महकती फुलवारी – शिव कुमारी शुक्ला : Short Moral stories in hindi

Short Moral stories in hindi  : सरलाजी एवं सुबोध जी अपनी तीन प्यारी-प्यारी बेटीयों के साथ खुशहाल जीवन जी रहे थे। मध्यम बर्गीय परिवार से थे अत: बहुत सम्पन्न नहीं थे। किन्तु पती-पत्नी सरकारी नौकरी में थे तो अच्छी गुजर बसर हो जाती थी। क्योंकि तब आज जैसी तनख्वाह नहीं मिला करती थी।

वे अपने खर्च में कहीं भी कटोती करते किन्तु बेटोयों की शिक्षा से कोई समझोता नहीं करते। अच्छे कान्वेंट स्कूल में पढ़ा रहे थे । नन्हीं-नन्हीं परियाॅ कब बचपन पूरा कर किशोरी हो गई पता ही नहीं चला। वेअपनेमाता-पिता की लाडली चहकती – फूदकती चिडीयाँ थी जिनसे घर गुलज़ार था ।

धीरे धीरे समय का पहिया घूमा वे किशोरी बच्चियां युवावस्था की ओर बढ़ गई ।कब उनकी पढ़ाई पूरी हुई और बड़ी बेटी नौकरी के लिए इंटरव्यू देने लगी. उन्हें सपना सा लगता। उधर पिछले दो-तीन सालों से बड़ी बेटी को युवा होते देख सरला जी बहुत ही चिन्तीत रहने लगी थीं। उनकी चिन्ता का कारण था बेटी की शादी को लेकर।

आए दिन पेपर में पढ़कर टीवी- फोन पर दहेज लोलुपों के किस्से पढ़-सुनकर उनकी चिन्ता बढ जाती। वे यह सोच कर काँप उठती कि कहीं उनकी बेटी भी दहेज की बलीवेदी पर वली तो नहीं चढ़ा दी जायेगी।

आए दिन विवाहेत्तर सम्बन्धों के कारण ,दहेज, य अन्य करणों से तलाक के किस्से। बेटी के भविष्य को लेकर वे अत्यन्त चिन्तीत रहती। कभी अपने पति से इस बारे में बात करती तो वे हल्के में लेकर कहते क्यों चिन्ता करती हो, भगवान सब ठीक करेगें।

शादी तो करनी ही थी, बड़ी बेटी मंजू के लिए घर-वर की तलाश शुरु की।मंजू इंजिनियर थी सो उन्होंने एक अच्छे परिवार का इन्जीनियर लडका देख कर उसकी शादी कर दी । विदाई के समय माता- पिता दोनों का कलेजा फटा जा रहा था। कैसे वह अपनी नाजों पली बेटी को दूसरे के हवाले कर दें। किन्तु समाज का नियम था सो उन्होंने भी निभाया ।

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हाॅ पर विदाई के समय माँ ने मंजू को समझाया अपने से बडों का सम्मान करना छोटों के साथ हिलमिल कर रहना,जो संस्कार तुम्हें दिए हैं उनका मान रखना।वैसे तो सब ठीक है कोई चिन्ता की बात नहीं है फिर भी बेटा थोड़ा सर्तक होकर रहना किसी भी प्रकार की कोई विषम स्थिती बने तो विना हिचक हमें सूचना देना, या संभव नहीं हो तो मौका पाते ही भाग छूटना इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा खुले हैं

हम हमेशा साथ खडे रहेगें, पर अपने प्राणों की रक्षा करना। जीवन है तो बहुत सारी राहें खुल जायेगीं घबराना नहीं। मैं कभी तुम्हें यह सीख नहीं दूँगी कि इस घर से डोली उठ रही है तो उस घर से तुम्हारी अर्थी ही उठे। तुम्हारे सुखद उज्ज्वल भविष्य के लिए तुम्हें विदा जरूर कर रहे हैं किन्तु तुम्हारा इस घर से न तो नाता टूटा है और न टूटेगा।

यह घर आज भी तुम्हारा था कल भी तुम्हारा रहेगा। बेटी सदा सुखी रहो यही हमारा आर्शीवाद है। अपना ध्यान रखना ,आत्मविश्वास के साथ खुशी -खुशी अपनी वैवाहिक जिंदगी की शुरुआत करो हिलमिल कर रहना , जो संस्कार तुम्हे दिए है उनका मान रखना ,अब वही तुम्हारे माता-पिता समान हैं उनका आदर करना।

बेटी तो विदा हो गई, सामर्थ्यानुसार दान- दहेज भी दिया गया । सामने वाले परिवार ब उनके रिश्तेदारो की खातिर भी की गई। लड़के के पिता-माता खुश थे वे जाते-जाते बोले आप लोग बेटी की चिन्ता न करें अब वह हमारी भी बेटी है हमारी जिम्मेदारी है कि हम उसे जीवन में सारी खुशियाँ दे सकें।

उनके इन शब्दों ने थोडा मरहम का काम किया और वे थोडे आश्वस्त हुए। किन्तु जबतक पगफेरे के लिए बेटी नहीं आई उसे आँखो नही देख लिया चिन्तीत ही रहे। बेटी को खुश देखकर चिन्ता मुक्त हो गये ।

कुछ दो-तीन बर्षो बाद दूसरी बेटी अंजू भी इन्जीनियर बन गई उसकी भी शादी हो गई। ओर फिर तीसरी बेटी डाक्टर बन गई उसके लिए भी डाक्टर लडका मिलगया। इन दोनों की शादी में भी वही सीख दोहराइ गई। किन्तु किस्मत सरला जी एवम सुबोध जी की बेटीयों को इतने अच्छे तीनो परिवार व वर मिले कि उनकी बेटीयों के घर ऑगन आज मधुर झरने से गुलजार हैं, बच्चों की नोंक झोंक से गुंजायमान हैं । वे बहुत सुखी हैं।

माता-पिता भगवान का धन्यवाद करते हैं कि हमारी बेटीयों का घर ऑगन खुशीयों से महक रहा है।वे अपनी बेटीयों के सुखद गृहस्थ जीवन को देखकर फूले नहीं समाते।

वे चिन्ता मुक्त होकर अपनी बेटीयों के हॅसते खिलखिलाते गुलजार घर ऑगन को देखकर चैन की जिंदगी जी रहे हैं,और भगवान से दुआ मांगते है की सबकी बेटीयों को ऐसी ही खुशहाल जिंदगी मिले।

शिव कुमारी शुक्ला

स्व रचित मोलिक अप्रकाशित

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