“सुलभा जीजी क्या कर रही हो? कब से काम में लगी हुई हो, थोड़ा आराम क्यों नहीं कर लेती हो? जब से आई हूं यही देख रही हूं कि आप काम में ही लगी हुई हो, अपने आराम का खुद ही ध्यान रखना होता है, वरना ऐसे तो आप बीमार पड़ जाओगी, फिर घर कौन संभालेगा?” ममता ने अपनी बड़ी बहन को समझाते हुए कहा।
“मेरे बीमार होने से किसी को फर्क नहीं पड़ता है, मै तो बीमार होने पर भी ऐसे ही काम करती हूं, और दवाईयां लेती रहती हूं, अब तो आदत हो गई है, मैं बीमार भी हो जाऊं तो किसी को खबर नहीं लगने देती, अपना घर का काम और सबका काम यूं ही करती रहती हूं।”
सुलभा जीजी की बात सुनकर ममता को आश्चर्य होता है, ‘आप कोई रोबोट या मशीन हो क्या? जो आपको फर्क नहीं पड़ता है।”
“शायद, सुलभा हंसकर बोलती है।
“जीजी, इस तरह तो आपकी तबीयत खराब हो जायेगी, पहले से कितनी कमजोर लग रही हो, ऐसा ही चलता रहेगा तो कोई ना कोई बड़ी बीमारी लग जायेगी, इस तरह से अपनी सेहत का खुद ही नुकसान करना समझदारी तो नहीं है।”
“लेकिन, ममता मै क्या कर सकती हूं, बच्चों की पढ़ाई और कोचिंग क्लासेस है, इनका ऑफिस है, मै बीमार पड़ने पर आराम करूंगी, सिर्फ अपना ध्यान रखूंगी तो फिर घर को कौन संभालेगा? हम गृहणियों को तो बीमार पड़ने का भी हक नहीं है, और अगर किसी वजह से बीमार पड़ भी गये तो आराम करने का तो सोच भी नहीं सकते हैं।” सुलभा अपना काम करते हुए बोले जा रही थी।
“जीजी, अपने लिए खुद ही सोचना होता है, जब आपके बीमार होने से आपको ही फर्क नहीं पड़ता है तो दूसरों को क्या पड़ी है, अपने लिए आप ही नहीं सोचोगी तो कौन सोचेगा?” बीमारी में सिर्फ दवाईयां नहीं आराम और अपनों का साथ भी तो चाहिए, जब पति या बच्चे बीमार होते हैं तो उनको भी आराम मिलता है तो आपको भी पूरा हक है।” ममता ने समझाया।
“अच्छा, ये सब बातें छोड़, मै तेरे लिए क्या स्पेशल बनाऊं? कुछ अच्छा सा बना लेती हूं, सुलभा ने बात पलटते हुए कहा और रसोई में चली गई, मै मलाई कोफ्ता बना लेती हूं, पर देव रात को ये सब नहीं खायेगा, और टीना को तो बिना फ्राई सब्जी चाहिए और रोहित को तो सलाद के साथ चटनी चाहिए, मै देव के लिए वेजिटेबल दलिया और टीना के लिए पास्ता बना देती हूं, अपने लिए ये सब्जी सुलभा हांफते हुए बोली और फिर थोड़ी देर बैठ गई।
“सुलभा जीजी, जब तबीयत ठीक नहीं है तो इतना सब करने की जरूरत नहीं है, मै सबके लिए ही वेजिटेबल दलिया बना देती हूं, आप आराम करिये, एक -एक की पसंद का खाना बनायेगी तो काफी समय लग जायेगा और आप थक भी जाओगे, कल मेरे साथ सुबह डॉक्टर के यहां चलेंगे और टेस्ट करवाकर आयेंगे, और सुलभा को आराम करने को कहकर ममता ने रसोई संभाल ली, उसने सबके लिए सूप और वेजिटेबल दलिया बना दिया।
रात को सबने खाना देखा तो ममता से कुछ नहीं बोले और चुपचाप खा लिया, अगली सुबह ममता अपनी जीजी के टेस्ट करवाकर लाई, विटामिन डी, हीमोग्लोबिन और आयरन की कमी पाई गई, कैल्शियम भी काफी कम था, और शरीर काफी कमजोर था।
रविवार का दिन था, दोपहर के समय सबको लंच चाहिए था पर लंच बना नहीं था, सुलभा अपने कमरे में दवाई लेकर आराम कर रही थी।
“मम्मी, आज खाना नहीं मिलेगा क्या?” बेटी टीना ने खीझते हुए कहा।
“क्या, मम्मी खाने का समय हो गया है, और आप बिस्तर पर पड़े हो” देव ने तुनकते हुए कहा।
“बच्चों, तुम्हारी मम्मी को डॉक्टर ने आराम करने को कहा है तो आज लंच बाहर से मंगवा लो, आज सुलभा जीजी आराम करेगी, और टीना तुम इनके लिए एक कप अदरक की चाय बना दो, और देव तुम कल के लिए बाजार से जाकर सब्जियां ले आओं।” ममता ने बोला।
“ये सब हमारा काम नहीं है, हमे तो हमारा संडे एंजोय करना है।” दोनों एक साथ बोले, और चले गए।
“सुलभा जीजी, आपने देख लिया, जब आप बीमार होकर भी काम करती रही तो बच्चों को भी फर्क नहीं पड़ता है, और यदि आप भी थोड़ा-थोड़ा आराम करती रहती और थोड़ा काम बच्चों से भी करवाती रहती तो बच्चे भी आज आपका दर्द समझते, रोहित जीजू भी सुबह-सुबह खेलने चले गए, किसी को फर्क नहीं पड़ता है।”
“जीजी, हमें खुद की कदर परिवार में करवानी आनी चाहिए, जैसे ही बच्चे थोड़े बड़े हो, उन्हें अपने काम खुद करने देने चाहिए, थोड़ा सहयोग घरेलू कामों में भी लेना चाहिए, जब महसूस हो कि शरीर थक रहा है, बीमार हो तो किसी के कहने से पहले खुद ही आराम कर लेना चाहिए और कह देना चाहिए कि मै बीमार हूं, मुझे आराम करना है।”
सुलभा और ममता बात कर ही रहे थे कि उन्होंने देखा दरवाजे पर रोहित, टीना और देव तीनों खड़े थे, जो उनकी बातें सुन रहे थे।
“सुलभा, तुम आराम करो, आज बाहर से खाना आ जायेगा, रोहित ने सिर सहलाते हुए कहा।
“मम्मी, मुझे माफ कर दो,आप दर्द में भी हमारे लिए काम करती रही, कभी अपनी तकलीफ बताई भी नहीं और ये कहकर टीना चाय बनाने को चली गई।
मम्मी, बाजार के काम आप मुझे बता दिया करो, आप अकेले ही भागादौड़ी करती रहती हो, ये कहकर देव सब्जियां लेने चला गया।
ये सब देखकर सुलभा को बहुत आश्चर्य हुआ, “ये सब कैसे हो गया? मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है।”
ममता हंसने लगी, “जीजी अपनी जगह खुद ही बनानी होती है, चाहे वो घर हो या समाज, हम अपनी चिंता करेंगे तो परिवार भी हमारी चिंता करेगा।”
सुलभा ने अपनी बहन की हां में हां मिलाई और अब उसने अपनी खुद की भी परवाह करना शुरू कर दिया।
धन्यवाद
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना
दवाईयां नहीं दवाइयां होता है आप जैसे हिन्दी की मशाल ले कर चलने वाले भी यदि ऐसी त्रुटियाँ करने लगें तो बेचारे दवा विक्रेताओं का कोई दोष नहीं है ।