नहीं बेटा, तू रहने दे…अभी तो तेरी नई नौकरी लगी है, तुझे इतनी जल्दी छुट्टी कैसे मिलेगी? वैसे भी घुटनों के दर्द के कारण मुझसे चला नहीं जाता, मैं नहीं जाऊंगी महाकुंभ स्नान करने को…
सुधा ने वाट्सएप कॉल पर अपने इकलौते बेटे शिशिर से कहा..
सुधा के बेटे शिशिर ने लगभग 10 महीने पहले ही “यूनाइटेड स्टेट” के “टेक्सास शहर” में एक बड़ी आइटी कंपनी जॉइन की थी, और उस कम्पनी के अनुबंध के अनुसार शिशिर बिना किसी विशेष कारण (विवाह अथवा मृत्यु) के कम से कम दो वर्ष तक भारत नहीं आ सकता था।
लगभग 4 वर्ष पहले अपने पति की सड़क दुर्घटना में असमय मृत्यु के बाद सुधा ने कपड़े सिलाई और दूसरे छोटे-मोटे काम करके किसी तरह शिशिर की पढ़ाई जारी रखी, और उसके इस पहले जॉब में यह जानते हुये भी, कि अब शिशिर से कम से कम दो वर्ष तक मिलना नहीं हो सकता, शिशिर के उज्ज्वल भविष्य को देखते हुये सुधा ने उसे यूनाइटेड स्टेट जाने की अनुमति दे दी थी। शिशिर का पासपोर्ट और वीज़ा बनाकर टेक्सास तक पहुंचाने तक का काम उस आईटी कम्पनी के ऑथराइज़्ड एजेंट ने ही कम्पनी के खर्चे पर किया था इसलिए सुधा को कोई आर्थिक समस्या नहीं हुई।
शिशिर के टेक्सास जाने के बाद सुधा नितांत अकेली हो गई थी। शिशिर अब हर महीने उसे अपनी तनख़्वाह से कुछ रकम भेज दिया करता था, इसलिए घर की हालत बहुत हद तक सुधर गई थी, शिशिर के कहने पर सुधा ने अपना सिलाई का काम भी छोड़ दिया था, इसलिए खाली समय में वह शिशिर के बारे में ही सोचती रहती थी..अकेलापन और उसके बीच नकारात्मक विचारों ने सुधा के मन में अवसाद भरना शुरू कर दिया था, शिशिर भी यह बात महसूस कर चुका था, परन्तु कम्पनी के अनुबंध के अनुसार वह कम से कम दो वर्षों तक बिना किसी कारण विशेष के भारत आने में असमर्थ था।
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अरे बेटा… तू अचानक कैसे आ गया? कहीं ऐसा तो नहीं कि तूने जॉब छोड़ दी हो? मुझसे मिलने आने की जल्दी ऐसी भी क्या जल्दी थी? बड़ी मुश्किल से मिलता है जॉब, एक बार छोड़ दिया तो दुबारा मिलना कठिन हो जाता है यह जॉब.. महीनों बाद घर वापस आया इकलौता बेटा किस माँ को अच्छा नहीं लगता, बावजूद इसके, सुधा अपने बेटे शिशिर को सीने से चिपकाकर उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरे जा रही थी, और समझाईश भी दे रही थी।
माँ कंपनी में “बिना किसी कारण विशेष” के भारत नहीं आने का प्रावधान था न? तो 144 वर्षों बाद आने वाले इस महाकुंभ में आकर अपनी माँ को अमृत स्नान करवाना भी तो एक कारण विशेष को गया न? धार्मिक आधार पर कम्पनी ने मुझे महाकुंभ स्नान में जाने के लिए अपने निजी खर्चे पर 7 दिन की छुट्टी दे दी है। माँ तुझे सरप्राइज देने के लिए मैं बिना तुझे बताये ही घर आ गया, शिशिर ने यूँ चहकते हुये कहा मानो यह 23 वर्षीय शिशिर अब भी महज़ 10 वर्ष का अबोध बालक हो।
अरे पर तेरे इन 7 दिनों में से तो 2 दिन आने के और 2 दिन वापस जाने के निकल जाएंगे? अगर बचे 3 दिनों में हम महाकुंभ की भीड़-भाड़ में फंस गये तो तेरे पास मेरे लिये वक़्त ही कितना बचेगा? आया ही था तो 15-20 दिन की छुट्टियां नहीं ले सकता था क्या? सुधा ने उलाहना देते हुये कहा।
अरे माँ महाकुंभ के लिए 7 दिन से ज्यादा छुट्टियों का प्रावधान नहीं है न मेरी कम्पनी में, पर तेरे आँखों से निकल रहे ये “खुशी के आँसूं” मेरे लिए किसी गंगाजल या महाकुंभ से कम थोड़ी न हैं माँ..
मुझे कौन सा “नहाने का वीडियो दिखाकर” महाकुंभ स्नान का सबूत देना है, तो मैं कहीं नहीं जा रहा.. आज मैं तुझे अपने हाथों से बना खाना खिलाऊंगा, कल तू मुझे अपने हाथों से बनाकर बैगन भर्ता और गक्कड़ खिला देना और परसों हम दोनों बाहर रेस्टोरेंट में खाने चलेंगे, यही हमारी महाकुंभ यात्रा होगी कहकर शिशिर अपने बलिष्ठ हाथों से माँ को उठाकर गोल गोल घुमाने लग गया।
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और सुधा “छोड़ नालायक….
इतना बड़ा हो गया, फिर भी तुझे अक्ल नहीं है क्या?
मुझे जल्दी नीचे उतार”
कहकर शिशिर को बनावटी डाँट दिखाते हुये इन “अमूल्य क्षणों” का आनंद लिये जा रही थी।
।।शिक्षा-माँ के चरणों से बढ़कर, दुनियां में कोई भी स्वर्ग नहीं हो सकता।।
“महिला दिवस की शुभकामनाएं” आप सभी को
अविनाश स आठल्ये
स्वलिखित, सर्वाधिकार सुरक्षित