माँ यह क्या कर रही हैं आप? रिचा ने चिल्लाकर माँ से कहा ।
संचिता ने कहा कि- मैंने क्या किया है रिचा?
रिचा— माँ मुझे मालूम है कि आपको लड़के बहुत पसंद हैं । मेरे बाद मेरा भाई मरा हुआ पैदा हुआ था । इसमें मेरी क्या गलती है । आप मुझे किस बात की सजा दे रहीं हैं ।
संचिता को बहुत ग़ुस्सा आया और उसने कहा चुप कर रिचा मैंने ऐसा क्या कर दिया है जो तू मेरे ऊपर भड़क रही है ।
उसी समय ताली बजाने की आवाज़ आती है दोनों माँ बेटी पीछे मुड़कर देखते हैं तो दामाद रोहन खड़ा था ।
वाहह क्या नौटंकी चल रही है यहाँ । हमेशा एक-दूसरे से चिपके रहने वाली माँ बेटी लड़ाई कर रही हैं ।
रिचा ने चिढ़ते हुए कहा कि— रोहन तुम जाओ यहाँ से यह मेरा मामला है मैं ही अपनी माँ से निपटूँगी ।
संचिता को समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या चल रहा है।
रोहन ने कहा कि— आप ज़्यादा आश्चर्यचकित मत हो जाइए मम्मी जी कल हम एक पार्टी में गए थे । वहाँ रिचा के ऑफिस वालों ने उससे पूछा था कि तुम्हारा भाई बहुत क्यूट है न हमने तुम्हारी माँ को बाज़ार में उसको गोद में लिए हुए शापिंग करते हुए देखा था । तब ही उसकी टीम मेट ने कहा कि अरे वह रिचा का भाई नहीं है उसका खुद का बेटा है जिसे माँ अपने बेटे की तरह पाल रही हैं । आपकी बेटी का माथा तब से सटक गया है और मेरे पीछे पड़ी है कि हम अपने बच्चे को अपने साथ रखेंगे ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
परिवार का हिस्सा – रश्मि प्रकाश
संचिता को एक बार डर लगा था कि कहीं सचमुच यह लोग अनिव को अपने साथ तो नहीं ले जाएँगे ।
वैसे संचिता किसी से डरने वालों में से नहीं है । उसे अच्छे से मालूम है कि उसकी बेटी उसकी ही बात सुनती है। मजाल है कभी उसके सामने ज़ोर से बात करें । अब दामाद भी उसी के नक़्शे कदम पर चल रहा है । उधर रिचा रोहन की बहस हो रही थी इधर संचिता सोच में डूबी हुई थी….
उसे वह दिन याद आया था जब बेटी ने रोहन से शादी करने की बात कही थी और जिद पर अड़ गई थी तो पति के खिलाफ जाकर मैंने ही उसकी शादी कराई थी । उसकी पूरी देखभाल की थी । जब वह कन्सीव हुई थी तो उसका पूरा ख़याल रखा था । नौ महीने लगने के पहले ही उसने बेटे को जन्म दे दिया था । बेटा बहुत ही नाज़ुक हालत में था । उसकी ज़िम्मेदारी मैंने ही ली थी और एक छोटे से चम्मच से वह दूध पीता था रात रात भर उसके लिए मैं जगी थी ।
हाँ मैं मानती हूँ कि मुझे लड़के बहुत पसंद हैं । रिचा के बाद मैंने एक लड़के को खो दिया था । अनिव को ज़ीरो साइज़ के कपड़े भी ढीले पड़ जाते थे । मैं उसके लिए कपड़े भी सी देती थी ।
रिचा से भी ज़्यादा मैं उसे अपने साथ रखती थी । उस समय उसे कोई तकलीफ़ नहीं होती थी क्योंकि वह अनिव को सँभाल नहीं पाती थी साथ ही वह अपने जॉब में बिजी थी ।
इसी बीच रोहन का तबादला पूना हो गया था । रुचि ने भी अपने तबादले के लिए ऑफिस में अप्लाइ कर दिया था । अब संचिता को लगा क्या करूँ ये लोग तो अपनी नौकरी के चलते अनिव को किसी आया के सुपुर्द कर देंगे मैं नहीं चाहती हूँ कि वह आया के हाथों पले । इसलिए रिचा के तबादले की ख़बर आने के पहले मैंने भी अपने स्कूल में रिजायनिंग लेटर दे दिया था ।
रोहन और रिचा भी खुश हो गए थे कि माँ बच्चे को देखने के लिए तैयार है। साथ ही मेरी माँ का वहाँ फ़्लैट भी था। मेरे मामा लोग वहीं रहते थे ।
मैं अपने बच्चों के साथ पति को यहीं छोड़कर उनके साथ चली गई ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
चिड़िया उड़ जायेगी – डा. मधु आंधीवाल
कई सहेलियों ने मुझसे कहा था कि बच्चे को यहीं रख ले तू क्यों अपना घर बार छोड़कर जा रही है उस समय मेरे लिए अनिव ही सब कुछ था मैं उसे छोड़कर नहीं रह सकती थी । उन लोगों से कहा कि बच्चे को माता-पिता के बारे में भी मालूम होना चाहिए है ना इसलिए वहीं जा रही हूँ ।
बच्चा बड़ा हो रहा था। अब उसकी तबियत भी ठीक हुई है मैंने उसे नार्मल बच्चों की तरह बनाया और स्कूल में दाख़िला दिला दिया । यह सब मैंने किया था उन दोनों ने कुछ नहीं किया था ।
हाँ एक बात तो है कि बच्चा मेरे रंग में रंगने लगा था । मैं जो बोलती वह उसके लिए पत्थर की लकीर थी । जब छोटा था माता-पिता को नाम लेकर पुकारता था ।हम हँसते थे परंतु उसकी गलती को सही नहीं किया था । इसलिए वह अब भी उन्हें नाम लेकर पुकारता है ।
माँ पिताजी नहीं बोलता है ।
इस बीच रिचा फिर से माँ बनने वाली थी तो अनिव पूरी तरह से मेरा हो गया था ।
रिचा ने इस बार लड़की को जन्म दिया था। मैंने उसकी देखभाल तो की थी पर रिचा ने ऑफिस से छह महीने की छुट्टी ले ली थी । वह पहले वाली गलती नहीं दोहराना चाहती थी और दो बच्चों को मैं नहीं सँभाल सकती थी ।इसलिए रिचा ने परी के परवरिश का ज़िम्मा खुद ले लिया था ।
माता-पिता उस बच्ची के साथ खेलते थे तब अनिव कहता था कि मेरे साथ भी खेलो न मैं भी तो आपका बेटा हूँ ।
रोहन को या रिचा को उस पर प्यार ही नहीं आता था क्योंकि उन्होंने बचपन से उसे संचिता के हाथों पलते हुए देखा था । अब जब अनिव बड़ा होता जा रहा है तो मेरे ख़याल से उन्हें भी लगता है कि वह उनके घर में उनके साथ मिलकर रहे लेकिन मैंने उसे इस तरह पाला है कि वह मुझे छोड़कर जाना ही नहीं चाहता है ।
उसी समय रिचा की आवाज़ आती है माँ कहाँ खो गई हो जिसे सुनकर मेरी तंद्रा टूटी मैं वापस आ गई थी ।
रिचा ने कहा कि — माँ आप सिर्फ़ मेरी मदद कर रहीं थीं और कब आपने इसे अपना बेटा बना लिया मुझे पता ही नहीं चला था प्लीज़ मेरे बेटे को मुझे दे दो ना ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
मां ही मेरा परिवार है – गीता वाधवानी
संचिता किंकर्तव्यविमूढ़ हो कर बैठी हुई थी । उसने भी रात भर बैठकर कुछ सोचा था। उसे लगा था अभी मेरी उम्र साठ की हो गई है और अनिव सिर्फ़ आठ साल का ही है जोर जबरदस्ती करके मैं उसे अपने पास रखूँगी तो भी ज़्यादा अच्छे से शायद उसकी परवरिश नहीं कर पाऊँगी । इसलिए यह सही समय है उनके बच्चे को उनके हाथों सौंप देना ।
उसने कहा कि- ठीक है रिचा तुम अपने बेटे को अपने साथ रख लो और मैं वापस अपने घर जा रही हूँ । दूसरे दिन अनिव के स्कूल से आने के पहले ही वह ट्रेन से अपने घर आ गई थी । उसे मालूम है कि बच्चे ज़्यादा दिन तक जिद नहीं करते हैं ।
थोड़े ही दिनों में वह अपने माता-पिता के रंग में रंग गया था । संचिता को इस विरह वेदना को सहने में बहुत समय लगा था । वह अपने समय को पुस्तक पढ़ने परी के लिए फ्रॉक सिलने में गुज़ारने लगीं थी ।
संचिता पुस्तक पढ़ रही थी कि डोर बेल बजी उठकर डोर खोला तो देखा रिचा और रोहन अपने दोनों बच्चों के साथ बाहर खड़े हैं । बच्चों ने नानी कहते हुए गले लग गए थे और मुझे बेटी दामाद दोनों की आँखों में चमक दिखाई दी जिसे देख कर मुझको भी सुकून मिला था।
दोस्तों अपने पोते पोतियों नाती नातिन को प्यार कीजिए । बच्चों को मदद चाहिए तो मदद कीजिए पर उन्हें अपने माता-पिता से अलग मत कीजिए । पेड़ों से अलग होकर डाली हरी भरी नहीं होती है ।
स्वरचित मौलिक
के कामेश्वरी
#मासिक_कहानी_प्रतियोगिता_अप्रैल
कहानी नंबर -४