ट्रेन एक स्टेशन पर रूकी, लगभग सारे यात्री उतर चुके थे, कुछ यात्री थे जो मोबाइल में व्यस्त थे, कुछ गाने सुन रहे थे तो कुछ वीडियो देखकर समय बिता रहे थे, सबको अपनी मंजिल के आने का इन्तजार था पर सरिता जी को कोई जल्दी नहीं थी, वो चाह रही थी कि ट्रेन हर स्टेशन पर काफी देर तक रूके और वो आराम से घर पहुंचे, घर से प्यार , सम्मान मिलता है तो घर जाने की जल्दी मची रहती है,
और घर से तिरस्कार और अपमान के तानें सुनने को मिलते हैं तो घर जाने का मन ही नहीं करता। अपने ही विचारों में खोई सरिता जी, बहुत ही बेचैन हो रही थी। ट्रेन चल पड़ी , ट्रेन से ज्यादा तेज गति से उनका मन भाग रहा था। बुआ के पोते की शादी से लौट रही थी, सभी मायके वालों से मिली, कितनी अच्छी तरह से सबके साथ चार-पांच दिन बीत गये, घर आकर वो ही अकेलापन और तनाव!!
वो कभी नहीं चाहती थी कि वो अपने बेटे के घर में रहें, बहू के तेज स्वभाव और कर्कश बोली से उनका कलेजा छ्लनी हो जाता था पर क्या करती, मां है सब सहन करना होता है।
जब से रमेश के पापा उन्हें छोड़कर गये है वो जीना भुल गई है, दो बेटियां की शादी कर चुके थे, रमेश की शादी तय हो गई थी, शादी के एक दिन पहले उनके पति की हृदयाघात से मृत्यु हो गई। शादी के घर में मातम पसरा था, इकलौते बेटे की शादी में ना तो नाच-गाना हुआ ना ही बैंड-बाजा बजा, शांति और सादगी से शादी कर दी गई।
बहू पूनम घर आई, जो हमेशा दुखी रहने लगी थी कि मेरी शादी में ही ये अड़चन आनी थी, कितनी उम्मीद थी शादी में ये करेंगे वो करेंगे पर सब पर ससुर जी पानी फेर गये।
रमेश की अनुपस्थिति में वो सरिता जी को ताना देती रहती, उन्हें लगता था कि बहू घाव पर मरहम लगायेगी पर पूनम तो रोज तानें देकर घावों को हरा कर देती। उसे अपनी सास का दर्द समझ नहीं आता था। रमेश को भी सब मालूम था कि घर में क्या हो रहा है पर वो कभी मुंह नहीं खोलता था।
पूनम यही कहती कि बुढ़ापा ही तो है, निकल जायेंगा, इसमें इतना दुखी होने की और रोज आंसू बहाने की क्या जरूरत है। सरिता जी के नाम घर था, पर घर में पूनम की चलती थी, वो सरिता जी को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी।
रमेश का स्थानांतरण हो गया, उसे नये शहर में आना था, वो मां को अकेला नहीं छोड़ सकता था, कुछ सामान लिया बाकी का एक कमरे में बंद करके, मकान किराए पर चढ़ाकर वो मां और पूनम को शहर में ले आया।
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अपना ठिकाना छोड़कर सरिता जी खुश नहीं थी, उन्हें लगता था कि अभी तो वो स्वस्थ हैं, अकेली भी रह लेंगी, पर रमेश को किराये का लालच था और पूनम को काम में मदद मिल जाती थी।
एक दिन उन्होंने सुन लिया कि रमेश और पूनम गांव का घर बेचने की योजना बना रहे थे ताकि वो शहर में घर ले सकें, अभी तक पूनम की गोद भी हरी नहीं हुई थी।
पूनम ने आकर किटी पार्टी ज्वाइन कर ली, वो सहेलियों के साथ घुमती रहती थी और सरिता जी रसोई संभालती थी, घर में पूनम की पसंद का ही खाना बनता था, पूनम की मर्जी से ही घर चलता था।
सरिता जी को यही बंधन पसंद नहीं आता था, सालों से वो अपनी मर्जी से रसोईघर चलाती थी, अब काम तो वो रसोई में करती थी पर उन्हें अपने हिसाब से कुछ बनाने की आजादी नहीं थी।
जिंदगी चल रही थी, उन्हें अपना पुराना घर बहुत ही याद आता था, अभी शहर आने में वक्त था, ट्रेन फिर उनके गांव वाले स्टेशन पर रुकी थी, सरिता जी ने कुछ नहीं सोचा और स्टेशन पर उतर गई, वहां से उतरकर अपने घर आ गई।
अपने घर में नीचे किरायेदार थे, ऊपर का एक कमरा बंद था, उन्होंने उसका ताला तुड़वा दिया और रात को सोने लायक जगह बना ली, सुबह वो एक नई ताजगी के साथ उठी, किरायेदार ने चाय-नाश्ता करवा दिया।
उन्होंने कबाड़ वाले को बुलाया और कमरे का अनावश्यक सामान बेच दिया और कुछ सामान पड़ोसियों को दे दिया, शाम तक उनके कमरे में अच्छी जगह हो गई, आज किरायेदार को किराया देना था तो उन्होंने ने वो किराया खुद रख लिया, रमेश के अकाउंट में जमा नहीं करवाया क्योंकि घर उन्हीं के नाम पर था।
उधर रमेश परेशान हो रहा था, मां पहुंचने वाली थी पर आई नहीं, मां ने फोन भी बंद कर रखा था। किराये के लिए किरायेदार के पास फोन किया तो रमेश को पता लगा कि मां तो गांव के घर पहुंच चुकी है।
दो दिन रमेश को छुट्टी नहीं मिली तब तक सरिता जी ने रसोई का सामान खरीद लिया था, उसी कमरे के कोने में अपने लिए एक छोटी सी रसोई बना ली, सामने छत पर अपने द्वारा लगाये गये पौधों को संभाला, और दो दिन सूकून से रही।
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रविवार को सुबह-सुबह रमेश और पूनम वहां पहुंच गए,” मां ये क्या तरीका है?? हम दो दिनों से परेशान हो रहे हैं और आप यहां मजे कर रही हो, अपने बच्चों की तकलीफ का अंदाजा भी नहीं है आपको??
हद करते हो, और ये कमरे का ताला तोड़ दिया, अपनी मर्जी से सामान बेच दिया, नया सामान भी ले लिया,, किराया भी खुद रख लिया। ऐसा कोई अपने बच्चों के साथ करता है!!!
बेटा आवाज नीचे कर!! वो तेज स्वर में बोली,” मां हूं तेरी, तुझे जन्म दिया है, पालन-पोषण किया है, तेरी हर तकलीफ में तुझे संभाला है, बीमारी में रात-रात भर जगी हूं, तेरी हर इच्छा पूरी की है,तेरी पत्नी की खरी-खोटी सुनी है, तूने कभी आकर पूछा है,” मां आपके क्या हाल है? आपको क्या तकलीफ़ है? आप इतनी उदास क्यों रहती हो? कभी तूने मेरी तकलीफ समझी। दो दिन तू मां के लिए परेशान रहा क्योंकि तेरी पत्नी को रसोई में काम करना पड़ा।
रमेश” तू ये मत भूल ये घर मेरे नाम है तो इसका किराया भी मुझे ही मिलेगा और उससे मैं अपना महीने के राशन का इंतजाम कर लूंगी, तेरे घर में बंदी की तरह रहना नहीं चाहती हूं, मैं अपनी बची-खुची जिंदगी आराम से, सूकून, आत्मसम्मान के साथ बिताना चाहती हूं, मां हूं तेरी तूने तो मुझे एकदम से ही बेसहारा कर दिया है। तेरे घर की मुझे जरूरत नहीं है, औरत के सर पर एक छत तो होनी चाहिए, पर मेरे पति मेरे लिए वो छत देकर गये है, तू कान खोलकर सुन ले, ‘मैं अपने पति के घर में रहूंगी, मुझे तेरे आसरे की जरूरत नहीं है।
मैं अपने इस घर में खुश हूं, इसी कमरे में रहकर खुश हूं, नीचे किरायेदार है, बरसों के पड़ोसी हैं, ये सब मिलकर मुझे संभाल लेंगे , तुझे मेरी चिंता करने की कोई जरूरत ही नहीं है।
पूनम, तुम अभी तक मां नहीं बनीं हो, जिस दिन मां बनोगी उस दिन समझ आयेगा कि मां का अपने बच्चों से क्या रिश्ता होता है??
सरिता जी के मुंह से ये बातें सुनकर रमेश और पूनम के होश उड़ गए, उन्होंने माफी मांगी और उनको अपने साथ चलने को कहा।
बरसों बाद पहली बार अपने लिए सोचने वाली सरिता जी ने साथ जाने से इंकार कर दिया, तुम दोनों का जब भी मन हो मुझसे मिलने आ सकते हो, तेरी मां का घर तुम दोनों के लिए सदा खुला है, पर ये उम्मीद मत रखना कि मैं ये घर तुम्हें देकर जाऊंगी, दोनों बेटे-बहू मुंह लटकाकर चले गए।
सरिता जी उस एक कमरे में अपनी जिंदगी खुश होकर बिताने लगी।
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना
बेटियां छठवां जन्मोत्सव कहानी -5
Nice story.
Absolutely