नववर्ष के उपलक्ष्य में सामुदायिक केंद्र में
स्वरचित कविता-पाठ का आयोजन किया गया था। इच्छुक प्रतिभागी एक-एक करके अपनी स्वरचित कविता का पाठ मंच पर आकर कर रहे थे।
अर्पिता ने नंबर आने पर जैसे ही कविता-पाठ करना आरंभ किया, वैसे ही सभी श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो उठे। इतनी मधुर, सधी हुई आवाज़। भावों में लिपटी हुई सुंदर और प्यारी कविता। एक-एक शब्द कानों में मिश्री-सी मिठास घोल रहा था।
नीरज तो मंत्रमुग्ध होकर कभी अर्पिता को तो कभी कविता पढ़ते समय उसके आत्मविश्वास को देख रहा था। तालियों की तेज गड़गड़ाहट से उसकी तंद्रा टूट गई।
नीरज को तो बिलकुल भी विश्वास नहीं हो रहा था, यह वही अर्पिता है, जिसे आज से सात साल पहले वह अपनी पत्नी बनाकर घर लाया था। हर समय डरी-सहमी रहती थी। उसे अपने ऊपर बिलकुल भी विश्वास नहीं था। हर काम पूछकर ही करती थी। किसी के घर जाने या आने की बात सुनते ही अर्पिता घबरा जाती थी। किसी से ज्यादा बातचीत ही नहीं कर पाती थी। अकेले कहीं पर जा ही नहीं पाती थी।
नीरज ने धीरे-धीरे उसे अपने ऊपर विश्वास करना सिखाया।
आत्मविश्वास से जीने की राह दिखाई। उसकी स्वयं से पहचान करवाई।
अर्पिता का हिंदी भाषा पर पूर्ण प्रभुत्व था। यह देखकर नीरज ने ही उसे लिखने की सलाह दी थी। उसी की सलाह से अर्पिता ने लिखना शुरू किया। धीरे-धीरे उसमें आत्मविश्वास आने लगा। इससे वह अकेले में अपनी कविताओं का पाठ भी करने लगी। जिसका सुंदर परिणाम आज सामने था।
मुख्य अतिथि रमाशंकर जी भी अर्पिता के काव्य-पाठ से प्रभावित हुए बिना न रह सके। बहुत समय बाद उन्होंने इतनी भावप्रवण, सुंदर कविता सुनी थी। कानों में जाता कविता का एक-एक शब्द उन्हें सम्मोहित-सा कर रहा था। अर्पिता की कविता किसी भी मायने में विख्यात कवयित्री से कम नहीं थी।
कार्यक्रम की समाप्ति हुई। अर्पिता को स्वरचित कविता-पाठ में प्रथम पुरस्कार मिला, जिसका सारा श्रेय उसने अपने पति नीरज को दिया। आखिर उनकी वजह से ही तो वह आज इस मुकाम तक पहुँच पाई थी।
सच ही कहा है, मन के हारे हार है मन के जीते जीत। अर्थात आत्मविश्वास कामयाबी की वह कुंजी है, जिसके बल पर हम सर्वत्र अपना परचम लहरा सकते हैं।
नोएडा (उत्तर प्रदेश)