मै भी तो एक बेटी हूं – विनीता सिंह

आज रमेश जी कुर्सी पर बैठे अपनी मां शन्ति देवी से बात कर रहे थे ।तभी वहां प्रिया आई और बोली पापा मां बुला रही है ।शान्ति देवी ने कहा रमेश बेटा जल्दी जा देख। बहू को परेशानी होगी। इसलिए बुला रही है और फिर शान्ति देवी भगवान के हाथ जोड़कर कहने लगी ।

भगवान अबकी बार मेरे घर में बेटा भेज दो। और उन्होंने प्रिया की तरफ ध्यान नहीं दिया तभी रमेश ने कहा मां सुधा की तबीयत ठीक नहीं है हमें अभी हास्पिटल जाना होगा रमेश जल्दी गाड़ी निकाली और अपनी पत्नी को लेकर हास्पिटल गए। प्रिया को पड़ोसी के घर में छोड गए।

प्रिया अपने पड़ोसी के बच्चों के साथ खेलती रही।अगले दिन सब लोग घर पर आये दादी ने तो अपने सिर पर हाथ रख लिया। और बोली हमारे घर एक लड़की थी एक और आ गई मेरे बेटे का वंश कैसे चलेगा।अब तो इस सब का जिम्मेदार सुधा और प्रिया को समझने लगे।

शान्ति देवी और रमेश जी प्रिया से सही से बात नहीं करते हर समय प्रिया को डांटते रहते। प्रिया को अपने मन बहुत दुख होता।वह अपनी मां से कहती तो सुधा जी कहती में तो अपनी बेटियों से बहुत प्यार करती हूं धीरे धीरे समय बीतता गया लेकिन रमेश की आदतों में कोई परिवर्तन नहीं आना उन्हें हमेशा बेटा ना होने का दुःख लगता।

बेटियां पढ लिख रही थी नौकरी ढूंढ रही थी एक दिन पता चला की रमेश जी का एक्सीडेंट हो गया प्रिया ने अपने पिता को अस्पताल में भर्ती कराया उनकी पूरी रात देखभाल की जब रमेश जी को होश आया तो उनके पास प्रिया बैठी हुई थी। डाक्टर साहब आये

और बोले रमेश जी आप बहुत भाग्यशाली हैं की आपकी बेटी ने आज आपकी जान बचा ली अगर यह समय पर नहीं लाती तो शयाद आप इस दुनियां में नहीं होते।जब लायी तब आपके पास से एक मिनट के लिए कही गई नहीं है बस आपको ही देख रही और भगवान से आपके स्वास्थ्य होने की प्रार्थना कर रही है

। डाक्टर साहब की बातें सुनकर रमेश जी ने प्रिया की तरफ देखा और पहली बार प्यार से प्रिया के सिर पर हाथ रखते हुए बोले बेटा प्रिया मुझे माफ कर दे। मैं जिन्दगी भर तुम से नफ़रत करता रहा लेकिन तुम ने आज मेरी जान बचा दी तुम मेरे प्यार के लिए तरसती रही और मैं हमेशा एक बेटा की कामना करता मेरी बच्ची मुझे माफ़ कर दे।

प्रिया ने अपने पिता का हाथ पकड़ कर कहा पापा जी आप कैसी बात कर रहे हैं आप हमारे पापा है और रमेश जी के गले लग गई और बोली पापा जी मैं आपकी मैं भी तो एक बेटी हूं 

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है बेटा बेटी एक समान है आज बेटियां भी अपने देश के विकास में पूर्ण योगदान देती वर्तमान समय में तो अपने सिंदूर तो भारत की दो शूरवीर बेटियों ने ही संभाला था हमे बूटियों को भी प्यार और सम्मान देना चाहिए।

सोचो अगर बेटियां ना हुई तो क्या कोई त्यौहार या यह संसार चल पायेगा 

विनीता सिंह

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