सिम्मी खिड़की में खड़ी गली के बच्चों को बारिश में भीगते हुए देख रही थी । अभी कुछ दिन पहले की ही बात है वो भी यूंही मस्ती किया करती थी पानी की फुहारों में और आज एक बहू बनी बैठी है जिसके ऊपर सो बंदिशें हैं! जब जब उसने अपने मन की बात सास या पति से कही हमेशा यही सुनने को मिला
अब तुम अल्हड़ युवती नही एक समझदार बहु हो जिसे घर की मान मर्यादा का ख्याल रखना पड़ता है। पर कुछ पल अपने लिए जीने में क्या मान मर्यादा भंग हो जाती है? ये सवाल रह रहकर उसे परेशान करता था। कुछ महीने पहले ब्याह कर आई सिम्मी इस सवाल का जवाब ढूंढने में असमर्थ थी। वो खड़ी खड़ी अतीत की बातें सोचने लगी।।
” मम्मी जी चलिए ना वहां गोलगप्पे खाते हैं !” एक दिन बाजार से आते में उसने अपनी सास कमलेश जी से मचल कर कहा।
” बहु कुछ तो मान मर्यादा का ख्याल रखो बहुएं क्या ऐसे खुले में खड़े हो गोलगप्पे खाती हैं !” कमलेश जी ने आखें तरेरी जिन्हे देख सिम्मी सकपका गई।
कहना तो वो यही चाहती थी अगर आपकी तरह सब गोलगप्पे खाने को मान मर्यादा से जोड़ने लगें तो आधे से ज्यादा गोलगप्पे वाले बेरोजगार हो जाएं। पर कुछ कह ना सकी सास को कभी जवाब मत देना मां की सिखाई इस सीख से जो बंधी थी।
दिन बीतने लगे शहर में रामलीला का मेला लगा जिसमे पति तरुण और सास के साथ सिम्मी भी गई बहुत उत्साहित थी मेला घूमेगी चाट खायेगी और झूले …हां झूले भी तो झूलेगी कितना शौक है उसे झूले का। झूले के ऊंचा जाते ही उसका मन बादलों की सैर करने लगता है।
” सिम्मी तुम मां के साथ बैठ यहां रामलीला देखो मेरे कुछ दोस्त भी यहां आए है मैं उनके पास जा रहा।” तरुण हॉल के बाहर आ बोला कमलेश जी अंदर जा चुकी थी।
” पर तरुण रामलीला देखने कौन आता है मेले में ?” सिम्मी हैरानी से बोली क्योंकि वो तो बचपन से रामलीला के मेले में घूमने फिरने मस्ती करने जाती थी।
” तो…? रामलीला के मेले में रामलीला देखने नही तो क्या करने जाते हैं ?” तरुण सवालिया नजर से बोला।
” मेरा मतलब है मैं कभी रामलीला के मेले मे रामलीला देखने नही घूमने फिरने , चाट खाने , झूला झूलने जाती थी । चलो ना झूला झूलते है !” सिम्मी चहकती हुई बोली।
” दिमाग खराब है कुछ मान मर्यादा का ख्याल है भी या नही शहर की बड़ी रामलीला है ये कितने जानकार आए होंगे हमारी इज्जत मिट्टी में मिलानी है झूले झूल कर …बच्ची नही हो अब तुम समझी जाओ अंदर बैठो!” तरुण गुस्से में बोला और चलता बना।
“अब इसमें भी मान मर्यादा ..ऐसा सभी सोचते तो ये मेले क्यों चलते ..!” सिम्मी बुदबुदाती हुई अंदर आई ।
” ले मुंगफली खा ले !” कमलेश जी उसे मूंगफली का लिफाफा देते हुए बोली जो उन्होंने वहां से ही खरीदा था।
” नही मम्मीजी मुझे नही खाना !” सिम्मी प्रत्यक्ष में यही बोली पर मन तो था बोल दे क्यों मूंगफली खाने से मान मर्यादा आहत नही होती पर कैसे बोलती वही मां के दिए संस्कार।
” बहु यहां खिड़की में खड़ी क्या कर रही हो ?” सास की आवाज सुन सिम्मी वर्तमान में आई ।
” अरे मम्मी जी आप जाग गए मैं तो बारिश देख रही थी !” सिम्मी पलटते हुए बोली।
” क्या बारिश …कपड़े उतार लाई तू ऊपर से ?” कमलेश जी एक दम से बारिश देख बोली।
” ओह मम्मी जी भूल गई अभी लाती हूं!” ये बोल सिम्मी छत पर भागी।
” राम जाने कहां दिमाग रहता है इसका तो !” पीछे सास बुदबुदाई।
काफी देर तक जब सिम्मी नीचे नही आई तो कमलेश जी खुद छाता ले ऊपर आई और वहां का नजारा देख गुस्से में भर गई।
” सिम्मी ….ये क्या हो रहा है मान मर्यादा , शर्म लिहाज सब बेच खाई है क्या …बंद करो अपना ये नाटक ?” वो चिल्लाई उनकी आवाज सुन बारिश में नाचती सिम्मी घबरा गई ।
” वो …मम्मी जी मैं तो बस ऐसे ही थोड़ा सा भीग रही थी बारिश में !” वो सकपकाते हुए बोली।
” मोहल्ला क्या कहेगा सारा फलाने की बहू कैसे बेशर्मों की तरह छत पर भीगती हुई नाच रही थी तुझे कितनी बार समझाना होगा तू अब बहु है पर तुझे तो समझ आता ही कहां है !” कमलेश जी दहाड़ी।
” मम्मी जी बहु बन गई तो खुद के लिए जीना छोड़ दूं या अपने मन का करना छोड़ दूं । जब बहू घर भर के काम करती है तब कोई नही बीच में आता पर जहां बहु अपनी मर्जी से जीना चाहे मान मर्यादा, पड़ोसी सब बीच में कूद पड़ते हैं क्यों मम्मी जी? गोलगप्पे खाना गुनाह है तो क्यों हजारों औरतें वहां चटकारे ले खाती हैं , मेले में झूले झूलना गुनाह है पर वहां तो लाखों लोग झूलते है और बारिश में भीगना वो भी अपनी छत पर ये गुनाह कैसे जब मैं कपड़े लेने आई
तभी भीग तो गई ही थी ना तो थोड़ा अपनी मर्जी से भीग ली तो इसमें क्या गुनाह कर दिया मैने….हर बार एक लड़की बहु बनकर मान मर्यादा का ख्याल क्यों रखे जबकि लड़के जैसे शादी से पहले जीते है वैसे ही जीते रहते …नही मम्मी जी ये तो नाइंसाफी है एक बेटी के साथ एक बहू के साथ !” सिम्मी ये बोल रोते हुए नीचे जाने लगी आज उसने अपनी मां के संस्कार नहीं अपने मन की आवाज सुनी थी। तभी उसे छत के दरवाजे पर तरुण नजर आया जो शायद ऑफिस से आया होगा और मां ,बीबी को नीचे ना पा छत पर चला आया होगा। उसने बारिश में भीगे होने के बावजूद भी सिम्मी की आंखों के आंसू साफ देख लिए थे।
तरुण को देख सिम्मी आंसू पोंछ नीचे जाने लगी तो तरुण ने उसका हाथ पकड़ लिया..” रुको सिम्मी थोड़ा मेरे साथ भी भीग लो हम भी तो इस बारिश का मजा लें !” तरुण सिम्मी का हाथ पकड़े पकड़े कमलेश जी को देखते हुए बोला । आज शायद तरुण को भी पत्नी की बात सही लगी थी या फिर आज झूठी मान मर्यादा के पाठ से ज्यादा उसे पत्नी की खुशी नज़र आ रही थी।
” तू भी इसके साथ मान मर्यादा भूल गया है क्या जो ये नही सोच रहा की लोग क्या कहेंगे !” कमलेश जी गुस्से में बोली।
” मां अगर अपने मन से जीने में लोगो के कहने का डर है तो इस डर को निकाल फेंकना चाहिए क्योंकि लोग हर सूरत में कहते ही हैं । अब सिम्मी का पति उसके साथ है यहां तो लोगों का कुछ कहने का हक नही बनता …आओ सिम्मी अब तुम्हे मान मर्यादा के नाम पर छोटी छोटी खुशियां छोड़ने की जरूरत नही है !” तरुण ये बोल सिम्मी को ले छत पर आ गया। आज सिम्मी को इस बात की खुशी थी कि आखिरकार पति ने तो उसे इंसान समझा वरना जब से शादी हुई है वो तो मान मर्यादा के नाम पर सब सहने वाली गूंगी गुड़िया सी बन गई थी।
कमलेश जी भुनभुनाते हुए नीचे चली गई क्योकि बेटे के सामने ज्यादा बोलना उन्हे उचित नही लगा।
दोस्तों क्यों हमारे भारतीय समाज में कुछ घरो मे आज भी एक लड़की को बहु बनते ही मान मर्यादा का ख्याल रखने को कहा जाता है पर क्या कुछ पल अपने लिए जीना अपनी मर्जी का खाना , बारिश में भीगना ये भी एक बहू का हक नहीं? क्या बेटी से बहू बनते ही उसे विवाह वेदी मे अपनी चंचलता को जला गंभीरता की चादर ओढ़ लेनी चाहिए।
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल