Moral Stories in Hindi : जिस गति से सिद्धार्थ के हवाई जहाज की रफ्तार थी उससे भी तेज उसके मन की विचारों की उड़ान थी! आज वह अमेरिका से 4 साल पूरे करके भारत अपने देश, अपने माता-पिता के पास वापस लौट रहा था.. हमेशा हमेशा के लिए! किंतु उसने यह बात मम्मी पापा को नहीं बताई क्योंकि वह स्वयं जाकर उनको यह बात बताने वाला था, और इस सरप्राइज की खुशी उनके चेहरे पर देखना और महसूस करना चाहता था!
5 साल का था सिद्धार्थ जब वह एक अनाथ आश्रम में था! पता नहीं कोई उसे कब वहां छोड़ गया था! जब उसकी आंखें खुली होश आया तब वह अन्य बच्चों के साथ उस अनाथ आश्रम में था !जब भी वहां किसी बच्चे को गोद लेने कोई माता-पिता आते तो वह भी अच्छे से तैयार होता और सोचता की कोई माता-पिता मुझे भी ले जाएंगे क्या..?
किंतु हर बार ऐसा होता, उसे कोई लेकर नहीं जाता! वह भगवान से शिकायतें करता कि भगवान.. क्या मैं हमेशा इस अनाथ आश्रम में रहूंगा? क्या कभी मेरे मम्मी पापा मुझे लेने नहीं आएंगे? क्या मेरा कभी कोई परिवार नहीं होगा? भगवान जी… मैं अनाथ हूं, इसमें मेरी क्या गलती है? प्लीज भगवान जी.. मेरे लिए भी मम्मी पापा को भेजिए! सिद्धार्थ के लिए त्यौहार का मतलब होता था ,
जब कभी कोई अपने बच्चों का जन्मदिन मनाने वहां आते या कोई बड़ा आदमी कभी-कभी उनके लिए फल मिठाई कपड़े वगैरा लेकर आते आते! बस नए कपड़े, नए खिलौने, और अच्छा खाना, बस इसी को वहां के बच्चे त्यौहार समझते थे! कोई लाड लड़ाने वाला वहां नहीं था! सभी बच्चे अपना काम स्वयं करते, और जैसा भी मिलता खाते, रहते, खुश रहते !
अधिकांश बच्चों को सिद्धार्थ की तरह यह उम्मीद होती की, एक दिन उनका भी कोई घर परिवार होगा और इसी उम्मीद में जब भी कोई नया व्यक्ति आश्रम में प्रवेश करता ,उसे आशा भरी नजरों से देखते! आखिरकार भगवान जी ने उसकी शिकायत सुन ली, जब अविनाश जी और मालती जी ने अपने बेटे के रूप में सिद्धार्थ का चयन किया! जिस प्रकार सिद्धार्थ अपने परिवार के लिए तरस रहा था, उसी प्रकार अविनाश और मालती जी भी एक बच्चे के लिए तरस रहे थे !
अविनाश जी बड़े कारोबारी और सह्रदय इंसान थे! किंतु सारे ऐश्वर्य, आराम, सुख सुविधाओं के बावजूद उनका घर एक बच्चे की हंसी से वीरान था! सिद्धार्थ को पाकर सिद्धार्थ और अविनाश मालती जी की भगवान से जो शिकायत थी वह पूरी हो गई थी! अविनाश और मालती जी ने सिद्धार्थ को किसी चीज की कोई कमी नहीं होने दी! बहुत नाजो से पालकर बड़ा किया, और उसमें सारे अच्छे संस्कार भी प्रदान किए!
सिद्धार्थ के सारे सपने पूरे हो गए थे! 4 साल की डिग्री की पढ़ाई के लिए अविनाश जी ने उसे अमेरिका के बहुत ही अच्छे कॉलेज में दाखिला दिलवाया! हालांकि मालती जी ने काफी विरोध किया! इकलौता बेटा है.. उसे भी तुमने विदेश भेज दिया! यहां पर क्या अच्छे कॉलेज की कमी है? और अगर सिद्धार्थ भी अन्य बच्चों की तरह विदेश में ही बस जाएगा, तो हम तो फिर से अकेले रह जाएंगे?
आज के हालात देखते हुए मालती जी का डर भी सही था! तब अविनाश जी मालती को समझाते.. देखो अभी सिद्धार्थ की इच्छा है, कि वह विदेश जाकर पढ़ाई करेगा, और फिर भारत में ही किसी अच्छी कंपनी में नौकरी करेगा! हम उसे उसका सपना पूरा होने से कैसे रोक सकते हैं! किंतु मालती जी का मन किसी अनहोनी की आशंका से हमेशा घबराता ,क्योंकि आए दिन यही सुनती थी.. की जो एक बार विदेश चला गया वह वही का होकर रह जाता है!
खैर.. जैसे तैसे उन्होंने अपने मन को समझा लिया! आज सिद्धार्थ का जन्मदिन था! हर वर्ष की भांति वह सिद्धार्थ का मनपसंद केक बना रही थी, तब अविनाश जी ने मजाक में कहा.. जब सिद्धार्थ है ही नहीं ..तो तुम क्यों उसके लिए केक बना कर रखती हो? किंतु मालती जी को पूरा विश्वास था की, सिद्धार्थ जरूर आएगा! और कुछ समय बाद ही उन्होंने देखा.. सिद्धार्थ भागता हुआ आ रहा है,
और आते ही मां के गले से लिपट गया! और मम्मी पापा को वह खुशखबरी सुनाने लगा, जिसके लिए वह काफी समय से बेचैन हो रहा था! जब अविनाश और मालती ने हमेशा के लिए उसके भारत रहने के फैसले को सुना ,तो वह आज सातवें आसमान पर थे! खुशी से उनके पैर जमीन पर ही नहीं टिक रहे थे! तब सिद्धार्थ बोला.. मम्मी पापा ,जिस प्रकार आप अपने बच्चों के लिए तरसते हो,
मैं भी अपनी मम्मी पापा के साथ के लिए तरस रहा हूं !मैं आप दोनों को छोड़कर कभी भी, कहीं नहीं जाऊंगा! भगवान से इतनी शिकायत करने के बाद मुझे आप दोनों भगवान के रूप में मिले हो, तो मैं यह खुशी कैसे छोड़ दूं! यह सुनकर अविनाश और मालती जी का सर गर्व से ऊंचा हो गया,और उन्होंने अपने बेटे को गले लगा लिया! आज भगवान से उनकी शिकायत समाप्त हो गई! सिद्धार्थ मन ही मन कह रहा था.. हां.. मैं अनाथ नहीं हूं, मैं अनाथ नहीं हूं!
हेमलता गुप्ता ( स्वरचित)