मै अपनी मम्मी के साथ रहूंगा – अर्चना खंडेलवाल  : Moral stories in hindi

“मम्मी, हम आज फिर कहां जा रहे हैं? जो आप जल्दी -जल्दी होमवर्क करने को कह रहे हो?  राहुल ने पूछा।

“राहुल, आज मीना मौसी की शादी की सालगिरह है, बस हमें भी वहीं जाना है, वहां तेरे  नाना, नानी सब लोग आयेंगे, बहुत अच्छा लगेगा, खुश होते हुए 

वीणा ने कहा।

“क्या, मम्मी अभी हम पिछले हफ्ते ही तो सरोज मौसी के भी गये थे, अब फिर से जाना होगा,आप आते-जाते थकती नहीं हो, फिर हर काम पर जाना जरूरी है, मेरी पढ़ाई का समय बर्बाद होता है, राहुल ने झुंझलाकर कहा।

“राहुल, ऐसा नहीं कहते हैं, ये रिश्ते ही तो हमारी पूंजी है, एक दूसरे के घर आने-जाने से प्यार बढ़ता है, अपनापन बढ़ता है, तुझे चलना है, जल्दी से तैयार होजा “।

वीणा, मीना, सरोज तीनों सगी बहने हैं, तीनों में एक-दूसरे की जान बसती है, कोई भी सुख-दुख हो तीनो एक-दूसरे के लिए हाजिर रहती है।

वीणा घर में सबसे बड़ी बेटी थी, उसकी शादी जब हुई तो दोनों छोटी बहनें बहुत रोई थी, दीदी से बिछोह उन्हें बर्दाश्त नहीं हो रहा था।

“ज्यादा मत रो मै तुझे भी अपने शहर ले आऊंगी, वीणा ने विदाई में जाते हुए कहा, फिर दो साल बाद जब मीना के लिए लड़का देखा जा रहा था तो उसी शहर में देखा गया, एक शहर में दोनों बेटियों को देने से उनके  बाबूजी को आराम हो गया, जब भी जाते दोनों बेटियों से एक ही जगह मिल आते थे, फिर सबसे छोटी सरोज के लिए भी दोनों ने अपने ही शहर में लड़का ढूंढ़ लिया, तब से तीनों एक ही शहर में आस-पास रच-बस गई थी।

वीणा जी घर की इकलौती बहू थी, उनके पति एकमात्र संतान थे, उनके सास-ससुर भी उनके पति को बचपन में ही छोड़कर चल बसे थे।

परिवार के नाम पर दोनों बहने ही थी जो एक दूसरे की तकलीफ़ समझती थी और सुख में साथ देती थी। तीनों के बच्चे भी अब बड़े हो रहे थे।

वीण जी का बेटा राहुल पढ़ने में बहुत होशियार था, वो जीवन में बड़ा आदमी बनना चाहता था, राहुल के सपने आसमान से भी ऊपर थे।

“मम्मी, मै इस बार भी अपनी कक्षा में प्रथम स्थान पर आया हूं, अब मै दसवीं में आ गया हूं, मुझे कोचिंग भी जाना होगा, आप पापा से बात करिये”। 

राहुल अपनी मम्मी के बहुत करीब था, उसे जब भी कुछ चाहिए होता था तो वो अपनी मम्मी को ही बोलता था।

वीणा ने अपने पति से कहकर उसकी कोचिंग लगवा दी, वो अपनी पढ़ाई-लिखाई में व्यस्त हो गया। वीणा को अब खाली समय अखरने लगा, इसलिए तीनों बहनें सप्ताह में एक बार किसी एक के घर पर जरूर मिलती थी,  तीनों आपस में अच्छे से समय व्यतीत करती थी, साथ शॉपिंग करती, मंदिर जाती और घुम आती थी।

राहुल का दसवीं का परीक्षा परिणाम आ गया और अब उसने साइंस लेकर बीटेक करने का सोचा, उसके लिए वो जी-जान से मेहनत करने लगा, दो साल पंख लगाकर उड़ गये और राहुल का बीटेक के लिए चयन हो गया,  उसने मन लगाकर पढ़ाई की  और आगे जाकर वो विदेश में बसकर अच्छी नौकरी करना चाहता था।

एक दिन सुबह उसे खबर मिली कि उसके नाना -नानी जी का सड़क दुघर्टना में निधन हो गया है, अचानक से सब हुआ और  वीणा जी और दोनों मौसियों की तो दुनिया ही उजड़ गई, उसने अपनी मम्मी को ढांढस बंधाया। 

“राहुल, मां -बाबूजी का साया सिर पर हमेशा रहना चाहिए, माता-पिता ही तो हमारे भगवान होते हैं, जो हमें जन्म देने के साथ अच्छा जीवन भी देते हैं, बाबूजी थे तो हमें जरा भी चिंता नहीं थी, वो हमें संभाल लेते थे, अब सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ गई, मै घर की बड़ी  बेटी हूं मुझे अपनी दोनों छोटी बहनों को संभालना है, और वो दोनों से लिपटकर रोने लगी।दोनों मौसियों को उसने समझाया ।

कुछ दिनों बाद सब सामान्य हो गया, और वो जी-जान से अपनी पढ़ाई में जुट गया, वीणा जी और उनके  पति भी एक ही सपना देखते थे कि राहुल की विदेश में बहुत हाई पैकेज पर नौकरी लग गई है, चार साल बाद  राहुल की पढ़ाई पूरी हुई। कैम्पस में उसका एक अच्छी कंपनी में प्लेसमेंट हो गया, और कुछ महीनों बाद वो विदेश जाने वाला था।

विदेश जाने की खुशी और इतना अच्छा पैकेज मिलने से राहुल बहुत खुश था , उसने अपने मौसियों के पूरे परिवार को पार्टी में बुलाया था। सभी उसे मन से बहुत बधाई दे रहे थे, वीणा भी बहुत खुश थी, आखिर उसके बेटे का सपना जो पूरा हो रहा था , जो उसने बचपन से देखा था।

राहुल के पापा की छाती गर्व से फूली जा रही थी, उनके बेटे को लाखों का पैकेज जो मिला था, सभी हंसी खुशी रात को सोये थे। सुबह राहुल उठा तो देखा कमरे में हलचल नहीं नजर आ रही है,  मम्मी तो पूजा कर रही थी, पापा भी इस समय उठकर अखबार पढ़ने लग जाते हैं, वो कमरे में गया, उसने अपने पापा को हिलाया तो  उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया, उसके चेहरे की हवाइयां उड़ गई।

” मम्मी…. मम्मी…. उसने वीणा जी को आवाज लगाई, वो दौड़कर आई , पर उनके पति ने कोई जवाब नहीं दिया, फिर उन्होंने तुरन्त ही दोनों बहनों को फोन लगाया, राहुल ने एंबुलेंस बुलाई, एंबुलेंस से पहले दोनों बहनें अपने पतियों के साथ में चली आई ।

डॉक्टर ने चेकअप करके उन्हें मृत घोषित कर दिया, रात को साइलेंट हार्ट अटैक की वजह से उनकी जान चली गई, वीणा जी इस सदमे को सहन नहीं कर पाई, राहुल के पैरों से भी जमीन सरक गई। 

सरोज जी और मीना जी ने दोनों को संभाला, राहुल के लिए बड़ी विकट स्थिति हो गई थी, उसके विदेश जाने के दिन पास आ रहे थे, कंपनी से मेल भी आ गया था, और वो मम्मी को अकेले छोड़कर जाना नहीं चाहता था, फिर अभी-अभी तो पापा गये थे।

अपने बेटे को चिंता में देखकर वीणा जी सब समझ गई,” राहुल तूने बचपन से जिसका सपना देखा है, वो सपना पूरे करने का समय आ गया है, तू चला जा मेरी चिंता मत कर, मुझे तो यहां तेरी मौसियां सरोज और मीना संभाल लेगी, ये दोनों है तो मुझे किसी चीज की कमी महसूस नहीं होगी

मां -बाबूजी और तेरे पापा के जाने के बाद अब मुझे इन दोनों का ही सहारा है, तू चला जा मेरी वजह से इतना तनाव मत लें।

राहुल ने पन्द्रह दिनों में देखा उसकी मौसियां अपने परिवार सहित उनके दुख में शामिल थी, मौसा जी भाग-भागकर बाजार के काम निपटा रहे थे, मौसियों की बेटे-बेटी भी बराबर लगे हुए थे, राहुल को तो किसी काम के हाथ ही नहीं लगाना पड़ा था, राहुल ने ये भी देखा, ” कौन कितना पैसा लगा रहा है, उसका भी कोई हिसाब नहीं था, सब जी-जान से लगे हुए थे।

लेकिन उसे भी जाना था और वो वीणा जी को छोड़कर विदेश नौकरी करने चला गया, इतना हाई पैकेज था और साथ में इतनी सुविधाएं थी, वो ये सोचकर गया था कि वो वहां पर कुछ समय नौकरी करेगा फिर अपनी मम्मी को भी वहां पर ले आयेंगा, और सदा उनके साथ में रहेगा।

कुछ महीनों की नौकरी के बाद वो वहां पर सैटल हो गया, कुछ महीनों बाद वो वापस से भारत आया, वीणा जी ने अपनी बहनों को भी बुलाया था, सबसे मिला और उसने कह दिया कि वो मम्मी को लेने आया है और लेकर ही चला जायेगा, ये घर बेच देंगे, और सदा के लिए वहीं पर रहेंगे।

उसकी बात सुनकर वीणा जी हैरान रह गई,” राहुल मै तेरे साथ नहीं चलूंगी,  वहां विदेश में मेरा कौन है? 

कोई नाते-रिश्तेदार भी नहीं है, कभी कोई दुख-तकलीफ आयेगी तो साथ देने वाला कोई नहीं होगा, और कभी खुशी आयेगी तो उसमें शामिल होने वाला भी कोई नहीं होगा, मै वहां नहीं जाऊंगी।

मेरी दोनों छोटी बहनों को भी मेरा ही सहारा है, मां -बाबूजी के जाने के बाद अब मेरा घर ही इनका मायका है, मै ये घर बेचकर इनसे इनका मायका नहीं छीन सकती हूं, मै ऐसा नहीं कर सकती । 

मै यहां बहुत खुश हूं, मुझे कोई तकलीफ़ नहीं है, तू वहां रह खुश रहें, बस ये ही चाहती हूं”।

“लेकिन मम्मी, मुझे भी आपकी जरूरत है, मै वहां एकदम अकेला हूं, जब शाम को घर आता हूं तो घर खाने को दौड़ता है, मुझसे बात करने वाले दोस्त तो बहुत है पर दुख में साथ देने वाला कोई नहीं है, कुछ दिनों पहले मुझे बुखार आया था, पर मेरा सिर सहलाने के लिए वहां कोई नहीं था, किसी ने नहीं पूछा कि मैंने दवाई ली भी है या नहीं, खाना खाया भी है नहीं, मुझे उस वक्त आपकी बड़ी याद आई, आप साथ में होती तो मेरा कितना ख्याल रखती”, आपको मेरे साथ चलना ही होगा ‘।

“राहुल, वो ना देश अपना, ना ही अपनी भाषा, रहन-सहन, पहनावा , खान-पान , रिवाज सब कुछ अलग है, तू तो वहां ऑफिस चला जायेगा, पर मै अकेली वहां क्या करूंगी? मुझे तो अपने देश में ही रहने दें, तेरी मौसियां है ये मेरी बहनें भी है और मेरी बेटियां भी है, ये मेरे साथ है, मै यहां का जीवन छोड़कर वहां नहीं जा पाऊंगी “।

“मम्मी, वहां कंपनी से शानदार घर मिला है, कार मिली है, इतनी सुविधाएं मिली है, आप वहां पर चलकर तो देखिए आपको बहुत अच्छा लगेगा, इतने घुमने-फिरने की जगह है, आप देखती ही रह जाओंगी “।

“बेटा, मेरा मन नहीं मानता है, शानदार घर का क्या करूंगी? जब वहां कोई साथ में हंसने-बोलने वाला ही नहीं होगा, बड़ी सी कार का भी मुझे मोह नहीं है, और सुविधा तो मुझे अपने देश में ही मिलेगी, वहां जाऊंगी तो असुविधा ही हो जायेगी, यहां परिवार है, रिश्ते-नाते है, मै ये सब छोड़कर अनजान धरती पर नहीं बस सकती हूं ‘ फिर  यहां कभी बर्थडे पार्टी, कभी एनीवरसरी पार्टी, कभी मुंडन तो कभी सुंदरकांड का पाठ, अब महीने दो महीने में कुछ ना कुछ होता ही रहता है,  विदेश से तो इन सबमें शामिल होने नहीं आ पाऊंगी, उल्टा  वहां रहकर मेरा मन रोज ही जलेगा,  मै तेरी शादी  करा देती हूं फिर तो तुझे अकेलापन महसूस नहीं होगा, वीणा जी ने अपना फैसला सुना दिया ।

अपनी मम्मी की बात सुनकर राहुल ने तुरन्त जवाब दिया,”  मम्मी जब आप अपना देश अपने रिश्तेदार, अपना घर, अपनी जमीन नहीं छोड़ सकती तो मै भी वापस नहीं जाऊंगा, मै भी अपनी मम्मी के साथ यही रहूंगा, नौकरी तो मुझे यहां भी मिल ही जायेगी, जहां मेरी मम्मी रहेगी वहीं पर मै रहूंगा, मै शादी करके चला जाऊंगा, पर मम्मी तो यहां अकेली रह जायेगी, वो अपनी बहू पोते-पोतियों का सुख नहीं देख पायेंगी।

मै अभी जाऊंगा और अपना सामान लेकर वापस यही इसी घर में आपके साथ रहने आ जाऊंगा “।

“राहुल, ये क्या कह रहा है? अपना बना बनाया करियर, इतना हाई पैकेज तू कैसे छोड़ सकता है, अपना सब-कुछ, इतनी अच्छी कंपनी में नौकरी ऐसे ही नहीं मिलती है, 

तू अपनी मम्मी के लिए ये सब नहीं करेगा, मै तुझे ऐसा नहीं करने दूंगी,” वीणा जी ने उसे समझाना चाहा।

“मम्मी, अब मैंने फैसला कर लिया है, आप वहां मेरे साथ नहीं आ सकते हो, तो मै आपके साथ यहां रहूंगा, आपको भी तो मेरी जरूरत रहेगी, हम दोनों  यहां अपने घर, अपने देश में अपने रिश्तेदारों के साथ में रहेंगे “।

अपने बेटे का फैसला सुनकर वीणा जी की आंखें भर आई, उन्होंने उसे गले लगा लिया,” ऐसे कौनसे पुण्य किये थे जो तूने मेरी कोख से जनम लिया है, बेटे तो विदेश के लिए अपनी मां को छोड़ देते हैं और तूने मां के लिए विदेश की नौकरी, सुख सुविधाएं, सब कुछ छोड़ दिया, ऐसा तो कभी नहीं सुना।

 बच्चे छोटे होते हैं तो मां के पास ही रहते हैं, पर जैसे-जैसे वो बड़े होते हैं, अपना करियर बनाते हैं, तब वो मां से दूरियां बना लेते हैं, उनकी अपनी एक दुनिया हो जाती है, जिसमें अपने ही माता-पिता के लिए कोई जगह नहीं होती है, कुछ उन्हें छोड़ देते हैं, कुछ उन्हें वृद्धाश्रम पहुंचा देते हैं, कुछ उनकी परवाह नहीं करते हैं, विदेश में बसने के साथ वो सारे नाते तोड़ लेते हैं, पर  बच्चे ये भुल जाते हैं कि मां के लिए तो सदैव बच्चे ही उनकी दुनिया होते हैं, वो हमेशा उनके ही साथ रहना चाहते हैं, बुढ़ापे में तो सबसे ज्यादा अपने बच्चों की  ही जरूरत होती है “।

” कितनी ही बूढ़ी आंखें बच्चों से मिलने के लिए, उनके साथ रहने के लिए तरसती है , केवल फोन पर बात कर लेने से और वीडियो कॉल कर लेने से बच्चों की जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती है, जिस तरह बचपन में बच्चे मां के बिना रह नहीं पाते हैं, उसी तरह मां को भी उनकी जरूरत होती है पर दोनों के बीच करियर के कारण दूरियां आ जाती है , वो माता-पिता के लिए उपहार, पैसे भेज देते हैं पर खुद कभी उनके पास रहने को नहीं आते हैं”।

“तूने तो मुझे सबसे अनमोल  उपहार दिया है, तू तो हमेशा के लिए मेरे पास रहने को आ गया है, मै अपनी खुशी बयान नहीं कर सकती हूं”, राहुल के फैसले से सभी रिश्तेदार भी बहुत खुश हो गये, आज उनके घर का सदस्य वापस घर आ गया है, राहुल फिर से विदेश गया, अपना सारा सामान ले आया और वहीं उसी शहर में एक अच्छी सी नौकरी ढूंढ ली, उसके एक सही निर्णय ने वीणा जी का बुढ़ापा सुधार दिया, उन्हें उनका बेटा वापस मिल गया।

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक अप्रकाशित रचना 

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