आज श्यामली पहली बार मोहित की माँ से मिलने उसके घर जा रही थी।
“माँ!”
कितना तरसी है वह इस शब्द से बंधे रिश्ते को शिद्दत से महसूस करने व जीने को।
तीन वर्ष की थी जब माँ गुजर गई थी। पापा को शायद उसका पालन-पोषण मुश्किल लगा होगा इसलिए उन्होंने नई मम्मी को ये ज़िम्मेदारी सौंप दी। मम्मी ने उसके ज़रूरतों का सदा ख़याल रखा पर उनके बीच माँ-बेटी वाला भावनात्मक रिश्ता कभी नहीं पनप पाया।
माँ की तो उसे शक्ल भी ठीक से याद नहीं! याद है तो बस उनके प्यार की ख़ुशबू और एक धूँधली-सी तस्वीर! और शायद उनकी लोरी भी… क्योंकि वह लोरी बिना किसी के सिखाए ही उसे बचपन से याद थी। पापा बताते हैं कि जब वह छोटी थी तो खुद ही खुद को लोरी सुना कर सुलाती थी!
घर में माँ की कोई तस्वीर नहीं थी। पापा के पुनर्विवाह के समय शायद सब हटा दिया गया था!
कुछ वर्ष पहले मामा की शादी का निमंत्रण आया था। कोई और तो नहीं गया पर मामा स्वयं आकर उसे ले गए थे। खूब चिरौरी करनी पड़ी थी उन्हें पापा की! तब उसने नानी से विनती की थी कि उसे माँ की तस्वीर दिखाए। नानी अलमारी में से अल्बम उठा लाई थीं।
” नयी तो कोई नहीं है बेटा, सब तेरी माँ ले गई थी अपने साथ! ब्याह का अल्बम भी उसी के पास था। बचपन की हैं कुछ, कुछ स्कूल की ग्रूप फ़ोटोज़ हैं। इसमें देख! ये तेरी माँ है।”
बारहवीं कक्षा के चालीस बच्चों के ग्रूप फ़ोटो में से माँ की तस्वीर को ज़ूम कर उसने अपने मोबाइल में क़ैद कर लिया था।
कॉलेज के फ़ाइनल ईयर में थी वह जब पहली बार मोहित के संपर्क में आई। खूब बातें करता वह अपनी माँ के बारे में …. कभी-कभी जलन भी होती उसे।
“कितनी बातें करते हो अपनी माँ के बारे में, फ़ोटो भी तो दिखाओ!”
मोहित झट से फ़ोन खोल उसे अपनी माँ की तस्वीर दिखाने लगा था। न जाने क्या था उस तस्वीर में, शायद कुछ जाना-पहचाना सा …. वह सम्मोहित-सी देखती रह गई थी।
उसने ये बात मोहित को कभी नहीं बताई पर उससे मित्रता बढ़ाने की मुख्य वजह उसकी माँ ही थी। वह उनसे मिलने, उनसे जान-पहचान बढ़ाने को बेताब हो उठी थी।
घर के दरवाजे पर श्यामली को देख मोहित की माँ शोभा के चेहरे पर कुछ अजीब-से भाव आ गए थे।
“क्या माँ को श्यामली पसंद नहीं आई?” मोहित चिंतित हो गया।
कुछ देर बात-चीत के बाद अचानक शोभा ने उसकी माँ का नाम पूछा!
“अंजलि गुप्ता” सुनकर शोभा चुप रह गई।
“पर ये मेरी जननी नहीं हैं। मुझे जन्म देने वाली माँ का नाम……”
“शिखा है!” शोभा बोल पड़ी।
“हाँ….. पर आपको कैसे पता?” आश्चर्यचकित श्यामली और मोहित एक साथ बोल पड़े!
“क्योंकि तुम्हारी शक्ल हुबहू शिखा से मिलती है।”
“पर आप उन्हें कैसे जानती हैं?”
“शिखा स्कूल-कॉलेज में मेरी बेस्ट फ़्रेंड थी। हम बचपन से ही साथ पढ़े थे। तभी तो दरवाज़े पर तुम्हें देख मैं चौंक गई थी। जब अंतिम बार उसे देखा था तो तुम्हारे उम्र की ही होगी, गोद में तुम थीं… दो साल की! फिर सुना कि….” चुप हो गई शोभा।
कुछ देर बाद श्यामली उनसे पूछ बैठी,
“आँटी, आप के पास माँ की कोई तस्वीर है क्या?”
“है न! बहुत सारी! हम दोनों को ही स्टूडीओ जाकर फ़ोटो खिंचाना बहुत अच्छा लगता था!”
अल्बम में क़रीने से लगीं माँ की तस्वीरों को देख श्यामली फूट-फूट कर रोने लगी।
शोभा ने उसे गले से लगा लिया,
“मत रो बेटा, शिखा की आत्मा को दुःख होगा। मुझे पूरा यक़ीन है कि उसने ही हम दोनों को मिलाया है।” कहते हुए शोभा ने श्यामली को गले से लगा लिया। आँखें तो उसकी भी नम हो गई थीं।
“शिखा के जाने के बाद मैंने एक-दो बार मिलने की कोशिश की थी पर तब तक प्रखर ने दूसरी शादी कर ली थी और संपर्क रखने से साफ़ मना कर दिया था। पर अब तू बड़ी हो गई है और मुझे मिल भी गई है। अब मैं तुम्हें कभी माँ की कमी महसूस नहीं होने दूँगी। आज से मैं भी तुम्हारी माँ हूँ।”
श्यामली को लगा जैसे एक चिरपरिचित ख़ुशबू , जिसे वह न जाने कब से ढूँढ़ रही थी, आज उसके तन-मन में समा गई हो!
स्वरचित
प्रीति आनंद