“अब आ रहीं हैं आप !जब सब काम हो चुका है। “
आफिस में आज नए डी जी एम के स्वागत में होने वाले कार्यक्रम की व्यवस्थापिका ने दहाड़ लगाई ।
जी ,जी वो …… प्रीतिका नई आई हुई क्लर्क
ने धीरे से अपना पक्ष रखना चाहा लेकिन डर के बारे शब्द नहीं मिल पाए।
क्या जी ….जी लगा रखा है। ड्यूटी लिस्ट में हस्ताक्षर किए थे न!फिर समय से क्यों नहीं पहुँची ?
जी मैडम ,मैं समय पर ऑफिस आ तो गई थी पर अभी नई हूँ।कुछ ठीक से समझ नहीं आ रहा था। पास वाले केबिन में सीमा जी से पूछा तो उन्होंने समझाया और मैं सीधे यहीं आ रहीं हूँ।
“प्लीज मुझे समझा दीजिये।मैं अभी सब काम कर देती हूँ। ” प्रीतिका ने हिम्मत करके अपनी बात रखी
“अब क्या काम करेंगी आप ?हम सब कर चुके हैं।”व्यवस्थापिका फिर दहाड़ी।
अब की बार प्रीतिका की रुलाई फूट पड़ी।
वह जाने के लिए जैसे ही पलटी फिर तेज़ आवाज़ आई ,”यहीं रुकिए।कहीं जाने की जरूरत नहीं है।”
शायद व्यवस्थापिका महोदया को बॉस का ध्यान आ गया होगा।अब लहज़ा थोड़ा नरम हो गया।
“सुनो ,बुरा मत मानना ,काम का प्रेशर अधिक होने से गुस्सा तुम पर निकल गया “
कहते हुए व्यवस्थापिका जी बाहर निकल गईं ।
और प्रीतिका। भयभीत ,निराश वहीं खड़ी रह गयी सोचते हुए ,”क्या इस ऑफिस में नए लोगों के साथ ऐसा व्यवहार होता है ?”
मैं पास के केबिन से सारा माज़रा देख रही थी।एक विचार आ रहा था।
हे भगवान ! लोग क्यों नहीं समझते ,
“जब हम किसी का अपमान कर रहे होते हैं उस समय हम अपना सम्मान खो रहे होते हैं।”
क्या प्रीतिका अब इनका सम्मान करेगी ?
एक यक्ष प्रश्न था मेरे सामने।
समाप्त
चुभन एक पिन की
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अरे माँ !एक बात सुनो ।मुझे मुंबई में एक बहुत अच्छे जॉब का ऑफर मिला है।मैं जाऊँ क्या ?
हाँ ,हाँ बेटा क्यों नहीं ?पर …. ये देख लो कि तुम्हें कितना फायदा होगा। किराए का मकान ,वो भी मुम्बई में ,फिर खाने का खर्च !देख लो ।
माँ आप तो निरुत्तर कर देती हो।कहते हुए मिलिंद वहाँ से उठ गया।
अरे मीता !अभी तक सो रही हो ।सात बज रही है।अभी कहूंगी ,पराए घर जाना है तो बहुत बुरा लगेगा।
अरे सोने दो न माँ !
अगले एक मिनट भी नहीं ।सीधे बाथरूम में दिखना चाहिए।नहा कर भाभी की मदद करो।
मीता भुनभुनाते हुए रजाई फेंक कर वहाँ से चली गई।
अरे बहू !मेथी और मटर मुझे दो और फिर रोटियां बना लो।मुन्ने को भी यहीं बैठा दो।
जी माँ !यह लो ,वो न एक बात कहनी थी।पास के एक स्कूल में टीचर का जॉब है।सात हजार देंगे पहले फिर बढ़ा देंगे।
अरे ! मुझसे क्या पूछती हो ! जॉब कर लो खाना बनाने के लिए एक जीजी को रख लेते हैं।साढ़े तीन हज़ार उन्हें दे देंगे ।बाकी तुम्हारे ।माँ ने मुस्कुराते हुए कहा।इस पर बहू भी मुस्कुरा कर रसोई में चली गई।
माँ ,मैं आधे घण्टे में आता हूँ ,क्रिकेट खेल कर ।
मिहिर ने कहा।
चुपचाप बैट वहाँ रखो।भोजन का समय है,क्रिकेट का नहीं।
सचमुच मिहिर ने बैट अपनी जगह पर रख दिया।
मीता ,सबका खाना परोसो ।आज इतवार के दिन तो कम से कम सब साथ में खाएँगे।
आपकी थाली में जो दो रसगुल्ले हैं इन्हें बाहर कर दो।अब बारी थी बच्चों के पापा की।
अरे भाग्यवान ,एक तो खा सकता हूँ कि नहीं?अच्छा ठीक एक से ज्यादा नहीं।
माँ ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा।
पापा मुस्कुरा रहे थे सोचते हुए ,ये एक पिन है न चुभती जरूर है पर सारे कागजों को जोड़ के रखती है।
समाप्त
रिश्ते
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धूमधाम से शादी हो गई । जेठानी और देवरानी दोनों की बहुएं एकसाथ रुनझुन करती अपने घर में आ गईं।
करीब – करीब सभी मेहमान विदा ले चुके थे पर घर की सभी बहन बेटियां अभी यहीं थीं।
आज बहुओं की पहली रसोई थी ।एक बहू सूजी का हलवा बना रही थी औऱ दूसरी चावल की खीर। भारी साड़ी ,उतने ही भारी जेवर ,साथ मे जेठ महीने की गर्मी ।
दोनों बहुएं हलवे और खीर के साथ संघर्ष कर रही थी ।हलवा गाढ़ा हुआ जा रहा था और खीर पतली रह गई ।
तभी सभी चचेरी ,ममेरी ,मौसेरी , फुफेरी ननदें हँसती, खिलखिलाती रसोईघर में पहुँच गई।
अरे वाह ! खीर , हलवा !एक ने कहा ।
दूसरी बोली चलो ,आज तो एक प्रतियोगिता हो जाए तुम दोनों के बीच।देखें ,खीर स्वादिष्ट बनती है या हलवा ।
तीसरी बोली , हाँ भाई ,आज तो तुम दोनों की परीक्षा है ।
तभी ताईजी अंदर आईं ।वे बाहर से इनकी चुहलबाजी सुन रही थीं ।आते ही मीठी डाँट लगाते हुए बोलीं ,
‘छोरियों ,बाहर निकलो यहाँ से।तुम लोगों ने दी थी परीक्षा अपने घर में अपनी सास ननदों के सामने ? तुम लोगों को तो इनकी मदद करनी चाहिए।
सब लड़कियाँ चुप हो गई ।
ताईजी बोलीं ,बेटा ,अब तो ये दोनों अपने घर की सदस्य हो गई हैं ।
‘ ये रिश्ता न तो एक परीक्षा है जिसमें फेल या पास होना है न ही कोई प्रतियोगिता है जिसमें कोई जीत या हार है। ‘ ये तो एक भावना है ,अपनापन है।इसे महसूस करो
बेटा !
सभी ननदें ताईजी को लड़ियाते हुए बोलीं
‘ ताईजी ,हम तो मज़ाक कर रहे थे ‘
ताईजी दोनों बहुओं के पास पहुँच गई और उनके कंधों पर हाथ रखा और आंसुओ की बूंदें दोनों की आँखों से टपक गई जिसे ताईजी ने अपने पल्लू से पोंछ दिया ।
फिर लड़कियों से बोलीं, “इन्हें बाहर हवा में ले जाओ ।खीर और हलवा अब में देख लूंगी।”
बहू – ,बेटियां बाहर जा चुकी थीं और ताईजी ससुराल में अपना पहला प्यारा सा अनुभव याद कर रही थीं ,मुस्कुराते हुए।
ज्योति अप्रतिम