मेरठ से बृजघाट गंगा की दूरी मात्र 55 किलोमीटर है।पिछले वर्ष से आनंद जी के घुटनो में जो समस्या पैदा हुई तो उनका चलना ही दूभर हो गया।दुकान पर भी मुश्किल से ही जा पाते।घर के आंगन में चारपाई पर लेटे रहते थे।बृजघाट जाने के लिये आनंद जी ने टैक्सी की,स्टिक की सहायता से घर के सदस्यों से निगाह बचाकर आनंद जी खुद टैक्सी स्टैंड पहुँच गये,वही से कार में बैठकर वे बृजघाट अकेले ही चल दिये।
कार की पिछली सीट पर आनंद जी पसर गये और एक गहन चिंतन उनके चेहरे पर साफ दृष्टिगोचर हो रहा था। जिंदगी के बिताये एक एक पल,एक एक घटनाएं उनके सामने चलचित्र की भांति घूम रहे थे।आनंद जी के पिता ने उनकी शादी सुंदर सलोनी माधवी से की थी।आनंद जी तो माधवी को पा धन्य ही हो गये थे।
चाट पकौड़ी की दुकान चलाने वाले आनंद जी की शुरू की जिंदगी कठिन थी।सुबह से दोपहर दो बजे तक घर मे गोलगप्पे, बड़े,आलू उबालकर रखना रात्रि में जमाई दही को बिलोना,मिर्च मसाले तैयार करना फिर चार बजे तक सब तैयारी करके ठेली पर सब सामान तरतीब से रख घूम घूमकर बेचना आंनद जी का नित्यक्रम था।
पर जब से माधवी से विवाह हुआ आनंद जी का जीवन बदल गया।अब उन्हें इन सब कार्यो के लिये एक सहयोगी मिल गया था।अब आनंद जी तथा माधवी दोनो मिलकर चाट बनाते और आनंद जी पहले की भाँति बेचने जाते।जबसे माधवी ने घर मे चाट बनानी प्रारम्भ की आनंद जी की बिक्री बढ़नी शुरू हो गयी थी।माधवी के हाथों में जादू था
।स्वादिष्ट चाट लोकप्रिय होने लगी थी। एक वर्ष के अंदर ही आनंद जी ने एक दुकान किराये पर ले ली।अब आंनद जी को घूम घूम कर चाट नही बेचनी पड़ती थी, वरन ग्राहक दुकान पर ही आते थे।धीरे धीरे आनंद जी की चाट प्रसिद्ध होने लगी।उन्होंने अब कारीगर और नौकर रख लिये थे,दुकान का दायरा भी बढ़ा लिया।आनंद जी के इस बीच एक बेटे का आगमन भी हो गया।
घर मे खूब चहल पहल रहने लगी थी।संपन्नता भी बढ़ने लगी थी।ज्यो ज्यो आनंद जी की उम्र बढ़ रही थी उनकी निर्भरता और आकर्षण एवं लगाव अपनी पत्नी माधवी की ओर बढ़ता जा रहा था।जब भी घर गृहस्थी से समय मिलता दोनो साथ ही रहने का प्रयास करते।
दुर्भाग्यवश आनंद जी का बेटा होनहार नही निकला, युवा होते सारंग की संगति भी ठीक नही रही।यदा कदा सुनने को मिलता आज सारंग सिगरेट पी रहा है, आज नशा कर रहा है।सुनकर आनंद को दुख होता।सारंग पर समझाने का कोई प्रभाव नही पड़ता।कभी कभी तो वह आनंद जी को पलट कर जवाब भी दे देता।आंनद जी की हार्दिक इच्छा थी कि उनका बेटा सारंग चाट पकौड़ी न बेचे,बल्कि कोई अच्छी सी नौकरी कर ले।पर यहां तो सारंग के लक्षण ही सबकुछ बर्बाद कर देने के थे।
आखिर आंनद जी ने सारंग को अपने साथ ही दुकान पर बैठाने का निर्णय लिया।वे अपने साथ सारंग को दुकान पर के जाने लगे।बेमन से सारंग जाने लगा पर उसका मन वहां लगता ही नही था।पर एक बात सारंग समझ गया था कि उसके शौक भी दुकान से ही पूरे हो सकते हैं, सो वह दुकान स्वेच्छा से जाने लगा और वहां से कुछ रुपये भी अपने लिये चुराने लगा।आंनद जी समझ रहे थे,पर यह सोचकर कि सब कुछ इसी का तो है और दूसरे कि इसी लालच में सारंग का मोह दुकान से होगा तो वह सुधर जायेगा,उन्होंने कभी सारंग को टोका नही।
आनंद जी के घुटनों में दर्द रहने लगा था,जो बढ़ता जा रहा था,डॉक्टर घुटने बदलवाने की सलाह दे रहे थे,आनंद ऑपरेशन से डर कर टाल रहा था।माधवी भी स्वर्ग सिधार गयी थी,वैसे भी आनंद जी अपने जीवन को नीरस पा रहे थे।माधवी रिश्ते की डोरी तोड़ अन्नत यात्रा पर चली गयी थी।सारंग अब पूरी दुकान संभाल रहा था, उसकी शादी पिंकी से आनंद जी ने करा दी थी। सारंग में पिता के एक प्रकार से अपंग होने अपनी माँ के स्वर्गवासी होने तथा खुद पर दुकान की जिम्मेदारी आ जाने पर,परिवर्तन आने लगा था।वह पिता का भी ध्यान रखता और घर दुकान का भी, पर मां की कमी को कैसे पूरी करे, यह तो संभव नही था।
आनंद जी आंगन में अकेले लेटे लेटे माधवी को याद करते रहते।घुटनो का दर्द असहनीय होता जा रहा था,ऑपरेशन को वे तैयार नही थे,सारंग कई बार कह भी चुका था,पर आंनद जी माने तब ना।
ऐसे ही अवसाद में उन्होंने एक निर्णय कर टैक्सी पकड़ बृजघाट गंगा जी पहुंच गये।पुल के बीच कार को रुकवा कर उन्होंने टैक्सी का भुगतान करके उसे वापस जाने को बोल दिया।टैक्सी के जाते ही आनंद जी ने पुल से गंगा जी की पवित्र धार में छलांग लगा दी।
पापा को घर मे न पाकर सारंग अनजानी आशंका से कांप उठा।पूरे नगर में जानी अनजानी जगहों पर सारंग पापा को ढूंढता रहा,पर पापा तभी तो मिलते जब वे वहां होते।एक सप्ताह बाद सारंग ने आनंद जी के फ़ोटो के साथ अखबार में उनके गुमशुदा का विज्ञापन दे दिया तथा पुलिस में भी रिपॉर्ट दर्ज करा दी।उस विज्ञापन को देख उस टैक्सी वाले को आंनद जी का चेहरा याद आ गया।विशेष रूप से इसलिये कि वह व्यक्ति बीच पुल पर उसकी टैक्सी से उतरा था।टैक्सीवाले ने इस घटना को ज्यो का त्यों फोन पर सारंग को बता दिया।अब यह निश्चित हो गया था कि आनंद जी बृजघाट गंगा गये थे।भयावह आशंका से ग्रस्त सारंग ने पूरे बृजघाट क्षेत्र को छान मारा, पर आनंद जी नही मिले। मन मार कर यह स्वीकार करते हुए कि आनंद जी ने आत्महत्या कर ली होगी तो उनके शव को ढूढने का प्रयत्न हुआ पर शव भी नही मिला।अन्तोगत्वा सारंग घर वापस आ गया,यह मान लिया गया कि आनंद जी ने आत्महत्या कर ली है।सारंग ने उनकी तेहरवी सम्पन्न कराकर घर के ड्राइंग रूम में अपने पिता आनंद जी एवम मां माधवी के फोटो हार सहित लगा दिये।पिंकी गर्भवती थी,उसको लेबर पेन होने पर सारंग पिंकी को हॉस्पिटल में दाखिल किया जहां सारंग एक पुत्री का पिता बन गया।
आंनद जी गंगा जल की धारा में समा गये और बहाव के साथ नरौरा के पास उन्हें वहां एक किसान ने देखा तो उन्हें खींचकर किनारे पर लेकर आये तो पाया उनमें सांस बाकी है,उनके शरीर से पानी निकालकर मुँह से सांस देने जैसी क्रियाओं के बाद शंकर नामक यह किसान आनंद जी को अपने घर ले आया।वैद्य जी बुलाया गया।कई दिनों बाद लगा कि आनंद जी ठीक होने लगे हैं तो उनसे उनके घर के बारे में शंकर ने पूछा तो आनंद जी फूट फूट कर रोने लगे,बोले शंकर मुझे अपने पास ही रहने दो,मैं वहां माधवी के बिना नही रह सकता।मैं बिल्कुल अकेला रह गया हूँ,शंकर तुमने मुझे मरने भी नही दिया।मैं करूँ तो क्या करूँ?शंकर उनकी मनोस्थिति को भांप कर चुप हो गया और कहां बाबा आपका घर है, आप यही रहो।
फिर एक दिन शंकर ने आनंद जी को टटोला ,बाबा देखो मुझे आपके मेरे पास रहने में कोई एतराज नही है,जीवन भर इज्जत से रखूंगा।पर आपका बेटा भी तो आपके बिना तड़फता होगा।बाबा मेरा वायदा है आप एक बार अपने बेटे से मिलने मेरे साथ चलो या उसे खबर कर लेने दो,उसके बाद आप जहां भी रहे आपकी मर्जी।हमारी रिश्ते की डोर आपसे बंध चुकी बाबा।निरुत्तर हो गये आनंद जी।अपने बेटे सारंग का पता और फोन नंबर उन्होंने शंकर को बता दिया।
पिता के जीवित होने का समाचार पाकर सारंग और उसकी पत्नी झूम उठे।तुरंत टैक्सी करके वे नरोरा की ओर चल दिये।पिता से मिलने की उमंग में एक एक पल भारी पड़ रहा था।किसी प्रकार शंकर के यहां पहुंचे तो सामने ही आनंद जी पड़ गये, पिता को सामने देख सारंग दौड़कर पिता से लिपट कर रोने लगा।सारंग का उलाहना था,बाबूजी हमें क्यूँ लावारिस कर दिया? क्या उत्तर देते आनंद जी?इतने में आगे बढ़कर पिंकी ने ससुर जी के पावँ छू कर उनकी गोद मे नवजात पुत्री को डाल दिया,बाबूजी आपकी पोती।आनंद जी पोती को गोद से उठा कर प्यार करने लगे,अरे सारंग ये तो माधवी आ गयी रे,बिल्कुल वही ही तो है।क्या नाम रखा है सारंग?बाबूजी जो आप रखेंगे।
अरे ये तो माधवी ही है,माधवी ही नाम रखेंगे।यही तो फिर से रिश्ते की डोरी बांध रही है।अरे शंकर देख माधवी आ गयी है।मेरी माधवी।शंकर,सारंग और पिंकी एक ओर खड़े देख रहे थे आनंद जी के हर्ष की अनुभूति को,अश्रुपूरित आंखों से।
#रिश्तों की डोरी टूटे ना
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित