलग थी वो शांत स्वभाव की थी..।बड़ी और मझली दोनों अलग हो गई किसीने भी सासुमां को अपने साथ रहने के लिए नहीं कहा…। सिर्फ छोटी बहू बोली हम माँ के साथ रहेंगे अलग नहीं होंगे..।

एक दिन सास से मिलने आई बड़ी बहू जो खुद तीन बेटों की माँ थी,ने अपनी देवरानियों से बोला माँ ने तो हमें बहुत परेशान किया.. कभी हमें अपना  नहीं समझा….।मै अपनी बहुओं को इतनी अच्छी तरह से रखूगी की,माँ को समझ में आ जाएगा की बहुएँ कैसी रखी जाती है..।

मझली ने तो कुछ नहीं कहा,पर छोटी जो सासुमां से हमेशा डांट खाती थी बोल पड़ी.. अरे दीदी ये पुरानी बातें हो गई… अब तो माँ भी पहले जैसे नहीं रही… अब तो समय बदल गया,और अब सास बहू मिल कर रहती है। हमारे समय में तो सब सास ऐसी ही थी..। और माँ डांटती भी थी तो उसमें भी उनका प्यार ही था..।

बड़ी बहू बोली तुझे तो इतनी डांटती थी तब भी तू उनकी तरफदारी कर रही..। हाँ दीदी मुझे डांटती जरूर थी,पर मै उसमें भी उनका प्यार देखती थी..। अंदर कमरे में लेटी शीला जी की आँखे बह उठी..। जिस बहू को वो सिर आँखों पर बैठाती  थी, वहीं उनकी कितनी आलोचना कर रही और जिसे हर समय डांटती थी वहीं अंतिम समय में उनका सहारा बनी हुई है..।

कुछ समय बाद बड़ी बहू के बेटे की शादी हुई और बहू घर आ गई… बड़ी बहू अपनी बहू को कितना भी प्यार दे.. वो उनकी आलोचना करने से बाज नहीं आती .।.देर से सो कर उठना, सबको जवाब देना…उसकी आदत में शुमार था..।  अब धीरे धीरे बड़ी बहू को समझ में आया की प्यार के साथ थोड़ा अनुशासन भी जरूरी है..।

अब उन्हे अपनी सास का अनुशासन समझ में आ गया…।और दो पीढ़ी का अंतर भी समझ में आ गया..।आप कितना भी करो दूसरे को कमी दिख ही जाती है ।

 

                   — संगीता त्रिपाठी

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