महत्व और समर्पण – बालेश्वर गुप्ता : Moral stories in hindi

    अरे भागवान, नौकर है तो, मेरा सब कुछ करता तो है,फिर क्यूँ मेरे पास ही बैठी रहती हो?मेरा क्या है,मैं तो बुझता चिराग हूँ।

     ऐसा क्यूँ बोलते हो,क्यूँ मेरा हक समाप्त करते हो?मेरे जीवन मे तो तुम ही हो,कैसे तुम्हे छोड़ दूं अकेले।

          दोनो के विवाह को पचास वर्ष इसी माह पूरे होने वाले थे।उनका बेटा दीप कह रहा था,पापा मम्मी की शादी की गोल्डन जुबली है,धूमधाम से मनायेंगे।अर्पिता ने अपने पति हरीश से यह बात बताई तो हरीश ने कोई प्रतिक्रिया नही दी,बस एक ओर सिर कर लिया।अर्पिता ने देखा हरीश की आंखों से पानी बहते हुए।हरीश के दर्द को वह पहचानती थी,आखिर 50 वर्ष से वह साथ थी।अर्पिता बोली कुछ नही,बस अपने आँचल से हरीश के आंसू पोछते हुए उसके बालो में उंगली फहराने लगी।हरीश अर्पिता के मनोभावों को समझते थे,पर करे तो क्या करे?

      एक वर्ष हो गया हरीश के लकवाग्रस्त हो जाने को।एक हृष्ट पुष्ट शरीर का मालिक हरीश बेदम होकर रह गया,आश्रित एक दम आश्रित। अपने विद्यार्थी काल मे हरीश एक हैंडसम व्यक्तित्व का स्वामी था,इसके अतिरिक्त वह राज्य स्तर का टेबल टेनिस का खिलाड़ी,प्रखर वक्ता उसके व्यक्तित्व में चार चांद लगाते थे।

कॉलेज की लड़कियो में हरीश से मित्रता करने की होड़ रहती।हरीश सभी से अपनत्व के साथ बातचीत तो करता,पर अपनी मर्यादा की सीमा में।फ्लर्ट करना उसके चरित्र में था ही नही।एक वाद विवाद प्रतियोगिता में उसका सामना अर्पिता से हो गया।सौम्य अर्पिता वक्ता तो शानदार थी,पर उससे इतर संकोची स्वभाव की भी थी।इस प्रतियोगिता में संयोगवश प्रथम स्थान अर्पिता को मिला तो द्वितीय स्थान हरीश को।किसी को कल्पना तक न थी कि हरीश द्वितीय स्थान पर खिसक जायेगा।

हरीश को निराशा हुई तभी संकोच के साथ अर्पिता ने उसके पास आकर कहा कि हरीश जी पता नही ये पुरुस्कार मुझे कैसे मिल गया।हमने तो हरीश जी   माइक पर बोलना भी आपको देख कर सीखा है।हरीश अर्पिता के शब्दों से हतप्रभ रह गया।इतनी शालीनता,उसके लिये अकल्पित थी।हरीश बस इतना कह पाया नही नही अर्पिता जी आज आप मुझसे बेहतर थी,आपको खूब खूब बधाई।

इस घटना के बाद से हरीश की निगाहें कॉलेज में अर्पिता को ढूंढती रहती।बस देखते रहने की ललक हरीश को घर मे भी परेशान करती।उधर अर्पिता की भी कमोबेश यही स्थिति थी।शायद दोनो के बीच मौन प्रेम की ये शुरूआत थी।इजहार कौन और कैसे करे ये किसी को पता नही था।

उस दिन हरीश को कॉलेज में जब अर्पिता कहीं दिखाई नही दी तो वह बेचैन हो गया।कॉलेज के हर कोने में,लाइब्रेरी, कैंटीन सब जगह हरीश अर्पिता को ढूंढ रहा था,किसी से पूछने की हिम्मत नही पड़ रही थी,पर व्याकुलता चरम पर थी।अगले दिन भी अर्पिता का कहीं पता नही था,हरीश को कोई उपाय सूझ ही नही रहा था कि कैसे अर्पिता के बारे में जानकारी हासिल करे।तीसरे दिन जाकर अर्पिता दिखायी दी तो हरीश अपने को रोक नही पाया और अनजाने में ही दौड़ता हुआ अर्पिता के पास पहुंच गया।

भावावेश में बोला अर्पित तुम कहाँ खो गयी थी,दो दिनों से तुम्हे मैंने कहाँ कहाँ नही खोजा?आश्चर्य से देखते हुए अर्पिता बोली वह तो मुझे एक फैमिली शादी में जाना पड़ा।आपको मुझसे कुछ काम था क्या? हकलाते हुए हरीश को लगा उसकी चोरी पकड़ी गयी है।फिरभी बोला बस ऐसे ही तुम दिखाई नही दी थी ना,इसलिये।

अर्पिता ने हरीश की आंखों में आंख डालकर कहा क्या बस इसीलिये?कुछ आगे नही बोलेगो हरीश?माइक पर तो खूब बोलते हो?आगे बढ़ हरीश ने अर्पिता का हाथ पकड़ कर कहा अर्पित अब ऐसे मत जाना।

      एक प्रकार से दोनो का यह पहला एक दूसरे के लिये प्रेम का इजहार था।धीरे धीरे हरीश और अर्पिता की नजदीकियां बढ़ने लगी,जब भी अवसर मिलता दोनो एक साथ ही समय व्यतीत करते।ऐसे आखिर कब तक चलता।हर मार्ग अपनी मंजिल तक पहुँचता ही है, सो हरीश ने ही पहल कर अपनी माँ से अर्पिता के बारे में बात की और बताया कि वे एक दूसरे से बेइंतिहा प्यार करते है।वे शादी करना चाहते हैं।

मां भौचक्की रह गयी,उसे विश्वास ही नही हो रहा था कि उनका बेटा प्रेम विवाह की बात अपनी माँ से करेगा।उन्होंने इस शादी की संभावना से ही साफ इंकार कर दिया।हरीश अंदर से कही टूट सा गया।अब वह गुमसुम सा रहने लगा था,वह समझ नही पा रहा था कि मां पिता को कैसे राजी करे।उनकी अनुमति के बिना शादी करने को उसका मन गवाही नही दे रहा था। बेटे की वेदना को माँ पढ़ तो रही थी पर समाज और रुढियों का तिरस्कार कैसे करे,यह  वह भी नही समझ पा रही थी,

हरीश के पिता कैसे मानेंगे?फिर भी मां एक दिन हरीश से बोली बेटा भूल जा अर्पिता को,एक सपना समझ भूल जा।ऐसे मत रहा कर बच्चे मेरा कलेजा फटता है।हरीश मां के शब्द सुन फफककर उसके कंधे पर अपना सिर रख लेता है।फिर हरीश ने कहा माँ एक बार बस एक बार अर्पिता से मिल लो यदि फिर भी मना करोगी तो हम शादी नही करेंगे।अर्पिता से मिल तो लो माँ।

     अगले ही दिन हरीश अर्पिता को ले माँ के पास आया।माँ ये है अर्पिता जो अपने को हमे अर्पित करने आयी है, मां हमें स्वीकार कर लो।बेटे का आर्तनाद सुन माँ अंदर तक हिल गयी,उसने तत्काल ही अपने गले से चेन निकाल अर्पिता के गले मे डाल दी।मां ने ही हरीश के पिता को तैयार किया और शुभ मुहर्त में हरीश अर्पिता की शादी भी सम्पन्न करा ही दी।

       घर मे उत्सव का वातावरण रहने लगा था।अर्पिता ने पूरे घर की जिम्मेदारी संभाल ली थी। मां पिता और हरीश की हर जरूरत का वह ध्यान रखती थी।हरीश एक बार अपने ऑफिस गया हुआ था कि पीछे माँ चक्कर खा गिर पड़ी,तब अर्पिता अपने पड़ोसी की मदद से उन्हें हॉस्पिटल ले गयी।माँ के ठीक होने तक अर्पिता ने माँ का पूरा ध्यान रखा।ऐसे ही हरीश के सिर में भी दर्द हो जाता तो वह बेचैन हो जाती।अर्पिता ने धीरे धीरे परिवारजनों के दिलो में घर बना लिया।उसका महत्व कोई नकार ही नही सकता था।

      हरीश को अर्पिता ने एक सुंदर सलौना बेटा भी दे दिया,दादी ने उसको नाम दिया दीप।घर मे बहार आ गयी थी।दीप की अठखेलियों से घर गुंजायमान रहता।दीप बड़ा होता जा रहा था,उसमें वैसे ही संस्कार रहे जैसे हरीश और अर्पिता में थे।वह अपने माता पिता का पूरा ध्यान रखता।इस बीच एक एक करके हरीश के माता पिता इस संसार से विदा ले चुके थे।हरीश अर्पिता और दीप तथा उसकी पत्नी निम्मी एवम उनका बेटा आशु अब परिवार का रूप बन गये थे,एक दूसरे के पूरक होने के संस्कार अर्पिता ने दिये थे,एक दूसरे के महत्व को समझना ही सुखद जीवन है, यह शिक्षा अर्पिता ने अपने व्यवहार से दी थी।

      हरीश और अर्पिता की शादी को पचास वर्ष होने वाले थे,दीप ने घोषणा कर दी थी कि अबकी बार एक बड़ा फंक्सन करेंगे।अर्पिता बोली अरे दीप अभी तो 6 महीने पड़े हैं, क्यों अभी से इतना उत्साहित हो रहा है।बोला दीप,मां हमारा सब आपने ही किया है अब करने का मौका आया है तो उत्साहित भी न हूं।बावला, कह अर्पिता चली गयी।

       अचानक ही हरीश की तबियत खराब हुई उसके बायीं ओर के अंग कार्य नही कर रहे थे।समझ मे आ गया कि यह पैरालाइसिस है,बेहतरीन इलाज प्रारम्भ हो गया।अब अर्पिता हर समय हरीश के पास ही रहती,उसकी सेवा में कोई कमी न रह जाये वह ध्यान रखती,साथ ही उसके नकारात्मक विचारों को भी दूर करती।अर्पिता को अपने ही तक सीमित देख हरीश को दुःख होता,तभी उसने कहा था क्यूँ हर समय मेरे पास बैठी रहती हो।

       हरीश के बालों में उंगली फिराते फिराते अर्पिता बोली,हरीश एक बात तो बताओ यदि पैरालिसिस अटैक तुम्हारे स्थान पर मुझे हो गया होता तो क्या तुम मुझे नौकर भरोसे छोड़ देते?क्या मैं तुम्हे नही जानती?हरीश हमने 50 वर्ष एक साथ बिताये हैं, हमने मिलकर ही दीप जलाया है जो इस घर को रोशन कर रहा है,क्या एक दूसरे की अहमियत को हम नही समझते?मेरा पूरा विश्वास है हरीश तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगे।मैं हूँ ना।

        हरीश के स्वास्थ्य में लाभ होता गया,पूरी तरह ठीक नही हुआ था फिरभी दीप ने एक फाइव स्टार होटल में अपनी माँ और पिता का 50वा विवाह पर्व मनाया।पूर्ण स्वस्थ न होते हुए भी हरीश के चेहरे पर आज चमक थी,वह कभी दीप की ओर देखता तो कभी अर्पिता की ओर जो बिल्कुल ही उसके पास बैठी थी उसका हाथ थामे।

बालेश्वर गुप्ता, पुणे

मौलिक एवम अप्रकाशित

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